साहित्य सरोकार : “संध्या”
⚫ संध्या बुरी तरह जल गई थी उसे तुरंत ही हॉस्पिटल में भर्ती किया गया। एक हफ्ते बाद जब संध्या के चेहरे की पट्टी खोली गई तो पता चला कि उसने अपनी आँखों की रोशनी खो दी थी। संध्या पर तो जैसे दुखों का पहाड़ टूट पड़ा। वह रवि के बारे में सोचने लगी कि क्या होगा जब उसे पता चलेगा? रवि को जैसे साँप सूँघ गया। संध्या ने उसे पछताने तक का मौका नहीं दिया था। अब एक अपराधबोध भाव के साथ वह कभी संध्या को तो कभी अपनी बच्ची को निहारता हुआ गुनगुना रहा था….”तेरी आँखों के सिवा दुनिया में रखा क्या है।” ⚫
⚫ रेणु अग्रवाल
“तेरी आँखों के सिवा दुनिया में रखा क्या है” रवि संध्या की आँखों में देखते हुए आज भी वही अपना पसंदीदा गीत गुनगुना उठा।
“चलो हठो, बदमाश कहीं के!” संध्या हमेशा की तरह रवि को मीठी फटकार देते हुए बोली।
“सच संध्या…तुम्हारी आँखें दुनिया की सबसे खूबसूरत आँखें हैं। बचपन से इनमें डूबकर ही तो बड़ा हुआ हूँ। मैं इनसे बेहद मुहब्बत करता हूँ। ऐसा लगता है जैसे इनमें मेरी जान बसी हुई है।” रवि ने मचलते हुए कहा।
“अच्छा! अगर किसी दिन मेरी आँखें नहीं रहीं तो तुम मुझे……..” कहते-कहते संध्या अचानक गंभीर हो उठी।
“अरे! तब की तब देखी जाएगी। मुझ पर भरोसा रखो वो दिन कभी नहीं आएगा संध्या, मैं तुमसे बेहद प्रेम करता हूँ।” रवि ने बात काटते हुए कहा।
संध्या और रवि दोनो के परिवार एक ही कॉलोनी में रहते थे। दोनो के परिवारों में खूब जमती थी, तीज-त्यौहार सब मिलजुल कर एक साथ ही मनाते थे। संध्या और रवि परिवार के बाकी बच्चों के साथ ही खेल-कूद कर बड़े हुए थे, ऐसे में दोनो में सहज आकर्षण स्वाभाविक ही था। परिवार के लोगों को भी कोई आपत्ति नहीं थी। दोनो परिवार विवाह के लिए भी तैयार थे, इंतजार था तो केवल दोनो की पढ़ाई पूरी हो जाए और रवि कहीं अच्छी नौकरी करने लगे। रवि का सपना एक इंजीनियर बनने का था इसलिए आगे की पढ़ाई करने के लिए वो विदेश चला गया। विदेश जाकर भी रवि और संध्या की बातें अकसर होती रहती थीं।
इस तरह दो साल बीत गए , छुट्टियों में रवि आता कुछ दिन रहता और फिर वापस चला जाता। इस बार दीवाली को फाइनल ईयर की परीक्षा सिर पर थी इसलिए वो घर नहीं आ पाया। दोनो परिवारों में उदासी छाई थी। शाम हुई संध्या भी बुझी-बुझी सी तैयार होकर दीवाली की पूजा में शामिल हुई। घर के आँगन में बच्चे पटाखे फुलझड़ियाँ जला रहे थे, तभी अचानक संध्या की नज़र रवि की छोटी बहन नीरू पर पड़ी। उसके कपड़ों में आग लग गई थी, संध्या उसे बचाने के लिए दौड़ी और झटपट आग बुझाकर उसे किनारे ही ले जा रही थी कि तभी कहीं से एक रॉकेट जलता हुआ उसके चेहरे पर आ लगा।
संध्या बुरी तरह जल गई थी उसे तुरंत ही हॉस्पिटल में भर्ती किया गया। एक हफ्ते बाद जब संध्या के चेहरे की पट्टी खोली गई तो पता चला कि उसने अपनी आँखों की रोशनी खो दी थी। संध्या पर तो जैसे दुखों का पहाड़ टूट पड़ा। वह रवि के बारे में सोचने लगी कि क्या होगा जब उसे पता चलेगा? उसकी तो जान ही मेरी आँखों में बसती है। नहीं, नहीं मैं रवि को इस बारे में कुछ नहीं बताऊँगी उसकी पढ़ाई पर असर पड़ेगा। संध्या ने सबको मना कर दिया कि कोई इस बारे में रवि से कुछ नहीं कहेगा।
