कुछ खरी-खरी : विकास के कमीशन ने छीनी मासूम जिंदगी, महापौर की विकास यात्रा के पहले 4 ने निकाली सड़क पर झाड़ू, फिर लगाया चूना
⚫ हेमंत भट्ट
⚫ यत्र तत्र सर्वत्र पता है कि जब भी कोई शासकीय निर्माण कार्य होता है तो कमीशन दिल खोल कर बटता है, भले ही इसकी एवज में कार्य की गुणवत्ता स्तरहीन हो, उस से समझौता कर लिया जाएगा, मगर कमीशन में एक ढेला भी कम मंजूर नहीं। भले ही सकरें मार्ग पर दो तरफा यातायात रहे। मासूम की जान चली जाए, इनको कोई फर्क नहीं पड़ता। …. गांव-गांव, डगर-डगर, शहर-शहर विकास यात्रा का बिगुल बजा रहे हैं। महापौर की विकास यात्रा निकलने के पहले चार सफाई कर्मी ताबड़तोड़ आए और सड़क को चकाचक कर दिया। 2 लोग आए और चूना लगा दिया। जितनी धूल और कचरा साफ नहीं किया, उससे ज्यादा तो चूना लगा दिया।⚫
यूं तो जब सड़कों का निर्माण होता है तो आसपास वैकल्पिक मार्ग बना दिए जाते हैं ताकि यातायात सुगम रहे। रतलाम बाजना मार्ग की प्रसिद्ध सागोद पुलिया जोकि काफी सकरी है और सामान्य में भी आवागमन में परेशानी होती है, ऐसे में जब निर्माण कार्य चल रहा हो तो परेशानी और बढ़ जाती है। कई महीनों से सुबह, दोपहर शाम जाम की स्थिति निर्मित हो रही है। लंबी-लंबी लाइनें दोनों तरफ लग रही है। हजारों वाहनों का बिना वजह रोज डीजल पेट्रोल इंतजार में जल रहा है। वातावरण प्रदूषित हो रहा है, मगर निर्माण करने वाले ठेकेदारों ने यातायात सुगम करने के लिए अन्यत्र मार्ग नहीं बनाया या यूं कहें कि जिम्मेदार जनप्रतिनिधियों ने इसके लिए पहल नहीं की जबकि बहुत आसान था। लगता ऐसा है कि कमीशन खोरी कम हो जाती, इसलिए अन्यत्र मार्ग बनाने का सुझाव नहीं दिया या यह भी हो सकता है कि इतना चिंतन किया ही नहीं आमजन के लिए। आमजन की सुविधा के लिए।
अभी भी हो सकता है ऐसा
यातायात को बुद्धेश्वर वाले मार्ग से होते हुए ईश्वर नगर रेलवे फाटक ले जाते और उत्कृष्ट विद्यालय के पास से निकाल सकते थे, लेकिन यह सोच किसी ने भी नहीं दिखाई और लोग सकरी पुलिया पर आने जाने को विवश होते रहे। अभी भी ऐसा हो सकता है एक मार्ग आने के लिए और दूसरा मार्ग जाने के लिए तय कर दें। न जाम लगेगा। नहीं दिक्कत होगी, लेकिन इसके लिए कुछ करना पड़ेगा। कुछ अतिरिक्त खर्च होगा लेकिन आवागमन आसान हो जाएगा। किसी को जिंदगी से हाथ नहीं धोना पड़ेगा।
वफादारी से निभाते अपनी जिम्मेदारी तो नहीं होता ऐसा
इसी अव्यवस्था में नन्हीं मासूम दृष्टि सदा के लिए विदा हो गई। परिजन अपनी किस्मत को और जिम्मेदारों को कोस रहे हैं कि वे अपनी जिम्मेदारी वफादारी से निभाते तो आज उनकी लाडली उनकी गोद में होती, मगर इन लोगों को तो कोई फर्क नहीं पड़ता है इनका कोई अपना वाला जाता तो कार्रवाई होती।
कोई लेना देना नहीं उनका
शहरवासियों का कहना है कि जनप्रतिनिधियों और प्रशासनिक अधिकारियों का इस मुद्दे पर कोई लेना-देना नहीं भले ही मासूम की जान चली जाए। शहर में कई जगह सीसी रोड के निर्माण कार्य हो रहे हैं। शास्त्री नगर फोरलेन बनकर लगभग तैयार है लेकिन पुलिया त्रिशंकु बनी हुई है। यानी कि अधर में लटकी हुई है। इसके लिए जनसुनवाई में भी आवेदन दिए गए लेकिन किसी पर कोई असर नहीं हुआ। जनसुनवाई में आमजन की समस्या के समाधान के डिंडोरे तो पीटे जाते हैं लेकिन मैदानी स्वरूप कुछ और ही होता है। शहर के कई क्षेत्रों के लोग इसी कारण परेशान हैं कि समय पर सड़क का निर्माण कार्य नहीं होता है।
गुणगान में नहीं थक रही जबान
विकास यात्रा के माध्यम से भाजपा सरकार के गुणगान करते हुए जुबान नहीं थक रही है। बयानबाजी हो रही है कि भाजपा सरकार आमजन की सरकार है जन सुविधाओं का ख्याल रखा जाता है लेकिन हकीकत में तस्वीर का दूसरा पहलू भी देखिए। भाजपा के पित्र पुरुष पंडित दीनदयाल उपाध्याय के नाम से जाने जाने वाले पंडित दीनदयाल नगर में विकास यात्रा का कुछ ऐसा दृश्य बना।
विकास यात्रा निकलने के पूर्व 4 सफाई कर्मी महिलाएं आई और फटाफट झाड़ू लगाने लगी। यह देख कर लोग भी चौक गए कि आखिर क्या हो गया? यूं तो चार चार दिन तक झाड़ू नहीं लगती और आज एक ही सड़क के लिए 4-4 सफाई कर्मी इतने सक्रिय क्यों हो गए? वह भी भरी दोपहर में।
वास्तव में यह बात तो आश्चर्य चकित कर देती है। आमजन भी समझते हैं कि कोई आने वाला होगा, तभी झाड़ू निकल रही है, वरना आमजन के लिए तो ऐसा नहीं होता है। जैसा लोगों ने सोचा वैसा हुआ भी। झाड़ू निकालने के कुछ समय पश्चात ही एक बोरी में दो लोग चूना लेकर आ गए। दोनों तरफ चूने की मोटी परत जमा दी। मतलब की जितनी धूल झाड़ू लगाने के दौरान नहीं निकली, उससे 4 गुना चूने की लाइन लगा दी या यूं कहें कि रहवासियों को चूना लगा दिया। दोपहर 3 बजे वाहन पर लगे माइक से पता चला कि विकास यात्रा आ रही है। विकास यात्रा में महापौर, क्षेत्रीय पार्षद, पार्षद पति और उनके वह चाहने वाले हाथों में पंपलेट लिए चल रहे थे और घर-घर में खिसका रहे थे। कुछ दूरी के बाद यात्रा संपन्न हुई और झक सफेद कार में महापौर हो गए रवाना।
दो बार झाड़ू निकालने के बाद भी नहीं निकला चुना
जिनके घर के आगे था चूना वह तो अगले दिन उन्होंने साफ कर दिया, चूने की लंबी परत तब तक बनी रही, जब तक की सफाई कर्मी नहीं आए। उन्होंने भी दो बार झाड़ू निकाल ली, लेकिन चूना साफ नहीं हुआ। चार-पांच दिनों के बाद धीरे-धीरे कुछ साफ हुआ। तो यह है विकास यात्रा की तस्वीर। महापौर को कचरा नहीं दिखना चाहिए, बाकी शहरवासी कचरे में रहे, उनकी बला से। इतना ही नहीं जिन्होंने सड़क पर झाड़ू लगाई थी वह सफाई कर्मी भी यात्रा में पीछे पीछे मौजूद थीं।
दाम मिलते आम से और काम करते खास के
किसी भी स्तर पर देख लीजिए पूरी मिशनरी आम के लिए नहीं केवल और केवल खास के लिए ही काम कर रही है जबकि उनको दाम आम से ही मिल रहे हैं और वह काम खास के लिए कर रहे हैं। आम के लिए उतना नहीं।