मुद्दे की बात : आत्मा नगण्य, कौन लड़ेगा शुद्ध का युद्ध एक कल्पना

⚫ मिलावटी खाद्य से आँखों की रोशनी जाना, यकृत खराब होना, कुष्ठ रोग, पक्षाघात, कैंसर और असमय अचानक हृदयघात जैसे गम्भीर मामले सामने आ रहे हैं। हल्दी में सिंदूर या लेडकोमेट और मेटालिन जैसे अप मिश्रण से प्रजनन शक्ति चली जाएगी। लाल मिर्च में रोडामाईन मिलाया जाता है जिससे गुर्दे की बीमारी होती है। मिलावट का बाजार इतना बड़ा है कि इसे एकाएक रोकना असम्भव है लेकिन जिम्मेदार तन्त्र यदि पूरी ईमानदारी और मजबूत इच्छाशक्ति से इसे व्यापक सामाजिक सेवा मान कर करे तो क्या नहीं हो सकता।एक आवाज यदि संकल्प से उठती है तो वो अभियान बन जाती है। मिलावटखोर किसी आतंकी से कम नहीं वो भी बेकसूरों को मारता है। ये भी यही अपराध करता है और दोनों में एक बड़ी समानता है ये दोनों ही अपराध बोध से मुक्त है। ⚫

⚫ त्रिभुवनेश भारद्वाज

एक स्टडी कहती है कि भारत में खानपान अव्यवस्थित होना रोगों का कारण नहीं है बल्कि रोगों का बड़ा कारण  मिलावटी खाना है। आटा, दाल, दलहन, तेल, दूध, घी, हल्दी, मिर्ची, शाकभाजी, सूखा मेवा, मावा मिष्ठान, आइसक्रीम कुछ भी शुद्ध नहीं।मजाक मत मानिएगा ज़हर तक नकली है। निर्दयी व्यवसायियों ने दवा तक को नकली बनाने से नहीं छोड़ा है। विश्व गुरु कहे जाने वाले देश में इन दिनों मिलावटी आतंक का बोलबाला है और ये काम लाखों व्यवसायी ज्यादा मुनाफे का मानकर निर्भीकता से कर रहे हैं।

खाद्य पदार्थो में गैर खाद्य या विष पदार्थो की मिलावट करना मानव वध जैसा ही अपराध है लेकिन हमारे देश में इस गोरखधंधे पर मुक़म्मलतौर पर शिकंजा कसने के लिए आज तक कोई वातावरण नहीं बना है।कानून तो है मगर कानून के मुहाफिज अपने हित साधने में लगे हैं।अधिकारियों के पास “टारगेट”होते हैं।इसका बड़ा गोपनीय और तकनीकी अर्थ हुआ करता है।देश में अपमिश्रण बड़ी समस्या होने के बावजूद पकड़ धकड़ करने वाला अमला छोटा है और टेस्ट लेब देश में गिनती की है ।इनके काम करने का तरीका बड़ा पेचीदा है।अक्सर दोषी छूट जाते हैं।सन्देह का लाभ तो जैसे हमारी कानूनी व्यवस्था में हर दोषी का हक है ।अपमिश्रम की जांच के लिए कोई मानक न होने से जांच करना सम्भव नहीं लिखते हुए नमूने लौटा दिए जाते हैं।देश में खाद्य सुरक्षा एवम मानक अधिनियम 2005 के तहत उम्रकैद और जुर्माने दोनों की सजा का प्रावधान है ।इण्डियन पैनल कोड की धारा 272,273 ऐसे मामलों पर पुलिस को सीधे कार्यवाही का अधिकार भी देती है।