इधर कई दिनों से संध्या से जब बात नहीं हुई तो रवि बेचैन हो उठा। जैसे तैसे उसने परीक्षाएँ दी ट्रेनिंग के लिए अभी कुछ समय बाकी था इसलिए वह बिना किसी को बताए चुपचाप लखनऊ चला आया। आते ही सीधे वो संध्या के घर गया। संध्या उस समय मंदिर में बैठी पूजा कर रही थी। रवि इंतजार करने लगा। तभी उसने महसूस किया कि संध्या किसी भी चीज को बड़ी मुश्किल से उठा पा रही थी। उसके हाव-भाव देखकर रवि को कुछ शक हुआ। वह चुपचाप संध्या के सामने जाकर खड़ा हो गया।
“कौन है ?……रवि हो क्या?…..संध्या ने रवि की आहट पहचानते हुए पूछा।
रवि ने कोई उत्तर नहीं दिया। चुपचाप पास रखा एक डिब्बा उठाकर दूसरी ओर फेंका।
“अच्छा! किटी तुम हो चलो चुपचाप एक जगह बैठ जाओ” संध्या ने अपनी बिल्ली किटी को सोचते हुए कहा।
अब रवि को समझते देर न लगी कि संध्या की आँखों की रोशनी जा चुकी है। वह बिना कुछ बोले वापस चला गया। परिवार में भी किसी को पता नहीं चला कि रवि आया था।संध्या जान चुकी थी क्योंकि वो रवि की आहट पहचानती थी । रवि का बिना कुछ कहे ही वापस चले जाना उसे खल गया । वह धीरे-धीरे गुमसुम सी खुद में ही सिमटने लगी। उस दिन के बाद रवि का कोई कॉल संध्या के पास नहीं आया। संध्या के मन में एक ही सवाल अब तक कचोट रहा था कि आखिर रवि ने कुछ कहा क्यों नहीं!??
6 महीने बाद…
आज रवि अपनी ट्रेनिंग पूरी करके लखनऊ वापस लौट रहा था। दोनो परिवारों में खुशियों की लहर छाई थी।
“संध्या तैयार हो बेटा रवि आता ही होगा!” संध्या की माँ ने कहा।
संध्या पर जैसे किसी बात का कोई असर नहीं हो रहा था । उसकी आँखों में एक गहरी उदासी अपनी जड़ें जमा चुकी थीं। फिर भी वह बेमन से तैयार होकर रवि के घर पहुँची। कुछ देर बाद दरवाजे की घंटी बजी, रवि की बहन ने चहकते हुए दरवाजा खोला। परंतु यह क्या!!?…. सभी हैरान रह गए…..रवि ने अपने साथ पढ़ने वाली नीरजा से शादी कर ली थी, वह उसके साथ ही घर लौटा था।
“रवि तुमने ये क्या किया? तुमने एक बार भी संध्या के बारे में नहीं सोचा?” सभी एक साथ रवि पर चिल्लाने लगे।
“तो क्या चाहते थे आप लोग मै एक इंजीनियर होकर एक अंधी लड़की से शादी कर लेता ताकि दुनिया मेरा मज़ाक बनाती” रवि ने झुँझलाते हुए कहा।
रवि को जोर से तमाचा लगाते हुए रवि की माँ कहने लगी “अरे तुझे पता भी है कि संध्या की आँखें कैसे……….?” तभी संध्या ने उन्हें रोक लिया।
“अगर रवि की खुशी नीरजा के साथ है तो हम सभी को उसकी खुशी में ही खुश होना चाहिए” संध्या ने सबको समझाते हुए कहा।
“तो सचमुच रवि को मेरी आँखों से ही प्रेम था मुझसे नहीं…हाँ आज मेरी आँखों की रोशनी चली गई तो रवि ने मुझे छोड़ दिया। क्या उसका प्रेम केवल दिखावा था!?”
