कुछ खरी-खरी : भाजपा बोले तो राम भरोसे हिंदू होटल, राम नाम की लूट है…, अधिकारी हो या कर्मचारी काम नहीं करने की बड़ी बीमारी
हेमंत भट्ट
देश, प्रदेश और शहर में भारतीय जनता पार्टी की सरकार का राज है। लेकिन आम जनता के काज से दूर-दूर तक का कोई वास्ता नहीं है। शासन और प्रशासन आम जनता की सुविधा के लिए बड़ी-बड़ी डींगे हांक रहा है लेकिन सरकारी अधिकारी और कर्मचारियों में आपसी तालमेल ही नहीं है। राम भरोसे हिंदू होटल की तरह सरकार चल रही है। जो सरकार से जुड़े हुए हैं, गांधी दर्शन के बल पर उनका एक ही मंत्र है राम नाम की लूट है, लूट सके तो लूट। शहर के लाखों रहवासियों की समझ से परे है कि शहर का विकास हो रहा है अथवा विनाश। पर्यावरण की दुहाई देने वाले तो धृतराष्ट्र बने हुए हैं हीं। जिम्मेदारों को तो पर्यावरण से कोई लेना-देना ही नहीं।
प्रदेश के नगरीय विकास एवं आवास मंत्री भूपेंद्र सिंह ने 13 नवंबर 2022 को मुख्यमंत्री शहरी अधोसंरचना विकास योजना (तृतीय चरण) के अन्तर्गत अमृत सागर उद्यान से बाजना बस स्टैण्ड फोरलेन मार्ग का भूमि पूजन किया था। जिस पर 288.00 लाख रुपए की लागत आने की बात बताई गई थी। अमृत सागर उद्यान से बाजना बस स्टैंड तक की सड़क टुकड़ों टुकड़ों में बन रही है। आधा साल बीतने को आया मगर आधा किलोमीटर सड़क भी नहीं बन पाई। भाजपा में तो राम भरोसे हिंदू होटल चल रही है। काम हुआ तो हुआ, नहीं हुआ तो नहीं हुआ, क्या कर लोगे? हमारी सरकार, हमारी मर्जी, हम काम कैसा भी करें। काम का ठेका तो हमें ही मिलना है। हम भाजपा के, हमारे लोग भाजपा के, मगर धन जनता का, जनता के लिए आधा भी खर्च नहीं।
खास बात तो यह है कि फोरलेन के बीच में विद्युत वितरण कंपनी के पोल लगे हुए हैं जिनको अभी तक नहीं हटाया गया है। आसपास सड़क बन चुकी है। यहां तक की डीपी भी नहीं हटाई गई। ऐसा लगता है कि जो आड़े टेढ़े चलते हैं, उनके लिए ही यह मार्ग सही रहेगा। बाकी सीधे चलने वालों के लिए मार्ग कष्टप्रद साबित होगा।
सरकार के ही ठेकेदार और सरकार के ही अधिकारी कर्मचारी हैं। मगर विद्युत पोल हटाने में इतनी लापरवाही। मतलब बात यह हो गई कि हम काम नहीं करेंगे ना कोई हमारा तालमेल है, हमारा जनता की सुविधा से कोई दूर-दूर तक लेना देना नहीं है। शहर के लाखों रहवासियों की समझ से परे है कि आखिर हो क्या रहा है। जो काम पहले हो जाना चाहिए, वह अब तक नहीं हो रहा है। न जाने कब पोल हटाए जाएंगे। जब हटाएंगे फिर निर्माण कार्य ध्वस्त होगा। सुविधा और असुविधा में तब्दील होगी। हालांकि अभी भी असुविधा ही हो रही है। जिम्मेदार लोग दुविधा बने हुए हैं। नगर सरकार को इस से कोई लेना-देना नहीं है। विधायक झांकने को तैयार नहीं है। आखिर तालमेल बिठाने में जिला प्रशासन के अधिकारी नाकाम क्यों साबित होते हैं।
काम शुरू हो जाता है, पूरा कब होगा किसी को नहीं पता