दुनिया के किसी देश में यूरिया,डिटर्जेंट, शेम्पू,चीनी और सोडियम बाई कार्बोनेट के प्रयोग से दूध और मावा नहीं बनाया जाता होगा।हमारा देश बेईमानी में अव्वल है। देश में स्टेशनों और होटल्स में शुद्ध पानी के नाम पर बोतलबंद पानी भी अशुद्ध ही होता है।यहाँ तकरीबन खाद्य पदार्थों से लेकर सबकुछ मिलावटी है।सब्जी तक निरापद नहीं।स्टडी में कहा है कि भारतीय जांच महकमें इतने भ्रष्ट और गैरजिम्मेदार है कि जिन पदार्थों में अपमिश्रम पर आजीवन कारावास होना चाहिए। उनमें कुछ लाख रुपये लेकर मामला रफा दफा कर देते हैं।सरकारी यूनिट्स बेमानी हो गए हैं इस मिलावट का बाजार जोरशोर से चल रहा है। यहाँ एक ही बाजार में शुद्ध घी 300 से 700 प्रति किलों बिक रहा है और खाद्य विभाग बताने को तैयार नहीं है कि कौन सा घी सही मायने में घी है। इन दिनों आइसक्रीम का बाजार जोर पकड़ रहा है और जानकर दुःखद आश्चर्य होगा ब्रांडेड कहे जाने वाले आइसक्रीम भी दूध से नहीं बल्कि जानलेवा पदार्थों से बनाए जा रहे हैं और बच्चे बड़े सभी खा रहे हैं।आप आश्चर्य करेंगे कि अनेक निर्माता केवल नकली,दूषित और जान लेवा प्रोडक्ट बनाने का काम ही करते हैं।उन्हें कभी पकड़ भी लिया तो मुद्रा के माध्यम से छूट कर काम वही करेंगे ।आप तय नहीं कर सकते कि आपने पूरे पैसे देकर आखिर कितना सही सामान लिया है। आजकल इन्हें शुद्धि की सीता हरने वाला रावण कहा जाता है और मायावी अनगिनत हैं।नकली के बाजार का असली खेल लोभ पर चलता है।

फायदा इतना बड़ा कि कायदा खुसरपुसूर करके आखिर दम तोड़ ही देता है। डीलर और रिटेलर को मार्जिन से सरोकार है वो ये देखते ही नहीं कि ये सौ प्रतिशत मार्जिन कैसे दे रहा है। चुप्पी और लोभ पाप को बढ़ाते हैं।व्यापारी लोभ नहीं त्याग सकता इसलिए खामोशी से अमृत के पैकेट में विष खुद का भरोसा देकर बेच देता है ।भरोसा नीचे तक उतरते हुए विकराल हो जाता है और इस तरह लाखों लोग गलत पदार्थो के सेवन से गम्भीर बीमारियां ओढ क़र अस्पताल के ग्राहक बन जाते हैं या फिर असमय कालकलवित हो जाते हैं और हत्यारे का पता तक नहीं चलता। ऐसा भी नहीं कि खाद्य वस्तुओं में मिलावट को रोकने के लिए कोई आज ही कानून बने हैं। भारतीय खाद्य अपमिश्रण निवारण अधिनियम 1954 पूर्व से ही लागू है लेकिन इसका मिलावटखोरों पर पकड़ मजबूत करने में नाकाम है।अधिनियम कहता है किसी भी खाद्य पदार्थ में कोई ऐसा अपमिश्रण नहीं किया जाए जिससे उस वस्तु का उपयोग हानिकारक हो जाए ।इस कानून में मिलावटखोरों के बच निकलने की इतनी गुंजाइश है कि एक फीसदी प्रकरणों में भी सजा या जुर्माना नहीं हो पाता।


