हुआ कुछ ऐसा : कोलोडियन बेबी के जन्म ने सबको चौंकाया, पहली नजर में ही लगता है बच्चा डरावना
⚫ क्रोमोसोम की गड़बड़ी के कारण लेते हैं ऐसे बच्चे जन्म
⚫ शरीर पर चमड़ी की बजाय एक प्लास्टिक जैसी परत
⚫ अंगों का नहीं हुआ पूरा विकास
हरमुद्दा
रतलाम, 3 जून। महिला एवं बाल चिकित्सालय में शुक्रवार की शाम को कोलोडियन बेबी ने जन्म लिया है। जिसे देखते ही सभी आश्चर्य करने लगे। बच्चे के शरीर की सभी नसे साफ दिख रही है वही पहली नजर में ही बच्चा डरावना नजर आ रहा है। फिलहाल आईसीयू में उसका उपचार किया जा रहा है।
शुक्रवार की शाम को यह बच्चा बड़ावदा निवासी साजिदा (25) पति शफीक को हुआ है। बच्चे के रोने से परत के तड़कने की आवाज आ रही है। सामान्यतया ऐसे बच्चे कम ही दुनिया में रह पाते हैं। वर्तमान में बच्चों को आईसीयू में रखा गया है जहां पर आईसीयू इंचार्ज डॉ. नावेद कुरैशी की देखरेख में उपचार चल रहा है।
बेबी की आंखें और होंठ सुर्ख लाल
स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ सुधा राजावत ने हरमुद्दा को बताया कि चिकित्सा शास्त्र के अनुसार कोलोडियन बेबी का जन्म क्रोमोसोम (शुक्राणुओं) में गड़बड़ी की वजह से होता है। बेबी की चमड़ी बेहद पतली है। रोना चाहती है तो मुंह की चमड़ी फटने लगती है। बेबी की आंखें और होंठ सुर्ख लाल होते हैं।
संक्रमित क्रोमोसोम है वजह
डॉक्टर राजावत ने बताया कि कोलोडियन बेबी का जन्म एक असामान्य घटना है। यह जेनेटिक (अनुवांशिक) है। सामान्यतः महिला व पुरुष में 23-23 क्रोमोसोम पाए जाते हैं। यदि दोनों के क्रोमोसोम संक्रमित हों तो पैदा होने वाला बच्चा कोलोडियन हो सकता है।
चढ़ जाती है पूरे शरीर पर एक प्लास्टिक सी परत
डॉक्टर राजावत ने बताया कि शोध के अनुसार कोलोडियन बेबी का जन्म जेनेटिक डिस्ऑर्डर की वजह से होता है। ऐसे बच्चों की त्वचा में संक्रमण होता है। इस रोग में बच्चे के पूरे शरीर पर प्लास्टिक की परत चढ़ जाती है। धीरे-धीरे यह परत फटने लगती है और असहनीय दर्द होता है। यदि संक्रमण बढ़ा तो उसका जीवन बचा पाना मुश्किल होता है। कई मामलों में ऐसे बच्चे दस दिन के भीतर प्लास्टिक रूपी आवरण छोड़ देते हैं। इससे ग्रसित दस प्रतिशत बच्चे पूरी तरह से ठीक हो पाते हैं। उनकी चमड़ी सख्त हो जाती है और इसी अवस्था में जीवन जीना पड़ता है। यदि संक्रमण बढ़ा तो जीवन बचा पाना मुश्किल होता