खरा-खरा लिखने वाले
⚫ डॉ. प्रकाश उपाध्याय
खरा-खरा लिखने वाले, केवल कुछ ही खास हैं
वर्ना बहुतेरी कलमें तो, सत्ताओं की दास हैं
कबीर बन कोई खड़ा नहीं, सच की लिये मशाल
ओहदे, शोहरत, सम्मानों की ज्यादातरको आस है
झूठ और छल की राहें, कामयाबी तक जाती हों
गै़रत औ शराफत को, उन पर चलना भी रास है
प्रेमचंद, निराला और मुक्तिबोध के विरल नाम
केवल अब अलमीरों में, पोथी- पन्नों के पास हैं
बगुले आज हंस बनबैठे,हैं काग कोकिला से ऊँचे
कल तक थे जो तंगहाल ,उनके महलों में वास है
दौर बदला – नई हवा बही, कौन अतीत में झाँके
नहीं किसीको वक्त सोचे, किसका जिया उदास है
एक तल्ख हकीकत है, यह भी तो जिंदगी की
कलेजों में कसक है, मगर अधरों पर हास है
⚫ डॉ. प्रकाश उपाध्याय