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… और हो गया वहां ऐसा : जिनके सामने छोटे से हुए बड़े, सबकी उम्र थी 18 साल से अधिक, निर्दयता पूर्वक काट कर फेंक गए वे

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⚫ काट कर फेंके गए अंग प्रत्यंग को उठाने को कोई नहीं है तैयार

हरमुद्दा
रतलाम, 31 अक्टूबर। जिनके सामने छोटे से हुए बड़े। सबकी उम्र थी 18 साल से अधिक। निर्दयता पूर्वक काट कर फेंक गए वे। काट कर फेंके गए अवशेष पूछ रहे हैं कि आखिर हमारा गुन्हा क्या था। पर्यावरण की दुहाई देने वाले, हर मौके पर पौधारोपण का सबक सिखाने वाले सभी जिम्मेदार इस हादसे पर मौन हैं। मुद्दे की बात तो यह है कि पौधारोपण के लिए सजग करने वालों ने केवल और केवल जिम्मेदारी का चोला ओढ़ रखा है, ताकि उस बहाने उनको सम्मान मिल सके। उन्हें भी वह देखकर बड़ा होने से कोई मतलब नहीं है। बस मतलब है तो फोटो खिंचवाने से और पुरस्कार की चाह में बनने वाली फेहरिस्त में उसे लगाने से।

वे न गुंडे थे। ना बदमाश थे। वे तो आमजन की सेवा में चौबीसों घंटे तल्लीन रहते थे लेकिन विकास के नाम पर उनको काट कर फेंक दिया गया। सुंदरता से परिपूर्ण आवासीय परिसर के सामने उनके अवशेष फेंक दिए गए। यह घटना हुई पैलेस रोड से लगाकर निगम तिराहे तक बने फोरलेन मार्ग पर। दोनों तरफ का मार्ग हरियाली से आच्छादित था। इतने घने वृक्ष थे कि मकान भी बहुत कम नजर आते थे लेकिन अब दोनों तरफ बड़े-बड़े वृक्ष टुकड़े-टुकड़े कर दिए। और वही फेंक कर चले गए। क्षेत्रीय लोगों का कहना है कि आखिर यह वृक्ष कहां बाधा बन रहे थे। यदि कुछ दिक्कत थी तो इनकी छटाई करते। पूरे के पूरे नेस्तनाबूद कर दिए गए। आखिर इनका क्या गुनाह था। हमारा भी क्या गुनाह था कि हमने इन्हें रोप कर पूरी सुरक्षा के साथ इनको बड़ा किया। आखिर शहर का ऐसे विकास चाहने वाले पर्यावरण के साथ खिलवाड़ क्यों कर रहे हैं।

देख सको तो देख लो : कुदरत पर प्रहार बरसेगा कहर बनकर

दिव्यांग बना मोटे तने वाला वृक्ष
जमीन तक काट दिया गया वृक्ष इतना मोटा
इस तरह सड़क के आजू-बाजू फेंक गए काटे वृक्ष

अभियान चलाकर करते हैं प्रेरित

एक और तो जहां पौधारोपण के लिए प्रेरित करते हैं। मुख्यमंत्री का जन्मदिन हो या फिर आपका अपना जन्मदिन हो। पौधारोपण कर फोटो खिंचवाते हैं। जब भी कोई मंत्री या वरिष्ठ अधिकारी आता है तो पौधारोपण करता है। केवल और केवल नौटंकी के अलावा कुछ नहीं है। केवल और केवल छलावा है। दिखावा है। पौधारोपण के फोटो जिम्मेदार लोग प्रकाशित करवाते हैं ताकि लोग प्रेरित हों कि पौधारोपण मानव जीवन के लिए अति आवश्यक है लेकिन शहर के जिम्मेदार अधिकारी इस तरह से उन पर हमला कर देते हैं। जबकि वे सलीके से कतारबद्ध थे। फोरलेन में बाधक नहीं बन रहे थे। फोरलेन बन चुकी है फिर भी उनको काट कर फेंक दिया गया।

कौन देगा सजा इनको

आखिर इन गुनाहगारों को कौन सजा देगा? पर्यावरणविद भी मौन है। समाजसेवी मौन है। विधायक मौन है। वृक्षों को संरक्षित करने की बजाय उनको ठूंट में तब्दील कर रहे हैं। उनको दिव्यांग बना रहे हैं। फोरलेन के दोनों और देख लीजिए कटे हुए अंग प्रत्यंग चीख चीखकर अपनी व्यथा सुना रहे हैं। मगर कोई सुनने वाला नहीं है। पर्यावरण हितैषी बनने की नौटंकी करने वालों को इस से कोई मतलब नहीं है। उनकी ना पैरवी करेंगे। न ही ऐसा करने वालों को सजा दिलाने के लिए कदम उठाएंगे। किसकी अनुमति से उन्हें काट कर फेंक दिया गया, उन्हीं के सामने जिन्होंने सालों से खींच सींचकर बड़ा किया। उन लोगों के दिल के दर्द को समझने वाला बेदर्द शहर में कोई नहीं है। मा

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