चीखती मानवता की पुकार : दिल और दिमाग को झकजोरने वाला उपन्यास “फिरोजी आँधियाँ”

⚫ मनीष पब्लिकेशंस का प्रकाशन फिरोजी आँधियाँ” एक बेहतरीन  उपन्यास ही नहीं मनुष्य जीवन का वो दस्तावेज है, जिसे पढ़कर आपका दिल जरूर दहल जाएगा। जानी-मानी लेखिका डॉ. हुस्न तबस्सुम “निहाँ” के उपन्यास से मुझे ऐसा लगा कि यह कोई रोमांटिक उपन्यास होगा, लेकिन पढ़ने के बाद यह लगा कि यह उपन्यास दिल और दिमाग को झकजोरने वाला उपन्यास है। जो पाठक अच्छे साहित्य की तलाश में रहते है और पीड़ा का साक्षात्कार करना चाहते है। उनको फिरोजी आँधियाँ” जरूर पढ़नी चाहिए।

⚫ इन्दु सिन्हा “इन्दु”

भारत नेपाल सीमावर्ती क्षेत्र की सामाजिक ,प्रशासनिक,आर्थिक परिस्थितियों को जिस प्रकार से इस उपन्यास में प्रस्तुत किया गया है ,उनका खुलासा किया गया है वो सटीक और पठनीय है|  लेखिका का देखा हुआ यथार्थ का चित्र है, लेकिन इस सब को ललित और मधुश्री की प्रेम कहानी से जोड़ा गया है, जिससे उसको एक अलग रूप मिलता है। पाठक ग्रामीणों के जीवन की उथल पुथल,संघर्ष को देखकर अंतर तक भीग जाता है।

माओवादी विचारधारा वाली नेपाल सरकार भले ही चीन के सुर में सुर मिला कर विवादों को तूल देने में लगी हो, लेकिन नेपालियों को भारत ही भाता है। उनके दिल में भारत के लिए प्रेम है,आधार है और रोटी बेटी का सम्मान बरकरार है। भारत ने हमेशा ही संयम से काम लिया है। जिससे उसके रिश्ते मजबूत रहे हैं। क्योंकि सुरक्षाबलों के पहरे कितने भी मजबूत हो प्रेम पनप ही जाता है,और प्रेम यूँ भी पाबंदियों के खिलाफ ही रहता है। डॉ. हुस्न तबस्सुम “निहाँ” की कलम ही ऐसे मुद्दे उठा सकती है। वह मुद्दे कहाँ से उठाती है फिर उसकी गहराई में घुसकर अपने आपको उसमें समाहित कर लेती हैं। एकाकार हो जाती है। यही उनकी विशेषता है।


इस उपन्यास में उन्होंने भारत और नेपाल के बीच बसे गांव नरेनापुर के पिछड़े,गरीब निवासियों की समस्याओं को उठाया है।पाठक जैसे जैसेआगे पढ़ता जाता है। उपन्यास हरेक दृश्य पाठकों के दिल और दिमाग पर अंकित होता चला जाता है। अपने ही शासन सत्ता में उलझे हुए शासकों को आम पब्लिक की कोई सुध नहीं रहती ,गरीबी पीड़ा दुख में भी वह आम जन का दुख दूर करने के बजाय उसे और ज्यादा दुख देते हैं। उन लोगों ने जिनके हाथ में जनता की सुरक्षा  होती है,वही तकलीफें,पीड़ा,यातना देते है। उपन्यास की शुरुआत में नेपाल का राष्ट्रीय गीत बताया गया है, राष्ट्रीय गीत में राष्ट्रीय एकता अखंडता और शांति की बात की गई है। माओवाद की घटनाएं पाठक को भीतर तक सोचने को मजबूर कर देती हैं। उपन्यास के संवाद सीधे ह्रदय को छू लेते हैं। उपन्यास की भाषा अवधि है। कहीं-कहीं हिंदी भी है और कुछ आम बोलचाल की भाषा नेपाली भी है। कुछ संवाद देखिए
तू लोन हटक हाउ की चलाई बन्दूकिया—” किंतु नहीं लोगों ने सीना तान लिया।


अब हम गोली  से नाय डरन वाले हन। चलाओ गोली। ओंकार के हाथ पैर फूल गए। तभी भीड़ चीरती हुई मधुश्री आगे आयी, उन्हें देख लोग खुदबखुद पीछे हट गए।
नरेश बवाल नही–जाने दो इनको। वैसे भी काफी देर हो चुकी है। का बात करत हव मेडम–उ दिन तुका नाय याद।
मुझे सब याद है मगर इससे कोई फायदा नही। जरूरी नही की अगला शैतान है तो हम तुम भी शैतान बन जाओ। (पृष्ठ संख्या 41)


अम्मा हल्ला नाय मचाव,कउनोक   कानो कान खबर ना होयेक चाही नाही त मुखबिरी  होई जाई, (पृ संख्या 73)
का बताई  गंवा त के बड़ा बुरा हाल हय ,(73)
अरे ललित रो रहे हो ,नहीं रोते नहीं ,
अब तो जिंदगी भर रोवेक हय मेडम जी, क्या भूत भूतहा कस जिनगी अब पीछा ना छोड़ी। (पृष्ठ संख्या 108)
लेखिका ने सरकारी बजट और बिचौलियों की खींचतान का सजीव चित्रण किया है। इसके साथ ही वो उन तमाम पदाधिकारियो सवाल करती है जो इन हालात के जिम्मेदार है |फिरोजी आँधियाँ” तबस्सुम जी के रचनात्मक नए रूप के दर्शन करवाता है। जिसमे उन्होंने अंतर राष्ट्रीय सीमाओं को स्पर्श किया है। जो पाठक अच्छे साहित्य की तलाश में रहते है और पीड़ा का साक्षात्कार करना चाहते है। उनको फिरोजी आँधियाँ” जरूर पढ़नी चाहिए।


समीक्षक : इन्दु सिन्हा “इन्दु, (लेखिका) रतलाम   

पुस्तक : फिरोजी आँधियाँ (उपन्यास)
लेखिका : डॉ. हुस्न तबस्सुम “निहाँ”
प्रकाशक : मनीष पब्लिकेशन्स
            सोनिया विहार दिल्ली। मूल्य रुपए  300/-

लेखिका का परिचय

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