स्मृति शेष : ऊर्जावान व्यक्तित्व के धनी हर्ष का यूं चले जाना, जैसे उजाला रूठ गया…
⚫ निरंतर सक्रिय रहने वाला, सभी के दुःख दर्द में शामिल होने वाला, एक आवाज़ पर सभी के लिए खड़ा होने वाला, सभी के काम को अपना काम समझकर करने वाला और सभी के साथ चलने वाला अगर कोई व्यक्ति था तो हर्ष था। हर्ष ने अपने नाम के मुताबिक इस दुनिया में हर्ष लुटाया । सभी को खुशियां प्रदान की। एक मुस्कुराहट जो उसके चेहरे पर सदा रहा करती थी, वह आज भी हम सभी की आंखों के सामने घूमती नज़र आती है।⚫
कलम ने कभी सोचा नहीं था कि उसे इस तरह भी चलना पड़ेगा। उसे वह सब भी लिखना पड़ेगा जो किसी के लिए कभी प्रशंसा और उसके व्यक्तित्व के उत्थान के लिए लिखा गया। मगर आज कलम को मजबूर होकर यह लिखना ही पड़ रहा है कि हम सभी के उज्जवल भविष्य, जगमगाते नक्षत्र हर्ष दशोत्तर को वक़्त ने हमसे छीन ही लिया।
हर्ष के अवसान ने फिर यह साबित किया है कि हक़ीक़त में यह समय दुर्जनों का है, सज्जनों का नहीं। सज्जन हाशिए पर हैं और दुर्जन गौरवान्वित हो रहे हैं। हर्ष का जाना भी ऐसा ही है जैसे अंधेरे होते वक़्त में उजाला रूठ गया हो। अतिआत्मीय और अनुज हर्ष का जाना एक सज्जन, विनम्र, विनयशील और मिलनसार व्यक्तित्व का जाना है।
दुर्जनों की इस दुनिया से हर्ष जैसे सज्जन व्यक्ति ही जुदा होते हैं। हर्ष मुझसे जब भी मिलता एक छोटे भाई की तरह और सभी से गर्व से यह कहता कि, ये मेरे बड़े भाई साहब हैं। उसका यह विनम्र व्यवहार सिर्फ़ मेरे लिए ही नहीं था बल्कि हर उस व्यक्ति के लिए था जो उससे मिला। क्या पुरुष, क्या महिला, क्या छोटे, क्या बड़े, क्या बुजुर्ग ,क्या बच्चे ….। सभी के प्रति उसका यही व्यवहार उसे बड़ा बनाता चला गया। वह क़द में ही नहीं व्यक्तित्व में भी बहुत बड़ा था।
निरंतर सक्रिय रहने वाला, सभी के दुःख दर्द में शामिल होने वाला, एक आवाज़ पर सभी के लिए खड़ा होने वाला, सभी के काम को अपना काम समझकर करने वाला और सभी के साथ चलने वाला अगर कोई व्यक्ति था तो हर्ष था। हर्ष ने अपने नाम के मुताबिक इस दुनिया में हर्ष लुटाया । सभी को खुशियां प्रदान की। एक मुस्कुराहट जो उसके चेहरे पर सदा रहा करती थी, वह आज भी हम सभी की आंखों के सामने घूमती नज़र आती है।
विभिन्न सामाजिक संगठनों, धार्मिक संगठनों और सांस्कृतिक संगठनों में तो वह सक्रिय था ही, और हमेशा यही कोशिश करता था कि वह इन संगठनों से जुड़ कर अपने आप में कुछ निखार ला सके। सदैव सीखने की प्रवृत्ति उसकी हुआ करती थी। आज वही हर्ष हम सभी को एक बेहतर जीवन जीने का सलीका सिखा कर चला गया। हर्ष का जाना किसी मां के बेटे का जाना नहीं है, किसी पत्नी के लिए पति का जाना नहीं है, किन्हीं बेटियों के लिए उनके पिता का जाना नहीं है, बल्कि हम सभी मनुष्यों के लिए एक बेहतर इंसान का जाना है। मनुष्यता के पैरोकार का जाना है। मित्रवत व्यवहार के धनी लोगों के लिए एक सच्चे मित्र का जाना है।
हर्ष हमसे जुदा ज़रूर हुआ है मगर उसकी स्मृतियां और उसके अच्छे कार्य हमारे बीच सदैव मौजूद रहेंगे।
⚫ आशीष दशोत्तर