कुछ खरी-खरी : जिला और पुलिस प्रशासन की कार्यप्रणाली समझ से परे, जिलाधिकारी नहीं करें काम, उनके काम को कलेक्टर दे अंजाम, किस काम के नगर निगम में ऐसे तमाम अधिकारी और जनप्रतिनिधि

⚫ हेमंत भट्ट

आम जनता ने इस सप्ताह जिला एवं पुलिस प्रशासन के ऐसे ऐसे कार्य देखे हैं जो उनकी समझ से परे हैं। जितने मुंह उतनी बातें हो रही है। जब काम कलेक्टर को ही करना है तो फिर जिलाधिकारी किस काम के। चलो कलेक्टर ने काम कर भी दिया तो जिला अधिकारियों को दंड क्यों नहीं मिला। पुलिस पर जानलेवा हमला करने वाले आरोपी क्या केवल गौ तस्कर ही थे, यह बात भी गले नहीं उतर रही है। शहर विकास की जिम्मेदारी का टोकरा माथे लिए घूमने वाले नगर निगम के जिम्मेदार अधिकारी और जनप्रतिनिधि आखिर किस काम के हैं, जो जन सुविधाओं का ध्यान नहीं दे पाते हैं। विकास कार्य के समय न तो आंखें खुली नहीं रख पाते हैं न ही दिमाग चला नहीं पाते हैं। खामियाजा आमजन को भुगतना पड़ता है और जनधन की हानि होती है सो अलग।

जनसुनवाई में एक बालिका कलेक्टर के पास पहुंची और कहा कि फीस नहीं देने के कारण वह आगे पढ़ नहीं पा रही है। स्कूल वाले सुन नहीं रहे हैं। कलेक्टर तत्काल स्कूल पहुंचे। संचालक से मिले और मीनाक्षी की पढ़ाई सुचारू करवाई। इसी तरह विकलांग भी पहुंचा ट्राईसाईकिल नहीं होने की बात कही। व्यक्ति की परेशानी के मद्देनजर तत्काल उसे ट्राईसाईकिल भी मिल गई, साथ ही कलेक्टर साहब ने उसे ₹500 भी दिए। वह खुशी-खुशी गया।
अब इसमें कलेक्टर की संवेदनशीलता कहें या फिर सुर्खियों में बने रहने के लिए ऐसा कुछ किया। खैर, यदि जिला अधिकारी अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन करते तो आमजन शिकायत लेकर कलेक्टर के पास नहीं पहुंचते। आमजन के कार्य नहीं करने वाले जिला शिक्षा अधिकारी और उपसंचालक सामाजिक न्याय पर कलेक्टर द्वारा कोई कार्रवाई नहीं की गई। उपसंचालक तो कलेक्टर के साथ फोटो खींचाने में मस्त रही। यह भी समझ से परे हैं। यदि वे अपना कार्य इमानदारी से करते तो आमजन को इतनी समस्या नहीं होती। कलेक्टर के पास पहुंचने में उन्हें मंगलवार का इंतजार नहीं करना पड़ता। उन्हें कलेक्टर के दर पर नहीं आना पड़ता। इसका मतलब साफ है कि जिला प्रशासन के अधिकारी कार्य के प्रति लापरवाह बने हुए हैं। जब, सब काम कलेक्टर को ही करना है तो यह अधिकारी किस काम के। कलेक्टर भले ही संवेदनशील है लेकिन अन्य अधिकारी उनसे सबक भी नहीं ले रहे हैं। तो फिर भी काम नहीं करने वाले जिम्मेदार अधिकारी सजा के हकदार तो है ही।

