पाती मुख्यमंत्री के नाम : रतलाम में चलाएं आप दो पहिया वाहन, धूल का स्नान देगा अद्भुत आनंद, सड़कों पर ऊंछलेंगे फुटबॉल की तरह, नहीं दिया ध्यान तो नाली में चले जाएंगे श्रीमान, यहां पर वाहन चलाना ओलंपिक में पदक लेने से नहीं है कम, कचोरी, समोसे पर चढ़ती है धूल
⚫ मध्यप्रदेश स्थापना दिवस के बहाने
⚫ दीपावली पर दबंगों ने फेंके है बहनों व भांजियों पर जलते पटाखे
हेमंत भट्ट
रतलाम, 1 नवंबर। भले ही मध्यप्रदेश अपनी स्थापना का उत्सव मना रहा है लेकिन उत्सव मनाना तभी सार्थक है, जब परिवार के सभी सदस्य खुश हों। पूरे प्रदेशवासी खुश खुशहाल हों। प्रदेश के रतलाम शहर के निवासी प्रशासनिक अधिकारियों और जनप्रतिनिधियों से खुश नहीं है। इनकी कार्यप्रणाली जिंदगी को तार-तार कर रही है। चारों तरफ मनमानी, मनमानी और सिर्फ। शहरवासी सालों से ठगा सा महसूस कर रहे है। बदहाल सड़कें, बेतहाशा अतिक्रमण, शहर में निकलो तो मुफ्त की धूल खाओ, धर्म के नाम पर मनमानी, दबंगई खुलेआम हो रही है। मामाजी की भांजी और बहनें दबंगों की हरकतों से परेशान हैं।
यूं तो रतलाम शहर को भाजपा का सांसद, भाजपा का विधायक, भाजपा का महापौर, भाजपा के पार्षद, सब कुछ मिले हैं लेकिन पसंद के नहीं है। कुछ अंतर से जीते हैं लेकिन उसके बाद से वह बन गए चीते हैं।
सड़कों की दास्तां कौन सुने
शहर की सड़कों की दास्तां किसी से छुपी नहीं है। जिम्मेदारों ने शहरभर के गड्ढों में मिट्टी वाली मोरम भर दी। जोकि वाहन के साथ ही धूल का गुबार बनाती है और पीछे चलने वाला हर कोई धूल में सना हुआ नजर आता है। सफेद झक परिधान काले होने लगते हैं, और काले व रंग बिरंगे परिधान धूल धूसरित। चेहरे और हाथ पर धूल की परत जम रही है। यह सब अनुभव मुख्यमंत्रीजी आपको करना चाहिए, बिना किसी लाव लश्कर के। तभी आपको पता चलेगा कि आपकी सरकार का प्रशासन कैसा चल रहा है? विधायक क्या कर रहे हैं? वैसे भी आप दो पहिया वाहन पर मुख्यमंत्री रहते हुए भी बैठे हैं। (हालांकि उस दौरान आपने यातायात के नियमों का पालन नहीं किया। न तो आपने हेलमेट पहना और नहीं आपकी बाइक चला रहे चालक में हेलमेट पहना)। तो फिर रतलाम की सड़कों पर आपके द्वारा दो पहिया वाहन चलाने में कोई हर्ज नहीं होना चाहिए। फिर सड़क किनारे दुकानों पर खुले में पड़े रहने वाले समोसे, कचोरी, पोहे खाइए और मक्खी, मच्छर, कीटाणुओं के साथ धूल का टेस्ट पाइए।
तो फिर शुरू हो गई प्रतिस्पर्धा दुकानों का सामान सड़क तक रखने की
अप्रैल महीने में नगर निगम तत्कालीन आयुक्त ने आदेश निकाला था कि दुकानों के आगे सामान रखकर यातायात को बाधित करेंगे तो कार्रवाई की जाएगी। सज्जन मिल तरफ एक कार्रवाई हुई भी सही, लेकिन इसके बाद तो प्रतिस्पर्धा शुरू हो गई कि सर्वाधिक सामान सड़क तक कौन रखेगा? कौन फुटपाथ अपने कब्जे में लेगा और यह सिलसिला बदस्तूर जारी है। हालांकि सामान बाहर रखने की प्रतिस्पर्धा में कौन अव्वल आया है। अभी इसकी घोषणा नहीं हुई है। लेकिन ढाई ढाई फीट की दुकानें बीच बाजार में 5 से 8 फीट में जरूर तब्दील हो गई है।
