मुद्दे की बात : सामाजिक समरसता तभी सम्भव है जब राजनीति में वर्णवाद, जातिवाद समाप्त हो, कांप रही है अखंड भारत की परिकल्पना
⚫ आज समाज को न जाने कितने स्वामी और मौर्य हाँक रहे हैं। निहित स्वार्थ जातिवादी नेताओं का एजेंडा है। कितने कितने टकराव, नफ़रतें और अलगाव के अलाव जल रहे हैं जिन पर सियासत हाथ सेंक रही है। भारतवर्ष में आज केवल हिन्दू मुसलमान के नाम पर टकराव नहीं। टकराव ने अपना दायरा इतना व्यापक कर लिया है कि अखण्ड भारत की परिकल्पना कांप रही है। अगर हिन्दू राष्ट्र बना तो बिगड़ी मानसिकता के लोग उसके भी कई कई टुकड़ें करवा कर मानेंगे। ⚫
⚫ त्रिभुवनेश भारद्वाज
सामाजिक समरसता तभी सम्भव है जब राजनीति में वर्णवाद,जातिवाद समाप्त हो। यहाँ तो टिकिट वितरण इसी मापदण्ड से किया जाता है। प्रतिनिधित्व भी योग्यता आधारित नहीं जातिगत होता है। ठाकुर,ब्राह्मण और बनिया संख्याबल के चश्में से देखे जाते हैं। राजनेता ही चाहते हैं कि जातिगत गणना हो और बिखराव बरकरार रहे। ब्रितानी सरकार ने 185 बरस भारत को गुलाम बनाए रखा तो इसी “फार्मूले”का उपयोग किया। इतिहास बताता है कि अंग्रेज भारत में हिन्दू और मुसलमान को अपनी दो बीबियाँ मानते थे। एक रूठ जाए तो दूसरी से काम चलाते थे।
अंग्रेजों की ही फूट नीति का नतीजा भारत-पाकिस्तान। कलह का विस्तार। सियासत ने भारत में कई कई देश खड़े कर रखें है ।परतन्त्र भारत से अधिक स्वतंत्र भारत में विघटनकारी परिदृश्य राजनीति के लिए सुखद परिवेश बनकर सामने आया। आज समाज को न जाने कितने स्वामी और मौर्य हाँक रहे हैं। निहित स्वार्थ जातिवादी नेताओं का एजेंडा है। कितने कितने टकराव, नफ़रतें और अलगाव के अलाव जल रहे हैं जिन पर सियासत हाथ सेंक रही है। भारतवर्ष में आज केवल हिन्दू मुसलमान के नाम पर टकराव नहीं।
टकराव ने अपना दायरा इतना व्यापक कर लिया है कि अखण्ड भारत की परिकल्पना कांप रही है ।सभी सम्प्रदाय अंदरूनी कलह से ग्रस्त है ।पंथों में कई कई पंथ ।हिंदुओं में 96 जातियां है और हर जाति में अनेक उपजातियां है जिनमें अंदर ही अगड़े पिछड़े की होड़ मची है।मुसलमानों में भीतरी टकराव खौफनाक है।यहाँ भी असली मुसलमान और नकली मुसलमान के साथ अगड़े पिछड़ों की व्यापक लड़ाई है। एक का दूसरे की मस्जिद में आना जाना तक कई देशों में प्रतिबंधित है। यही हाल क्रिश्चियन और सिक्खों के हैं।अगड़े पिछड़ों के चर्च और गुरुद्वारे अलग अलग है।
शादी की बात करें तो प्रश्न आता है आप कौन से
हम करते हैं समरसतापूर्ण हिंदुस्तान की मांग तो वो सम्भव कैसे है।मैं एक सेलून पर केश सुधार करवा रहा था तो नाई मतलब “बार्बर” ने बताया कि हमारी जाति में मारवाड़ी, सोंधवादी, राजस्थानी, गुजराती इत्यादि इतने धड़े हैं कि होली पर गैर निकलती है तो 10-12 गैर अलग अलग निकलती है। एक धड़ा दूसरे से शादी ब्याह के सम्बंध नहीं करता। यही हाल हमारे ब्राह्मण समुदाय के हैं। ब्राह्मण 108 उपजातियों में बंटा है और सबके अलग अलग सुर और ताल। ये सर्यूपाणी, वो गौड़, क्या क्या बंटवारे हैं बताना मुश्किल है। शादी की बात करें तो सवाल आता है आप कौन से ब्राह्मण हैं।
कई टुकड़े करवा देंगे हिंदू राष्ट्र के बिगड़ी मानसिकता के लोग
यदि निचली श्रेणी के ब्राह्मण हैं जैसे दाधीच,भूमिहार,महापात्र तो ब्राह्मण ही नाक भौ सिकोड़ते नजर आएंगे।इस तरह की जातिगत मारकर सारे सम्प्रदायों में है।राजनीति के लिए अनुकूल दशा है।अंग्रेज गए तो राज करने के गुर बता गए उसमें जो महत्वपूर्ण सूत्र था वो था “फुट डालो और राज करो”।हिंदुस्तान कैसे एक हो सकता है जब तक हम न समझेंगे यही होता रहेगा। आज जिन देशों की संस्थापना धर्म के आधार पर हुई वहाँ देख लीजिए सिया, सुन्नी ,अहमदिया, देवबंदी, पंजाबी मुसलमान और न जाने कितने भेद विभेद। रोज़ खून की नदियां बहती देख ही रहें हैं अगर हिन्दू राष्ट्र बना तो बिगड़ी मानसिकता के लोग उसके भी कई कई टुकड़ें करवा कर मानेंगे।
⚫ त्रिभुवनेश भारद्वाज