मामला यहां तो सब सीमेंट कंक्रीट खाने का

शहरवासियों को सड़क, पानी, सफाई, नाली, बिजली तमाम सुविधाएं बेहतर और समय पर उपलब्ध कराने के लिए नगर निगम में अधिकारियों की फौज है। हर वार्ड में पार्षद हैं। इसके बावजूद जिम्मेदार अधिकारी की कार्यप्रणाली हास्यास्पद हो रही है। बात करें घास बाजार से चौमुखी पुल तक बनी फोरलेन सड़क की तो पिछले साल मई में कार्य शुरू किया था। सबसे पहले नाली बनना थी फिर सड़क। तत्पश्चात डिवाइडर। मगर नगर निगम के इंजीनियर ने पहले सड़क बनवाई फिर डिवाइडर बनवाया और अब नाली बनवा रहे हैं। इतना ही नहीं बीच सड़क की नाली में जिम्मेदार ठेकेदार और अधिकारी पाइप डालना ही भूल गए। अब फिर से उसे खोदा गया। आम लोगों को परेशानी का सामना करना पड़ रहा। आखिर जिम्मेदार अधिकारी और जनप्रतिनिधि किस कार्य के लिए नगर निगम में है। ना तो क्षेत्रीय पार्षद ध्यान देते हैं और ना ही अधिकारी। आम जनता के धन का धुला करने में उतारू हैं। ऐसे पर क्यों कार्रवाई नहीं होती।

मामला तो है यहां सीमेंट कंक्रीट खाने का जो

चौमुखी पुल से गणेश देवरी तक बनी सड़क 6 महीने बाद ही उखड़ने लगी। निर्माण कार्य गुणवत्ता हीन हुआ मगर कार्रवाई क्या हुई? किसी को नहीं पता। कहने को तो बड़ी बड़ी बातें की जा रही है कि सीमेंट कंक्रीट की सड़क 10 से 20 साल तक कुछ नहीं कहेगी। सेवा देगी। मगर यह सड़के तो डामर की सड़कों से भी काफी कमजोर निकल रही है। हर दिन सीसी रोड से सीमेंट निकलकर आम जनों के सांस में जा रही है। उनकी सेहत को खराब कर रही है। शहर का इस तरह विकास किया जा रहा है, लेकिन आमजन की सेहत का सत्यानाश हो रहा है। यदि सीसी रोड ही कारगर होती तो फिर फोरलेन पर भी यही बनती। एट लेन पर भी यही बनती। जबकि उन्होंने ऐसा कुछ नहीं किया। डामर की सड़क बनाई। और वैसे भी गति के लिए डामर की सड़क ही चाहिए ताकि वाहन की पकड़ सड़क से बनी रहे। जरा से में स्लिप ना हो, अनियंत्रित ना हो। लेकिन तथाकथित इंजीनियरों को कौन समझाए क्योंकि मामला तो यहां सब सीमेंट कंक्रीट खाने का जो है।

… तो वे पुलिस पर नहीं करते प्राण घातक हमला

आमजन में अब यही चर्चा है कि पुलिस प्रशासन पर जानलेवा हमला कर भागने वाले आरोपी क्या केवल गोवंश की तस्करी ही कर रहे थे? क्योंकि मवेशियों को हाट बाजार में ले जाना तो सामान्य प्रक्रिया है तो फिर तिरपाल से ढके हुए बिना नंबर प्लेट वाले 6 पिकअप वाहन गोवंश से ही भरे थे? कुछ और नहीं था? लोगों ने तो संदेह व्यक्त किया है कि जरूर हथियारों का जखीरा होगा। इसके बाद ही एनआईए का दल भी जिले में सक्रिय हुआ था। हो सकता है हथियार तस्करों को इसकी भनक लगी हो और वह हथियारों को इधर-उधर करने में कामयाब भी हो गए। इसीलिए उस दौरान पुलिस पर जानलेवा हमला करते हुए बैरियर तोड़ते हुए भागने में भी सफल हो गए। अज्ञात पिकअप वाहन चालको के विरुद्ध हत्या का प्रयास की धारा 307 के साथ साथ धारा , 353, 336, 279, 427, 120-बी भादवि का प्रकरण दर्ज किया। 5 दिन बाद पुलिस ने बताया कि वे तो गोवंश की तस्करी कर रहे थे। कुछ को गिरफ्तार कर लिया, बाकी की गिरफ्तारी होना शेष है। यह बात हजम नहीं हो रही है। गले नहीं उतर रही है। जबकि 25 फरवरी को मोबाइल लूटने वाले तीन लोगों को पुलिस ने 5 घंटे में ही गिरफ्तार कर लिया और पुलिस पर जान लेवा हमला करने वाले को पकड़ने में 5 दिन लगा दिए। जो भी हो पुलिस ने जो बताया वह तो आम लोगों को मानना ही है।

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