शहरनामा : शाहजहां ने बसाया था, यह शहर, किया था हिरण का शिकार
⚫ आजादी के बाद यहां करीब दस वर्षों तक कपास मुख्य फसल होने से उसकी साफ सफाई तथा गठानें बनाने की मिलें हुआ करती थी, लेकिन बाद में सोयाबीन की उपज होने लगी और कपास आधारित मिलें ठप हो गई। कल कारखानें नहीं होने से आज शहर में भयंकर बेरोजगारी है। चुनाव के दिनों विकास के वादे जरूर किए जाते हैं, जिन्हें बाद में भुला दिया जाता है।⚫
⚫ नरेंद्र गौड़
मध्यप्रदेश के मालवा अंचल में बसा शाजापुर शहर आगरा मुंबई राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्थित है। इस मार्ग का निर्माण अंग्रेज हुकूमत के दिनों अफीम की सुगम ढ़ुलाई के लिए किया गया था, यही कारण है कि बरसों तक यह मार्ग अफीम सड़क के नाम से जाना जाता रहा। उन दिनों इस इलाके की प्रमुख पैदावार में अफीम भी शामिल थी। ब्रितानी शासन के दिनों शाजापुर सहित मालवा अंचल का अधिकांश हिस्सा ग्वालियर के सिंधिया शासकों के अधीन था। गुना मक्सी रेल लाईन के जरिए अब यह शहर रेल मार्ग से भी जुड़ चुका है। इसके अलावा समीप ही बेरछा रेल्वे स्टेशन से भोपाल तथा इंदौर के लिए ट्रेनें पकड़ी जा सकती हैं। रेल मार्ग से इसकी भोपाल और इंदौर की दूरी तीन घंटे है। वहीं उज्जैन ढ़ाई घंटे में पहुंचा जा सकता है। शहर की आबादी करीब एक लाख है।
आजादी के बाद यहां करीब दस वर्षों तक कपास मुख्य फसल होने से उसकी साफ सफाई तथा गठानें बनाने की मिलें हुआ करती थी, लेकिन बाद में सोयाबीन की उपज होने लगी और कपास आधारित मिलें ठप हो गई। कल कारखानें नहीं होने से आज शहर में भयंकर बेरोजगारी है। चुनाव के दिनों विकास के वादे जरूर किए जाते हैं, जिन्हें बाद में भुला दिया जाता है।
शाहजहां ने किया था हिरण का शिकार
अतीतकाल में यह शहर चीलर नामक नदी के किनारे बसा खांखराखेड़ा नाम का छोटा-सा गांव हुआ करता था। मुगलकाल में धार के पास मांडु मालवा प्रांत की राजधानी थी, जहां प्रशासनिक व्यवस्था का जायजा लेने के लिए आए दिन मुगल अधिकारी दिल्ली से मांडु जाया करते थे। शाजापुर याने तब का खांखराखेड़ा रास्ते में पड़ता था, जहां खांखरे यानी पलाश सहित अन्य पेड़ों का घना जंगल होने से बहतरीन शिकारगाह थी जिसके चलते मुगल अधिकारी कई दिन तक पड़ाव डालकर इस इलाके में शिकार किया करते थे। एक बार शाहजहां जब इधर से गुजरा तो उसने भी आसपास के जंगलों में शिकार किया, लेकिन एक हिरण ने उसे बहुत छकाया। आखिर शाहजहां का तीर लगने से घायल हिरण ने खांखराखेड़ा में दम तोड़ा। सेना प्रमुखों और ग्राम के बुजुर्गों की सलाह पर उसने अपने सिपहसालार मीर बैगो को इस गांव को विकसित करने का आदेश दिया। उसने यहां फौजी टुकड़ी और असलाह रखने के लिए सन् 1640 किला तथा शहर की सुरक्षा के लिए परकोटा व चार दरवाजों का निर्माण कराया। उन दिनों यहां की जीवन दायिनी नदी चीलर नगर के बीचों बीच बहा करती थी, किले का निर्माण किया गया तब सुरक्षा की दृष्टि से इस नदी को घुमाव देकर किले की पूर्वी तथा उत्तरी दीवार की तरफ किया गया। आज भी यह किला देखा जा सकता है, लेकिन मरम्मत के अभाव में इसकी दीवारें और दरवाजे जर्जर हो रहे हैं। शाहजहां के नाम पर आगे चलकर खांखराखेड़ा शाहजहांपुर और कालांतर में शाजापुर कहा जाने लगा।
ढ़ाई सौ वर्षों से खेला जा रहा एक नाटक
शाजापुर के सोमवारिया बाजार की करीब आधा किलोमीटर लम्बी सड़क पर यहां दीपावली के दसवें दिन ’कंसवधोत्सव’ नामक नाटक विगत ढ़ाई सौ सालों से खेला जाता रहा है। इसके तत्कालीन आयोजक नाटक की कथावस्तु मथुरा से लाए थे। इसमें भगवान श्रीकृष्ण की देवसेना और मथुरा के अत्याचारी राजा कंस की राक्षसी सेना के बीच वाक्युध्द के पश्चात श्रीकृण के हाथों कंस का वध होता है। नाटक के प्रारंभ होने के पहले बाजार में एक चबूतरे पर कंस का पुतला स्थापित किया जाता है। वर्ष में एक बार दीपावली के दसवें दिन खेले जाने वाले इस नाटक में सामाजिक ऊंच-नीच का भेद भुलाकर सभी वर्ग के लोग बढ़-चढ़कर उत्साह से भाग लेते हैं। कई लोग तो पीढ़ी दर पीढ़ी इसमें अभिनय करते आए हैं और अपने खर्च पर ड्रेस, लकड़ी की तलवारें, मुखोटे आदि बनवा रखे हैं। पहले यह नाटक सोमवारिया बाजार के निकट पुष्टीमार्गीय संप्रदाय के श्रीकृष्ण मंदिर परिसर में मंचित होता था, लेकिन बढ़ती हुई लोकप्रियता के कारण इसे इस बाजार में खेला जाने लगा। इस नाटक को देश का प्राचीन नुक्कड़ नाटक कहा जा सकता है। नाटक की खूबी यह है कि इसके संवाद पूर्व निर्धारित नहीं होते हैं, देव तथा राक्षस की भूमिका में उतरे पात्र देश, प्रदेश तथा स्थानीय समस्या को लेकर संवाद तैयार कर लेते हैं। पेट्रोल, डीजल की बढ़ती कीमतें, भ्रष्टाचार या कि फिर किसी स्थानीय नेता के काले कारनामें भी संवादों में शामिल किए जा सकते हैं। चुनाव के दिनों संवादों की रोचकता और बढ़ जाती है। यही कारण है कि नाटक में नवीनता बनी रहती है। आजादी के पूर्व यह नाटक अंग्रेज हुकूमत के खिलाफ जन अभिव्यक्ति का बेहतरीन जरिया था। राक्षसी सेना अंग्रेज हुकूमत तथा देवताओं की सेना स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों का प्रतिनिधित्व किया करती थी। यदि इस शहर की धरोहर की बात की जाए तो यहां के लोगों ने मालवा की अनेक लोक परंपराओं को आज भी जीवंत बनाए रखा है। लोकनाट्य माच, किलंगी तुर्रा और हीड़ गायन के प्रति लोगों में उत्साह देखते ही बनता है। इन लोक कलाओं का मंचन देखने के लिए जनता का हुजूम उमड़ पड़ता है। देर रात से लेकर सूरज उगने तक लोग डटे रहते हैं। लेकिन मध्यप्रदेश शासन के संस्कृति विभाग ने समय के साथ विलुप्त होती जा रही ऐसी धरोहर के संरक्षण की दिशा में कोई काम नहीं किया। यदि खानपान की वस्तुओं की चर्चा की जाए तो सेव, समोसा, आलूबड़ा, पोहे, कलाकंद, कचौड़ी और खोपरापाक यहां प्रसिध्द है। यहां की प्रमुख बोली मालवी है। कविता