खरी-खरी : नसबंदी अभियान में काट दिए श्वान के कान, फिर भी शहर में घूम रहे परिवार के साथ नए मेहमान, बिगड़े यातायात में फिर गई जान, जिम्मेदार जानकर भी अनजान
⚫ हेमंत भट्ट
⚫ जन सुविधाएं तो दुकानदारों के यहां पर गिरवी रख दी है। सबको अपने हिसाब से सेट करने वाले सभी व्यापारी मस्त हैं। बस त्रस्त है तो आमजन। सड़क पर चलने वाले, वाहन चलाने वाले। आखिर कब तक शहर में मौत का खेल चलता रहेगा। शहर में रहने की कीमत अपनी जान देकर चुकाना होगी।⚫
शहरभर में और आसपास श्वान की भरमार है। बच्चे, बूढ़े और जवान इनके शिकार हो गए हैं। इसीलिए नगर निगम ने लाखों का बजट बनाया और श्वान के लिए नसबंदी अभियान चलाया, जिनकी हो गई नसबंदी उनके हल्के से कान भी काट दिए गए। ताकि पहचान रहे। बार-बार एक की ही नसबंदी नहीं हो जाए। हैरत करने वाली बात तो यह है कि साल भर से नसबंदी अभियान चलने के बावजूद पिछले 2 महीनों से शहर की सड़कों पर, गलियों में, मोहल्लों में परिवार के साथ श्वान के नए मेहमान घूम रहे हैं। श्वान के कई बच्चे तो वाहनों की चपेट में भी आ गए हैं। और इसका खामियाजा अन्य वाहन चालकों को भी भुगतना पड़ रहा है। श्वान उनके पीछे दौड़ लगाते हैं। लोगों का कहना है नसबंदी अभियान में मालामाल हो रहे ठेकेदार। हुआ है भ्रष्टाचार। ध्यान नहीं दे रहे हैं ओहदेदार। क्योंकि वे हो गए हैं दमदार।
छीन लिया पिता का साया
शहर का यातायात दिन-ब-दिन बद से बदतर होता जा रहा है, लेकिन जिम्मेदार अधिकारी कर्मचारी ध्यान नहीं दे रहे हैं। सड़क हादसों में लगातार मौत हो रही है। सागोद रोड पुलिया पर जहां दृष्टी ने जान गवाई, उनके आंसू अभी सूखे भी नहीं थी कि अब बीच बाजार में चार पहिया वाहन वाले टक्कर मारकर को मौत के घाट उतार रहे हैं। पिता माधव सक्सेना की मौत का गम बच्चों को मिला और सुहागिन का सुहाग छिन गया। बहनों का भाई चला गया। परिवार का पूरा सिस्टम बिखर गया। वजह साफ है। सड़कों पर फल, सब्जी सहित अन्य सामान बेचने वाले पसरे पड़े हैं। सड़क पर आम लोगों का चलना मुश्किल हो रहा है। फिर भी कसूरवार बेपरवाह बने हुए हैं। कोई ध्यान नहीं दे रहा है।
दुकानदारों के यहां पर गिरवी रख दी है जन सुविधाएं
जनप्रतिनिधि को शहरवासियों की कोई फिक्र नहीं है, उन्हें फिक्र है तो बस अपने वोट बैंक की। वोट बैंक की खातिर आमजन की सुविधाएं दुकानदारों के यहां पर गिरवी रख दी है। बाजार में व्यापार करने वाले दुकानदार चाहे जितने भी आगे बढ़ जाए, उन्हें रोकने टोकने वाला कोई नहीं। थेला गाड़ियां कहीं पर भी खड़ी हो जाए, व्यापार करें। उनको हटाने और दबाने वाला अमला भी नहीं। अतिक्रमण मुहिम से लोगों को राहत मिलना शुरू हुई थी कि चांदनी चौक में वह हार गई और फिर पूरे शहर में दुकानदार और आगे बढ़ते हुए अतिक्रमण कर रहे हैं। आमजन की सुविधाएं छीन कर जीत का जश्न मना रहे हैं। गणेश देवरी, बजाज खाना, भुट्टा बाजार, सहित कई क्षेत्रों में पक्के अतिक्रमण के साथ दमदार सड़क पर सीना तान के खड़े हो गए हैं। है किसी माई के लाल में हिम्मत जो इन्हें पीछे करके दिखाएं और आम जनता को सड़क पर चलने का रास्ता सुलभ कराएं।
शहर में रहने की कीमत चुकानी पड़ रही जान देकर
सबको अपने हिसाब से सेट करने वाले सभी व्यापारी मस्त हैं। बस त्रस्त है तो आमजन। सड़क पर चलने वाले, वाहन चलाने वाले। आखिर कब तक शहर में मौत का खेल चलता रहेगा। शहर में रहने की कीमत अपनी जान देकर चुकाना होगी। इसका जवाब किसी के पास नहीं है। सब मौन धारण किए हुए हैं। कहने को तो शहर में फोरलेन बनाई जा रही है लेकिन चलने के लिए पूरी एक लेन भी नहीं है। यही विकास हुआ है शहर का। कागजों में भले ही सुविधाओं की भरमार है। असल में आमजन बेहाल हैं। गर्मी शुरू होने के पहले ही पेयजल का अकाल है। रात 1 बजे तक पेयजल की पाइप लाइन सुधारने की डींग हांकने के बाद फिर टूटी गई है पेयजल की पाइप लाइन।