विधायक ने कहा अतिक्रमण हटाना व्यावहारिक नहीं
रतलाम में एक भी सड़क ऐसी नहीं है जहां से बिंदास वाहन चलाया जा सके। फोरलेन बनी है मगर दो लाइन पर तो अतिक्रमण पसरा पड़ा है। फुटपाथ तो व्यापारियों ने अपने बाप की जागीर समझ ली है। इसको मुक्त कराने में शहर विधायक सहित जिला प्रशासन के आला अफसर सक्षम नहीं है। खास बात तो यह है कि दीप मिलन समारोह में शहर विधायक ने स्वयं स्वीकार किया है कि शहर से अतिक्रमण हटाना व्यावहारिक नहीं है। यानी कि अतिक्रमण और सुरसा के मुंह की तरह फैलता ही जाएगा, कुछ भी नहीं करेंगे। भले ही लाखों लोग परेशान होते रहे, उनकी बला से। सीधे-सीधे शब्दों में तो यही स्पष्ट होता है कि विधायक केवल दुकानदारों का साथ देंगे, शहर की आम जनता का नहीं।
वाहन चलाना ओलंपिक में पदक लेने से भी मुश्किल
शहर की अधिकांश सड़कें ऐसी है जिस पर वाहन चलाने पर आपको रेगिस्तान में ऊंट पर बैठ कर चलने का एहसास होगा। कभी ऊंचे, कभी नीचे। कभी कच्ची खत्म, कभी पक्की शुरू। गड्ढे और टीले पर वाहन चलाना किसी ओलंपिक में पदक लेने से कमतर नहीं है। कभी-कभी तो ऐसा लगता है कि ओलंपिक में पदक लेना आसान है लेकिन रतलाम की सड़कों पर वाहन चलाना और चलना बड़ा मुश्किल वाला कार्य है, जिसे हम बाधा मार्ग कह सकते है।
आदेश निकाल कर वसूली करना ही उनका काम
इतना ही नहीं सड़कों पर मवेशियों का साम्राज्य तो सड़क पर चलने वालों को अनचाही मुसीबत का न्योता देते हैं। नगर निगम ने पशु पालकों को भी चेतावनी दी, लेकिन उसका कोई असर नहीं क्योंकि चेतावनी देने वाले ही बेखबर हैं। उनको तो बस केवल आदेश निकालना है। पालन करवाना उनका काम नहीं या यूं कहें कि आदेश निकाल कर वसूली करना ही उनका काम है।
कानून का पालन करवाने में जिम्मेदार नाकारा
हाथ गाड़ियों के माध्यम से सामान बेचने वाले महाराजा से कम नहीं है, जब चाहे, जहां चाहे वे सड़कों के बीच में रुक जाते हैं। व्यापार शुरू हो जाता है। चाहे वाहन चालक या पैदल चलने वाले परेशान होते रहे, उनकी बला से। जबकि नगर सरकार निर्वाचन के पहले ऐसे सभी हाथ ठेला विक्रेताओं के लिए त्रिवेणी रोड और छतरी पुल मार्ग पर स्थान दिया गया है लेकिन फिर सभी सड़कों पर वापस आ ही गए। कानून का पालन कराने में जिम्मेदार नाकारा साबित हुए और हो रहे हैं।
जाम यातायात में हॉर्न बजाने वालों को घूर कर देखते हैं ऑटो और मेजिक वाले
रही सही कसर शहर में चलने वाले मैजिक वाहन और ऑटो रिक्शा पूरी कर देते हैं। वह किसी की नहीं सुनते हैं। चाहे यातायात पुलिस हो या कोई और। ऐसे सभी वाहन वाले तो यातायात पुलिस के लिए माई बाप होते हैं। उन पर कोई कार्रवाई नहीं होती। चाहे उनकी गाड़ी में हेडलाइट, टेल लाइट, ब्रेक लाइट न हो। वे सभी सीना तान के शहर में रेंगते हैं और आमजन को सड़क पर आसानी से चलने के लिए परेशानी पैदा करते हैं। कहीं पर भी सवारी उतारने और चढ़ाने के लिए खड़े रहते हैं। खासकर मोड़ पर। भले ही पीछे लंबी कतार लोगों व वाहनों की लग जाए, उन्हें इसकी परवाह नहीं। वाहन चालक हॉर्न बजाता है तो घूर कर देखते हैं। एक बानगी तो ऐसा लगता है कि वह हॉर्न बजाने वालों को कूट डालेंगे। कई बार ऐसी नौबत बनती भी है, सड़कों पर मौजूद छूटभैया नेता समझा-बुझाकर आगे बढ़ने के लिए कहते हैं और गलती करने वालों का साथ देते हैं।
यह हो रहा सब बेमानी साबित
इतना ही नहीं चाहे घर-घर हर दिन पानी देने की बात हो या फिर हर दिन घर-घर से कचरा संग्रहण की। यह सब रतलाम के लिए बेमानी साबित हो रही है। पानी होने के बावजूद पानी नहीं दिया जाता है बहाने बाजी चलती है और बिल लग जाते हैं मरम्मत कार्य के। शहर की सड़कों और कालोनियों में कचरा और गंदगी के ढेर आम बात है। खास बात तो यह है कि जो काम हर दिन उनको करना है, अब वही कार्य के निगम प्रशासन अभियान चलाकर करता है। फोटो खींचते और बताता है कि आज हमने यह नाली साफ की। इसके बाद उस नाली की सफाई का नंबर कब आएगा, यह तो ऊपर वाला भी नहीं बता सकता तो फिर आम जनता किससे पूछें। कहने को तो अपने को रेवड़ी बांटते हुए दो-दो मशीनें खास सड़कों की सफाई के लिए लाखों रुपए महीने किराए पर ले रखी है लेकिन सड़कों ने उनका मुंह तक नहीं देखा है और किराया बकायदा दिया जा रहा है मेहरबानी की तरह।
40-40 घंटे माइक बजाना आम बात
शहर में दबंगों की मनमानी का यह आलम है कि धर्म के नाम पर 40-40 घंटे दिन-रात माइक चलाया जा रहा है। लोग परेशान हो रहे हैं लेकिन इस ओर कोई ध्यान देने वाला नहीं। अंधे, बहरे, गूंगे का बोलबाला है। शिकायत की जाती है तो फरियादी को ही आरोपी घोषित कर दिया जाता है। ताकि अगली बार से वह आवाज भी नहीं उठाए। दीपोत्सव पर तो ऐसे दृश्य भी देखे गए जिसमें दबंगों द्वारा मामाजी की बहनों और भांजियों पर पटाखे फेंके गए, मगर आस-पास वाले कोई बोलने को, रोकने, टोकने को तैयार नहीं क्योंकि कौन गुंडों से पंगा ले, जबकि गुंडों से निपटने के लिए पुलिस है लेकिन वह तो दोस्ती की बांसुरी बजाते रहती है।
… और अंत में
मुख्यमंत्री जी आपसे यही करबद्ध निवेदन है, आह्वान हैं, गुजारिश है कि भेष बदल कर ही सही लेकिन रतलाम की जनता के लिए एक बार जरूर आए और हकीकत की जमीन पर जिम्मेदारों की कार्यप्रणाली को देखें और समझे की किस बात की सजा आम लोगों को दी जा रही है। क्या भाजपा की सरकार का यही खामियाजा भुगतना होगा?