उस दिन संध्या घर आकर बहुत रोई। अगले दिन वह अपनी मौसी के घर सिक्किम चली गई।
महीने बीतने लगे। रवि नीरजा के साथ बहुत खुश था कि एक दुखद खबर उसे पता चली। नीरजा माँ नहीं बन सकती थी। रवि मार्डन ख्यालों का था, उसने नीरजा को समझाया कि आज साइंस ने काफी तरक्की कर ली है। तुम्हे चिंता करने की जरूरत नहीं । हम कल डॉ० से मिलते हैं। डॉ० ने दोनो सेगोरेसी बेबी करने सलाह दी । दोनो राजी हो गए। बहुत प्रयास करने पर भी उन्हें कोई सेगोरेट मदर नहीं मिल पा रही थी। नरेंद्र और नीरजा अपनी इस खुशी को पाने के लिए अपनी सारी दौलत लुटाने के लिए तैयार थे लेकिन फिर भी उन्हें कामयाबी नहीं मिल पा रही थी। एक दिन उनकी खुशी का ठिकाना न रहा जब डॉ० ने कॉल कर के कहा कि उन्हें एक सेगोरेट मदर मिल गई है लेकिन उसकी शर्त है कि वो अपनी पहचान गुप्त रखना चाहती है, बच्चा होने पर उन्हें सौंप दिया जाएगा। दोनो ने तुरंत शर्त मानकर हाँ कर दी और बहुत खुश थे । नौ महीने बाद रवि और नीरजा डॉ० के पास गए। कुछ देर बाद रवि की गोद में डॉ० ने एक बच्ची रखा तो रवि उस बच्ची की आँखे देखता रह गया। जैसे उसकी आँखों से उसका बहुत गहरा नाता है। बरबस ही वह अपना बरसों पुराना गीत ” तेरी आँखों के सिवा दुनिया में रखा क्या है….. फिर से गुनगुना उठा। रवि अभी बच्ची को देख ही रहा था कि रवि की माँ रोते बिलखते हॉस्पिटल पहुँची। रवि यह देखकर हैरान था कि उसकी माँ खुश होने के बजाय रो रही थी और उससे मिलने नहीं बल्कि किसी और को देखने आई थी, उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था। वह बच्ची को नीरजा को देकर माँ के पीछे भागा। माँ सीधे जाकर बेड पर पड़ी एक लाश से लिपट कर रोने लगी।
रवि ने गौर से उस लाश को देखा, उसके मुँह से आवाज़ निकली, “संध्या???? यहाँ इस तरह?????….रवि को अब समझते देर न लगी। वो सेगोरेट मदर संध्या ही थी जिसने रवि की बच्ची को जन्म दिया था। जन्म देते समय संध्या की मृत्यु हो गई थी।
“आज संध्या ने दूसरी बार हमारे परिवार की खुशियाँ बचाई रवि” रवि की माँ ने कहा।
“दूसरी बार!!???…..मैं समझा नहीं माँ!!”…..रवि ने बेचैन होते हुए पूछा।
“हाँ दूसरी बार। पहली बार तब जब तुम्हारी बहन को बचाते हुए उसकी आँखों की रोशनी चली गई। आज जाते-जाते उसने तुम्हें अपनी परछाई सौंपी है रवि, अब इसे संभाल कर रखना” माँ ने कहा।
रवि को जैसे साँप सूँघ गया। संध्या ने उसे पछताने तक का मौका नहीं दिया था। अब एक अपराधबोध भाव के साथ वह कभी संध्या को तो कभी अपनी बच्ची को निहारता हुआ गुनगुना रहा था….”तेरी आँखों के सिवा दुनिया में रखा क्या है।”