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बसंत पंचमी पर विशेष : गौरवशाली इतिहास का है मूक गवाह, रतलाम में खुरासानी इमली का अत्यंत प्राचीन पेड़

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⚫ जिला प्रशासन को चाहिए कि इस अति प्राचीन वृक्ष के संरक्षण की दिशा में आवश्यक कदम उठाए। वरना सड़क चौड़ीकरण या फिर अतिक्रमण के कारण कभी भी यह काटा जा सकता है। जी-20 सम्मेलन  तथा प्रवासी भारतीय सम्मेलन के दौरान भी मांडू पहुंचे अतिथियों को इस पेड़ के महत्व से अवगत किया गया। ⚫

⚫ नरेंद्र गौड़

रतलाम में त्रिपोलिया गेट के एकदम बाहर दाहिने तरफ खुरासानी या गोरख इमली का एक विशाल तने वाला पेड़ उस समय का है, जबकि यह शहर गांव हुआ करता था। इस मायने में यह जिले का सबसे प्राचीन वृक्ष है और इसे वही सम्मान तथा सुरक्षा मिलना चाहिए जो एक वयोवृध्द नागरिक को मिला करती है। 26 जनवरी बसंत पंचमी को रतलाम को स्थापना दिवस धूमधाम से मनाया जाएगा, क्यों न इस दिन इस बूढ़े बुजुर्ग वृक्ष की सजावट कर युवापीढ़ी को इसके महत्व के बारे में जानकारी दी जाए।

संरक्षित वृक्ष का दिया जाए दर्जा

जिला प्रशासन को चाहिए कि इस अति प्राचीन वृक्ष के संरक्षण की दिशा में आवश्यक कदम उठाए। वरना सड़क चौड़ीकरण या फिर अतिक्रमण के कारण कभी भी यह काटा जा सकता है। मालूम हो कि विगत दिनों मांडू उत्सव के दौरान वहां स्थित खुरासानी या गोरख इमली के पेड़ की आकर्षक विद्युत साजसज्जा कर सम्मानित किया गया था और इतना ही नहीं वहां एक रेस्ट हाउस का नाम भी खुरासानी विला रखा गया है। जी-20 सम्मेलन  तथा प्रवासी भारतीय सम्मेलन के दौरान भी मांडू पहुंचे अतिथियों को इस पेड़ के महत्व से अवगत किया गया।

आयुर्वेद में कहा गया कल्पवृक्ष

आयुर्वेद में गोरख या खुरासानी इमली का एक अन्य नाम कल्पवृक्ष भी है। आज के पश्चिम अफगानिस्तान, पूर्वी ईरान, उजबेकिस्तान और तुर्कमेनिस्तान का इलाका खुरासान कहलाता है। यह पेड़ भी वहीं का बाशिंदा होने के कारण  इसका यह नाम पड़ा। इसके अलावा यह मेडागास्कर, अफ्रीका और आस्ट्रेलिया में भी पाया जाता है, लेकिन इसका प्रसार वनस्पति के प्रति प्रेम रखने वालों व्दारा किया गया। इसका एक और नाम बाओबाब भी है। जिम्बाबवे में गोरख इमली का एक पेड़ सन् 2011 में गिरकर नष्ट हुआ था और उस समय उसकी उम्र 2,450 वर्ष आंकी गई थी। इसे विश्व का सबसे लम्बी उम्र का वृक्ष माना गया। इसकी विभिन्न दस- बारह प्रजातियां पाई जाती है। रतलाम शहर में ऐसे दो पेड़ और भी हैं जो बिबड़ोद मार्ग पर सोनी जी के खेत में देखे जा सकते हैं।

गीता में भी है उल्लेख

आयुर्वेद के मुताबिक गर्मी के दिनों इसके फल के गूदे का शरबत पीने से लू लपट का असर बिल्कुल नहीं होता है। इसके फलों को बंदर बड़े चाव से खाते हैं, इसलिए फलों को मंकी ब्रेड कहा जाता है। गीता में भी ऊर्ध्वमूल वृक्ष का उल्लेख है। इसका वैज्ञानिक नाम ’एडनसोनिया डिजीटाटा’ है और एक अन्य नाम गोरक्षी भी है। इसके पत्ते पांच समूह में होते हैं और आषाढ़ माह में कमल के फूल की तरह सफेद पुष्प खिलते हैं जिनकी तीखी गंध आती है। इस पेड़ का तना मोटी गोलाई लिए होता है तथा आगे की तरफ शंक्वाकार होता है। इसका फल नारियल की तरह कठोर छिलके वाला और गूदे का स्वाद खट्टा होता है। फल के गूदे में टार्टरिक अम्ल, पोटेशियम बाईटारर्टेट होता है तथा तने की छाल में कडुआ स्फटिकमय एडन्सोनिन तत्व पाया जाता है।

लगभग तीन सौ साल पुराना

इसके फल का गूदा अतिसार और खून बहना रोकने की अचूक दवा मानी जाती है। इस वृक्ष की औसत उम्र 1500 साल मानी गई है और तना 21 मीटर तक फैल सकता है। इस मायने में रतलाम स्थित यह पेड़ कमसे कम तीन सौ साल पुराना होना चाहिए। वानस्पतिक सर्वे के जरिए तना देखकर इसकी उम्र का पता लगाया जा सकता है। जानकारों के मुताबिक जहां कहीं भी यह पेड़ होता है, उसके आसपास भूजल स्तर में आश्चर्यजनक वृध्दि देखी गई है।

तने में जमा हजारों लीटर पानी

हर सौ साल में इसका तना 21 मीटर तक फैल जाता है। पानी संग्रहण की क्षमता के कारण  यह रेगिस्तान और सूखे इलाकों में भी अपना अस्तित्व आसानी से बचाए रख सकता है।  उम्र बढ़ने के साथ ही पेड़ का तना भीतर से खोखला होता जाता है, जिसमें बरसात का हजारों लीटर पानी संग्रहित हो जाता हैं। इसमें लगभग 1.20 लाख लीटर पानी एकत्र हो सकता है। शीतल तासीर के कारण गर्मी के दिनों पक्षी अपना घोंसला बनाने के लिए इसी पेड़ को चुनते हैं।

तब हुआ था ऐसा

इतिहास बताता हैं कि 15 वीं शताब्दी में मांडू के सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी को अफगानिस्तान खुरासान के सुल्तान ने इसके पौधे भेंट किए थे और उन्होंने अपने साम्राज्य में इन्हें अनेक जगह लगाया। मांडू के वार्ड क्रमांक 10 में रहने वाले किसान तुलसीराम निनामा ने भी अपने खेत पर चार पौधे लगाए थे जो अब वृक्ष बन गए हैं। मांडू के कलेक्टर के निर्देश पर वहां ऐसे पेड़ जो जड़ से उखड़ गए उन्हें फॉसिल्स पार्क पर रिप्लांट किया गया है, जो अब हरे भरे हो चले हैं।

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