हम बात करते हैं फ़ूड सेफ्टी एण्ड स्टेंडर्ड रेजिलेशन 2011 की जिसमें स्पष्ट प्रावधान किया गया है कि फलों को कार्बाइड गैस से नहीं पकाया जा सकता जबकि फल विक्रेता फलों को पका ही कार्बाइड से रहे हैं।ये एक तीव्र विष ही है लेकिन चिंता किसे है ।फलों पर मोम, मिनरल् आइल का उपयोग प्रतिबंधित है लेकिन देखिए बाजार में अखाद्य घोलो से चमका चमका कर फल बेचे जा रहे हैं।मरी और बासी सब्जियों पर दिनभर रासायनिक घोल छींटकर उसे हरी बनाए रखा जाता है जबकि सब्जी तत्व खो चुकी है और खाने योग्य तो है ही नहीं। आज निर्दयता बाजार पर इस कदर कब्जा जमाए बैठी है कि पैक्ड खाद्य पर मेन्युफेक्चरिंग सील दो दिन आगे की लगी मिलेगी। कोई लुचने वाला नहीं कि भाई जो तारीख अभी आई ही नहीं है उस पर प्रोडक्ट निर्माण करने का चमत्कार आप कैसे कर पा रहे हैं। आज भारत का खाद्य बाजार मिलावटखोरों के चंगुल में फंसा है।सरकारी मिशनरी इक्का दुक्का को घेरती है और बाद में क्या होता है,पता नहीं चलता।जिस तेल से हार्ट ब्लॉकेज की आशंका ज्यादा होती है उसी सस्ते तेल से बाजार में नमकीन बन रहा है और बेरोक बिक रहा है। भारत में खाद्य अपमिश्रम को रोकने वाले विभाग लचर,भ्रष्ट,निकम्मेपन का शिकार है और व्यवसायी भी लगभग आत्मा बेचकर काम करने को अधिक लाभ का विकल्प आते हैं इसलिए बिक रही है आत्मा और मर रहे हैं लोग। भारत सरकार के हवाले से प्रकाशित एक रिपोर्ट में मिलावटी खाद्य से स्वास्थ्य को नुकसान बताया है जिसमें आँखों की रोशनी जाना, यकृत खराब होना, कुष्ठ रोग, पक्षाघात, कैंसर और असमय अचानक हृदयघात जैसे गम्भीर मामले सामने आ रहे हैं।

जाहिर है हम बाजार से क्या ला रहे हैं और उससे हमारा जीवन कितना संकटग्रस्त हो रहा है,गहरी चिन्ता की बात है। इस रिपोर्ट में तो बाकायदा तालिका बनाकर बतलाया गया है कि सरसों के तेल में आर्जीमोन तेल मिलने से आंखें कमजोर और हृदय की धमनियां सिकुड़ेगी। चना दाल और बेसन में खेसरी दाल या इसका बेसन मिलाने से लकवे और कुष्ठ रोग हो सकते हैं। हल्दी में सिंदूर या लेडकोमेट और मेटालिन जैसे अप मिश्रण से प्रजनन शक्ति चली जाएगी। लाल मिर्च में रोडामाईन मिलाया जाता है जिससे गुर्दे की बीमारी होती है। मिलावट का बाजार इतना बड़ा है कि इसे एकाएक रोकना असम्भव है लेकिन जिम्मेदार तन्त्र यदि पूरी ईमानदारी और मजबूत इच्छाशक्ति से इसे व्यापक सामाजिक सेवा मान कर करे तो क्या नहीं हो सकता।

राज्य सरकार अपमिश्रण की जांच के लिए जिला स्तर पर सक्षम प्रायिगशालाएँ स्थापित करें और दो दिन में मिलावट की रिपोर्ट के साथ विशेष न्यायालय एक माह में दोषियों को सजा सुनाए तो भय निर्मित हो सकता है और भय ही बाजार को सुधार सकता है ।इस विषय पर जन जागरूकता की भी आवश्यकता है ।जनता जितनी जागरूक होगी। उतनी ही सुरक्षित और अधिकार सम्पन्न होगी अभी तो ये हाल है कि दुकानदार जो दे रहा है वो खा रहे हैं। एक आवाज यदि संकल्प से उठती है तो वो अभियान बन जाती है ।मिलावटखोर किसी आतंकी से कम नहीं वो भी बेकसूरों को मारता है और ये भी यही अपराध करता है और दोनों में एक बड़ी समानता है ये दोनों ही अपराध बोध से मुक्त है।

⚫ त्रिभुवनेश भारद्वाज

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *