हताश, निराश को अब मुख्यमंत्री से आस : जनता को समझ लिया बेचारी, जिम्मेदारों ने खूब की मक्कारी, बेलगाम अधिकारी, फिर भी जीत के लिए उम्मीदवारी, अब है मतदाता की बारी

हेमंत भट्ट

प्रदेशभर में गांव से लेकर नगर सरकार बनाने तक का बोलबाला है। परंपरा, संस्कृति, संयम, नियम की पाठशाला से निकल कर आई भारतीय जनता पार्टी का अहंकार लगातार बढ़ता जा रहा है। किसी भी मोर्चे पर चुनावी प्रबंधन सफल होता नजर नहीं आ रहा है। केवल और केवल यदि बात रतलाम शहर की ही की जाए तो आम जनता को मूलभूत सुविधाएं देने में जिम्मेदार नाकारा ही साबित हुए हैं। पिछली परिषद की महापौर ने जो भाजपा और मतदाताओं के बीच जो खाई खोदी है, उसे उसे पाटना नगर के भाजपाई जिम्मेदारों की बस की बात नहीं है। सत्ता के नशे में चूर भाजपाइयों ने जनता को बेचारी समझ लिया। जिम्मेदारों ने खूब मक्कारी की। अधिकारी बेलगाम हो गए। फिर भी जीत के लिए उम्मीदवारी जताई है। अपने बूते कुछ नहीं करने वाले जनप्रतिनिधि पानी, सड़क और नाली जैसे मुद्दे के चुनाव में हताश और निराश हो गए और सब्जबाग दिखा रहे हैं महानगर बनाने के। वे अब मुख्यमंत्री से आस लगाए बैठे हैं कि वह कुछ जादू चलाए और मतदाताओं को लुभाएं, लेकिन अब मतदाताओं की बारी है।

खास बात याद दिलाने वाली तो यह भी है कि शहर के जिम्मेदार जनप्रतिनिधि तो मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान द्वारा किए गए वादों को भी पूरा करने में नाकारा साबित हुए हैं। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान 4 फरवरी को ही घोषणा कर गए थे कि रतलाम की जनता को अब हर दिन पानी मिलेगा, लेकिन वह घोषणा हवा हवा हो गई। ऐसी कई बातें मतदाताओं के मन में है, और वे जोर का झटका धीरे से देने के लिए तैयार है। प्रदेश के पिछले विधानसभा चुनाव में एक बार ऐसा झटका दे चुकी है फिर भी भाजपाइयों को समझ में नहीं आया।

… और उस शख्सियत को कर दिया चुनाव से बेदखल जिसके बूते

संघ और संगठन में खास मुकाम रखने वाले पूर्व पार्षद और एमआईसी मेंबर ही नहीं मानव सेवा के लिए समर्पित रहने वाले व्यक्तित्व को ही नगर सरकार के चुनाव से बेदखल कर दिया। जबकि कोरोना काल में जान की परवाह किए बिना कोरोना वायरस से प्रभावित लोगों की सेवा में तन, मन, धन से जुटे रहे। जब ऐसे लोगों की परवाह भाजपा में नहीं होगी तो फिर आम कार्यकर्ता और अन्य सदस्य ऐसी स्वार्थी भाजपा से कैसे जुड़े रहेंगे। यह एक चिंतनीय और विचार प्रश्न है। मतदाता यह सब भली भांति जानते हैं।

मतदाताओं की कसौटी पर खरा नहीं उतरी नगर सरकार

आम मतदाता यह भी भली-भांति जानते हैं कि उन्हें किस चुनाव में क्या करना है। उनको सांसद चुनना है। विधायक चुनना है। महापौर चुनना है या पार्षद चुनना है। सब के अलग-अलग मापदंड होते हैं जो नगर सरकार मतदाताओं की कसौटी पर खरा नहीं उतर पा रही है। मूलभूत सुविधाएं देने में जरा भी रुचि नहीं दिखा रही है। बात स्वच्छता अभियान की लें, शहर की सफाई की ले, नालियों की सफाई की ले, नालों की सफाई की लें, सब काम केवल अभियान के रूप में चलते हैं जो कि नियमित दिनचर्या और समय पर होने वाले कार्य हैं। लेकिन जिम्मेदार अपनी जिम्मेदारी भूल गए। अधिकारी बेलगाम हो गए। उनकी जो इच्छा होती है, वही करते हैं और जिम्मेदार जनप्रतिनिधि कुछ नहीं करते। शहर विधायक तो इस मामले में यह तक कहते सुनते नजर आए अपने नगर निगम में झांकवा को काम इज नी। जो काम नगर निगम में महापौर ने करनो है वी जाने। अपने अणि से कोई मतलब नी। अपनो विषय नी है।

इसलिए परिषद की मुखिया अभी भी नदारद

यह बात भाजपा के जिम्मेदार जानते हैं कि पिछली परिषद में शहर के मतदाताओं के साथ केवल छलावा ही किया है और कुछ नहीं। इसीलिए नगर सरकार परिषद के पूरे के पूरे अमले को चुनाव से दूर रखा गया है। पार्षद और महापौर मतदाताओं की कसौटी पर खरे नहीं उतरे हैं तो फिर उनके नाम पर वोट कैसे मांगे जा सकते हैं। पत्रकार वार्ता में शहर विधायक से पूर्व महापौर की अनुपस्थिति के बारे में कलमकारो ने प्रश्न भी किए, संतोषप्रद जवाब भी नहीं मिला फिर भी उनकी गैरमौजूदगी पर कुछ भी नहीं लिख रहे हैं। क्योंकि उनके मालिक सरकार के रहमों करम पर जो जीते हैं।

