रक्षाबंधन उत्सव : 11 अगस्त गुरुवार को है रक्षाबंधन, लेकिन उत्सव मनाया जाएगा रात को
⚫ पूर्णिमा तिथि के साथ ही शुरू हो जाएगी भद्रा
⚫ उत्सव में तो लगता ही है भद्रा का दोष, चाहे कोई सी भी हो
हरमुद्दा
रतलाम, 11 अगस्त। रक्षाबंधन उत्सव 11 अगस्त गुरुवार को ही रहेगा। उत्सव की परंपरा का निर्वाह रात को 8:30 बजे के पश्चात ही किया जाना श्रेयस्कर होगा। गुरुवार को पूर्णिमा का व्रत होगा। गुरुवार को पूर्णिमा और भद्रा एक साथ शुरू होगी। जो समाज श्रवण बनाकर पूजन करते हैं, वह भद्रा में कर सकते हैं और भोग लगा सकते हैं लेकिन श्रवण को रक्षाबंधन रात भद्रा के पश्चात ही चढ़ाया जा सकेगा।
ज्योतिषाचार्य पंडित दुर्गा शंकर ओझा ने हरमुद्दा से चर्चा करते हुए बताया कि ऋग्वेदी ब्राह्मण के लिए श्रवण नक्षत्र प्रधान होता है और यजुर्वेदी ब्राह्मणों के लिए पूर्णिमा प्रधान होने के कारण गुरुवार 11 अगस्त को उपा कर्म करने का विधान शास्त्रों में वर्णित है पूर्णिमा तिथि का वृत भी इसी दिन माना जाएगा। सुबह ब्राह्मणजन श्रावणी उपा कर्म करेंगे।
रक्षाबंधन उत्सव रात 8:27 के बाद
पंडित ओझा ने बताया पूर्णिमा तिथि गुरुवार को सुबह 9:22 से प्रारंभ होगी उसी समय भद्रा भी शुरू होगी इसलिए रक्षाबंधन पर्व रात्रि को 8:27 के बाद मनाया जाएगा। श्रावणी के दिन जिन लोगों के यहां श्रवण बनाने का विधान है। श्रवण भद्रा में बनाकर उनको भोग लगाया जा सकेगा। घर के परिजन भी भोजन कर सकेंगे लेकिन श्रवण को रक्षा सूत्र रात्रि ने पूजन करने के पश्चात ही चढ़ाना उचित रहेगा।
अति आवश्यक हो तो 12 अगस्त को सुबह 7:30 बजे तक रक्षाबंधन
कुछ पंचांगकारों ने दूसरे दिन 12 अगस्त को भी रक्षा पर्व का उल्लेख किया है किंतु धर्म शास्त्रों में तीन मुहूर्त तक जो तिथि सूर्योदय में रहती है वही उदया तिथि मानी जाती है। शुक्रवार को पूर्णिमा प्रातः तक रहेगी इसलिए अति आवश्यक होने पर ही सुबह 6 से 7:30 के मध्य रक्षाबंधन मना सकते हैं। जो विद्वान कह रहे हैं कि 12 अगस्त को दिन भर रक्षाबंधन कर सकते हो सरासर गलत है। सूर्योदय के दौरान जो तिथि तीन मुहूर्त होती है, वही दिन भर मानी जाती है और 12 अगस्त को पूर्णिमा सुबह 7:30 बजे तक ही है जो कि पूरा एक मुहूर्त भी नहीं है। इसलिए 12 अगस्त को दिन भर रक्षाबंधन का तो प्रश्न ही पैदा नहीं होता।
कौन है भद्रा
ज्योतिषाचार्य ओझा ने बताया कि समुद्र मंथन के दौरान जब गरल पीकर भगवान शंकर ने हुंकार भरी और अपने शरीर पर दृष्टि डाली तो उनकी दृष्टि के आघात से गर्दभ मुख, तीन चरण, 7 भुजा, काला रंग, लंबे टेढ़े मेढ़े दांत, प्रेत वाहन तथा मुख से अग्नि ऊगलती हुई देवी प्रकट हुई, जिसे देवताओं ने भद्रा नाम से संबोधित किया। भद्रा कहीं पर भी विराजित हो चाहे पाताल लोक, भूलोक अथवा स्वर्ग लोक में हो, वह अनिष्टकारी और अशुभ ही होती है। ऐसा नहीं है कि स्वर्ग लोक में होने से पृथ्वी लोक के लोगों के लिए भद्रा का कोई दोष नहीं होगा।