के जरिए जिसे दिवंगत कवि भावसार बा, मदनमोहन व्यास, सुल्तान ’मामा’, सुरेश दवे ’मामा,’ हरीश निगम आदि ने और अधिक लोकप्रिय तथा जनप्रिय बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। ’काईं आड़ी गयो थो’ यानी ’कहां गया था’, ’बाजार जइरयो हूं’, यानी ’बाजार जा रहा हूं’ जैसे संवाद इस बोली की लोच तथा माधुर्य की बानगी भर हैं। विवाह के दिनों एक लोकगीत अक्सर गाया जाता है-
सड़क पर आफू की क्यारी
सड़क पर केसर की क्यारी
नवल बनाजी को सर सिणगारियो
हवा करो प्यारी।
अर्थात सड़क पर अफीम और केसर की क्यारियां शोभायमान हैं। बना यानी दूल्हे राजा का सिंगार किया गया है, लेकिन यदि हवा नहीं की गई तो वह बह जाएगा। इसलिए सखियों दूल्हे राजा को ठंडक पहुंचाने के लिए हवा करो।
ऐतिहासिक तथा धार्मिक स्थल
शाजापुर जिला अनेक ऐतिहासिक तथा धार्मिक महत्व के स्थलों का अपने में समेटे हुए है। नगर के आगरा मुंबई राष्ट्रीय राजमार्ग के किनारे करीब तीन सौ साल पुराना राज राजेश्वरी देवी मंदिर, समीप के गांव गिरवर में हनुमान मंदिर तथा ग्राम करेड़ी का कनकेश्वरी देवी मंदिर यहां की ऐतिहासिक तथा धार्मिक धरोहर हैं। कनकेश्वरी मंदिर परिसर में भोज कालीन अनेक मूर्तियां बिखरी पड़ी हैं। इतिहास गवाह है कि इस मंदिर का निर्माण धार के भोज राजाओं ने कराया था। आज भी मकानों की खुदाई के समय पुरातात्विक महत्व की सामग्री मिलती रहती है। इस स्थल का पुरातात्विक सर्वेक्षण एवं मूर्तियों का संरक्षण किए जाने की मांग की जाती रही है। शाजापुर से तीन किलो मीटर दूर पांडव खोह है जहां के बारे में कहा जाता है कि इस गुफा में वनवास के दिनों पांडवों ने कुछ समय बिताया था।
वरिष्ठ साहित्यकारों का यहां हुआ जन्म
संस्कृति ही नहीं साहित्य की दृष्टि से भी शाजापुर जिला समृध्द रहा है। शाजापुर शहर में भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित कवि तथा उपन्यासकार स्व. नरेश मेहता का जन्म हुआ, यहीं की तहसील शुजालपुर के गांव भ्याना में स्वतंत्रता सेनानी तथा ’हम अनिकेतन, हम अनिकेतन’ जैसी कविता के रचयिता स्व. बालकृष्ण शर्मा ’नवीन‘ तथा समीप के गांव सुंदरसी में तार सप्तक के कवि स्व. हरिनारायण व्यास का भी जन्म हुआ। इनके अलावा मौजूदा दौर के कवि, कहानीकार तथा व्यंग्य लेखक विष्णु नागर का भी जन्म शाजापुर में हुआ।
साहित्यकार नरेंद्र गौड़
शाजापुर मध्यप्रदेश में जन्म। अनेक वर्षो तक दैनिक नई दुनिया तथा दैनिक भास्कर में साहित्य एवं समाचार संपादक रहे। तीन कविता संकलन छप चुके हैं जिसमें से ’गुल्लक’ संकलन को मध्यप्रदेश साहित्य अकादमी भोपाल व्दारा रामविलास शर्मा पुरस्कार प्रदान किया गया। इंदौर धराने के प्रसिध्द गायक उस्ताद अमीर खां की गायन शैली पर अनेक शोधपरक आलेखों का राष्ट्रीय स्तर के समाचार पत्रों में प्रकाशन। इन दिनों स्वतंत्र लेखन।
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