मतदाता की सुख-सुविधाओं को तिलांजलि ही नहीं, दे दी इन्होंने श्रद्धांजलि

पिछले कई सालों का यह तो अनुभव रहा है कि नगर सरकार का हर मोर्चे पर प्रबंधन केवल धन के पीछे ही रहा है। आम मतदाता के सुख सुविधाओं को तिलांजलि ही नहीं दी, बुरे शब्दों में कहें तो श्रद्धांजलि तक दे डाली है। शहर की सड़कों और कालोनियों नियमित सफाई के संस्कार तो खत्म ही हो गए हैं। 2 दिन में, 3 दिन में झाड़ू लगना आम बात हो गई है। नालियों और नालों की सफाई तो लगभग भूल ही गए हैं। नालियां सड़क के समतल हो गई है। गंदा पानी सड़कों पर बहता रहता है। कचरा वाहन कचरा संग्रहण करने उनकी मनमर्जी से आते हैं। कोई समय नहीं। 2 दिन में आ रहे हैं। 4 दिन में आ रहे हैं। नियंत्रण करने वाले सब उन पर मेहरबान है। सफाई के लिए विशेष अभियान चलाकर विशेष खर्चा दिखा रहे है। नतीजा केवल और केवल शून्य ही हैं।

इसीलिए यह सब करना पड़ रहा है नाली और सड़क की सफाई के चुनाव में

पार्षद के टिकट की आस में मोहल्ले में प्रयास करने वाले लोगों को सफलता नहीं मिली तो वे निर्दलीय अपना वजूद दिखाने के लिए चुनावी दंगल में उतरे हैं, वही ऐसे कई कार्यकर्ता और पदाधिकारी जो कि भाजपा की रीति नीति और उपेक्षित व्यवहार से नाखुश हैं उन्हें भी निष्कासित कर बाहर का रास्ता दिखाने में देर नहीं करने वाली भाजपा को चुनाव में खासा खामियाजा भुगतना पड़ेगा। खासकर तब, जब मुख्यमंत्री को काले झंडे दिखाने वालों की पूछ परख हो गई, उन्हें कोई सजा नहीं दी, बल्कि उनकी पत्नी को टिकट देकर उपकृत किया गया। ऐसा भी लोग और उनके समर्थक कह रहे हैं, जिनको भाजपा ने पहले तो अपनी ताकत बताया था लेकिन बाद में उन्हें नासूर समझ लिया। वे सभी लोग अपने प्रभाव से मतदान को प्रभावित करेंगे ही। बावजूद इसके पार्टी के लोग यह कहते सुनते हुए भी नजर आ रहे हैं कि पति के कहने पर पत्नी अपना वोट नहीं बदलती तो ऐसे लोगों के कहने पर मतदाता अपना मत दान क्यों बदलेंगे? संकेत साफ है कि कोई किसी की बात में आने वाला नहीं है।

इससे शर्मनाक और क्या होगा

चाहे प्रदेश अध्यक्ष कार्यकर्ताओं में जोश भर के चले जाएं या फिर प्रदेश भाजपा के महामंत्री नसीहत दे जाए। अब नाली और सड़कों की सरकार बनाने के लिए प्रदेश के मुखिया को अपनी मौजूदगी दर्ज करवाना पड़ रही है। नगर सरकार के लिए इससे शर्मनाक बात और क्या हो सकती है?

नगर निकाय चुनाव जैसे छोटे से कार्य के लिए मुख्यमंत्री की दस्तक

नगर निकाय का चुनाव तो प्राथमिक स्कूल के उस विद्यार्थी की तरह लग रहा है जो छोटी-छोटी शिकायत लेकर अपने माता पिता को स्कूल ले आता है जबकि को शिकायत इतने मायने नहीं रखती, हिम्मत होती तो वह स्वयं भी उन्हें सुलझा लेता, लेकिन वह सब इनमें कहां है? जैसे मॉनिटर के चुनाव में मां-बाप और प्रिंसिपल की कोई भूमिका नहीं होती, उसी तरीके से पार्षद के चुनाव हैं। पार्षद और महापौर के चुनाव के लिए मतदाताओं से वोट मांगने के लिए मुख्यमंत्री को आना पड़े, ऐसे जनप्रतिनिधियों को तो लानत है। यह भी अपने बूते मतदाताओं को प्रभावित नहीं कर सकते है। नहीं उनसे पार्टी के पक्ष में मतदान करवा सकते हैं। यह बात शहर विधायक भली-भांति जानते थे। इसीलिए तो नामांकन दाखिल करने के पहले महापौर प्रत्याशी और विधायक, पूर्व मंत्री के घर पर गए जो कि ऐतिहासिक बात मानी गई क्योंकि जब से उनको विधायकी मिली है, तब से वे उनके घर पर नहीं गए, लेकिन अब गए, इसके पीछे जरूर यही राज रहा कि उनके बूते भी कुछ भाजपा के पक्ष में मतदान हो जाए।

खुश करने वाला प्रतिशत नहीं रहा निकाय चुनाव में गत दिनों

गत दिनों हुए मतदान में यही नजर आया है कि मतदाता मतदान करने के लिए परेशान होते रहे। उन्हें न पर्ची मिली, ना उन्हें कोई सहायता। नतीजा यही रहा कि मतदान का प्रतिशत खुश करने वाला नजर नहीं आया। इसी तरह प्रशासनिक अमला भी मतदान सामग्री के वितरण से लेकर चर्चाओं में रहा है। मतदान दल खासे परेशान हुए हैं। अब मतदान कराने वाले जब ना खुश रहेंगे तो बाकी सब आप समझ सकते हैं कि किसके पक्ष में मतदान होगा।

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