शख्सियत : जीवन की धड़कन कविता की अनिवार्य शर्त, सच्चाई से रूबरू कराती है यह

कवयित्री मंगला पाठक का कहना

नरेंद्र गौड़

’प्रत्येक कवि अपनी अभिव्यक्ति के लिए बेचैन रहता है। वह वस्तु यथार्थ से उव्देलित होता है। उसकी संवेदनाएं उसे यथार्थ से सम्बध्द करती हैं। उसकी चेतना उसे यथार्थ की तहों में छुपी सच्चाई से रूबरू कराती है। यदि कवि की चेतना वैज्ञानिक दर्शन से समृध्द है तो वह यथार्थ को विश्लेषित कर सकता है। पर्यावलोकन को विवेक से संगति प्रदान कर सकता है। वास्तविक कविता वही है जिसमें जीवन की धड़कन मौजूद हो, जिस कविता में जीवन नहीं धड़कता हो, वह कविता नहीं हो सकती है।’

मंगल पाठक


यह बात नई कविता को समर्पित कवयित्री मंगला पाठक ने कही। इनका मानना है कि कवि यथार्थ में से चयन करता है। वह जिस विचार को व्यक्त करता है उसके पर्यावलोकन के आधार पर कथ्य को बिम्ब प्रतीकों के रूप में क्रमबध्द कर लेता है। उसके अंतराल को कल्पना से भरता है, कल्पना से ही वह उसे वांछित रूप प्रदान करता है। इस तरह एक कविता अस्तित्व में आती है। पर्यावलोकन वह प्रक्रिया है जो कविता के लिए मूर्त संदर्भ जुटाती है और उसे समृध्द करती है।

रागात्मक सम्बंध स्थापित करती है कविता

एक सवाल के जवाब में मंगलाजी ने कहा कि कविता अन्य कलाओं की तरह हमसे रागात्मक संबंध कायम कर लेती है। वह हमारे भावबोध का विकास करती है। कवि के पर्यावलोकन को जो एक चीज वैज्ञानिक और पर्यटक के अवलोकन से भिन्न करती है, वह है अनुभूति। कवि एक विशेष दृष्टि से चीजों को देखता है। मनुष्य जीवन को एक विशेष आत्मीय भाव से निहारता है। किसी भी चरित्र के भीतर उतर जाता है। दूसरों की अनुभूति से तादाम्य स्थापित कर लेता है। उनके दुख से दुखी और सुख से प्रसन्न होता है। इन्हें जब कविता में व्यक्त करता है तो यह सब प्रसंग उसकी अनुभूति से रचे पचे होते हैं।

बचपन से रही लिखने की रूचि

शाजापुर में निवास कर रही मंगला पाठक बरसों तक वहां के महात्मा गांधी कान्वेट स्कूल में अध्यापिका रहने के बाद इन दिनों स्वतंत्र लेखन कर रही हैं। नीमच में श्री रामधारी दीक्षित तथा श्रीमती माधवीलता के यहां जन्मी मंगलाजी राजनीति शास्त्र तथा हिंदी साहित्य में प्रथम श्रेणी में एमए के साथ ही बीएड भी कर चुकी हैं। कविता लिखने की रूचि इन्हें बचपन से रही है। इसके अलावा आप को संगीत में भी गहरी दिलचस्पी है। इनका ‘मंगलपूर्वाक्ष’ नाम से स्वतंत्र यूट्यूब चैनल भी जो साहित्य तथा संस्कृति के क्षेत्र में अभिरूचि रखने वाले दर्शकों के बीच इनकी अत्यंत सुमधुर आवाज तथा शानदार प्रस्तुति की वजह से खासा लोकप्रिय है। इन्हें लिखने की प्रेरणा अपने पति जयप्रकाश पाठक से मिलती रही है।

मंगला जी की चुनिंदा कविताएं


शिक्षक वही कहलाते हैं

अज्ञानरूपी अंधकार से
ज्ञानरूपी प्रकाश की ओर
ल्ेजाकर सफल जीवन जीने की
कला सिखाकर
संसार में चलने और
संभलने लायक बनाकर
शिष्य का भविष्य उज्वल
बनाने का जो प्रयास करते हैं
सही मायने में वही
शिक्षक कहलाते हैं
जीवन के संघर्ष में जीत का
निश्चय दिलाकर
’अ’ से अनपढ़ को ’ज्ञ’ से
ज्ञानी बनाकर कोरे कागज को एक
सफल किताब बनाकर
जीवन नैया पार लगाने में जो
प्रेरणा बन जाते हैं
सही मायने में वही शिक्षक कहलाते हैं
कठिन रास्तों को सरल बनाकर
सही और गलत का भेद समझाकर
जीवन को कामयाबी के
शिखर तक पहुंचाकर
ज्ञान की धारा से जीवन रूपी
पुष्प को जो पल्लवित करते हैं
सही मायने में वही
शिक्षक कहलाते हैं।

अमावस की रात

अमावस की रात में रोशनी
खूब सजेगी
जगमगाते दीपकों की कतार सी लगेगी
क्या हुआ ? जो अमावस की रात है
इस रात में प्रकाश पर्व से
विजय गाथा मनेंगी
जलाना है दिल का दीया
जो कभी बुझेगा नहीं
डालना है प्रेम का अमृत
जो कभी घटेगा नहीं
प्रेम स्नेह की बाती तुम भी
जलाए रखना
इस तरह संजोया रिश्ता हमारा
फिर कभी टूटेगा नहीं
जब ज्ञान का दीपक जलेगा
हर सपना सच के बदलेगा
धूप और दीप भी खुशबू से
हर घर का आंगन महकेगा
उत्साह और उमंग की रौनक
तुम भी बनाए रखना
आशा और विश्वास के
इस दीप को तुम यूं ही
जलाए रखना।

हौसला बनाए रखना

जीवन सफल होगा तुम्हारा
हौसला बनाए रखना
हारना नहीं तुमको
अपने कदम बढ़ाए रखना
चलते-चलते रूकना नहीं है
मंजिलें मिलेंगी यहीं
संघर्ष का ये कारवां
बस यूंही तुम बढ़ाए रखना
खुद को रखना बुलंद इतना
निराशा भागती रहे
आशा की एक किरण ही सही
सामने से झांकती रहे
इस किरण के सहारे
क्षण भर मुस्कराते हुए
अंधकार में प्रकाश की
उम्मीद तो बाकी रहे
गर मुश्किलों में है जीवन
छोड़कर जाना नहीं
आएगा फिर से बसंत
तुम घबराना नहीं
जीवन के इस संघर्ष में
जीत तुम्हारी ही है निश्चित
परीक्षा की इस घड़ी से
तुम घबराना नहीं।

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