शहर में इतने सारे कार्य हो रहे हैं लेकिन बावजूद इसके ठेकेदार को भी जन सुविधा से कोई सरोकार नहीं है। उसका तो काम यही है येन केन प्रकारेण काम शुरू करें। पूरा कब करेंगे? इसकी कोई जिम्मेदारी नहीं, जबकि होना यही चाहिए कि जिन ठेकेदारों को एक काम दें, उसे उसकी पूर्णता की समय सीमा तय हो, उसमें पूरा करें तो फिर दूसरा काम दिया जाए लेकिन ऐसा नहीं है। भाजपा में तो राम नाम की लूट मची हुई है लूट सके तो लूट। जन सुविधा के लिए खर्च की जाने वाली राशि का 50 फीसद से ज्यादा हिस्सा तो गांधी दर्शन के नाम पर इधर उधर हो जाता है शेष हिस्से में काम होना है। अब भला आधी से भी कम कीमत में काम क्वालिटी वाला कैसे पूरा होगा? यह तो ऊपर वाला ही जाने, यानी कि भाजपा वाले ही जाने। यह बात किसी से छिपी नहीं है कि भाजपा के शासन में ठेकेदारों की जितनी मौज हुई है, उतनी ही परेशानी आम जनता की हो रही है।
मनमानी का दूसरा नाम ही भाजपा
मनमानी करने का दूसरा नाम ही भाजपा है। आप कितनी भी मनमानी करो बस भाजपा का झंडा थामे रखो। रात की एक एक बजे तक तेज आवाज में भजन हो रहे हैं, मगर उनको रोकने वाला कोई नहीं है। धर्म के नाम पर धंधा बना रखा है। धर्म के धंधे में भी ऐसे ऐसे लोग शामिल हैं जिनको धार्मिक कहने में भी संकोच होता है। शिकायत भी की जाती है तो उन लोगों को फरियादी का नाम भी बता दिया जाता है ताकि उन से दुश्मनी हो। उनके हाथ पैर तोड़ दें। या फिर उनकी बहू बेटियों के साथ बदतमीजी करें। उससे कानून व्यवस्था बनाने वालों को कोई फर्क नहीं पड़ता। वह तो ऐसे धंधेबाजो के खास हो जाते हैं।
उजाड़ा चमन, पर्यावरण विदों को नमन
यह समझ से परे है कि शहर विकास के मार्ग पर चल रहा है या विनाश के? क्योंकि जिधर देखो उधर सीमेंट कंक्रीट की सड़कें धड़ल्ले से बनाई जा रही है जो कि पर्यावरण को नुकसान दे रही है। सीमेंट कंक्रीट सड़कों से ही गर्मी भी बढ़ रही है, लेकिन कौन समझाए? पर्यावरण की बात करने वाले सब मौन हैं। एक समय में बारिश का पानी छत से जमीन में ले जाने के लिए रूफ हार्वेस्टिंग सिस्टम अनिवार्य किए गए थे लेकिन वह बात भी आई गई हो गई क्योंकि अब तो सरकार ही सीसी रोड को बढ़ावा दे रही है। जब सड़कों से पानी बह कर चला जाता है। जमीन में जाता नहीं है तो फिर तो आमजन पानी जमीन के अंदर कैसे ले जाएं। शहर के पर्यावरण विदों को किसी से कोई लेना देना नहीं है, उनकी अपनी दुकानदारी जो चल रही है।
दशकों पहले बनाया गया शहर का गांधी उद्यान विकास के नाम पर उजड़ा चमन कर दिया गया। जिम्मेदारों को भी पता था कि दिन में सैकड़ों वृक्षों की हत्या की जाएगी तो लोग करने नहीं देंगे। इसलिए सोची समझी साजिश के तहत षडयंत्र पूर्वक रातों-रात झटके में हरे भरे पेड़ों की बलि चढ़ा दी। इस मुद्दे पर इस पर्यावरणविदो की जुबान तक नहीं हिली। कांग्रेसियों ने जरूर दमखम दिखाया मगर नाकाफी रहा, जबकि इसमें पूरे शहर को उद्वेलित हो जाना चाहिए था कि आखिर शहर का विकास कर रहे हैं या विनाश कर रहे हैं। किस ओर शहर को ले जा रहे हैं। क्या आप की दूरदृष्टि यह है। शायद शहरवासी इसीलिए मुंह में दही जमाए बैठे हुए हैं कि उनकी सुनेगा कौन ना अधिकारी सुनते हैं ना जनप्रतिनिधि सुनते हैं। ना ही मुख्यमंत्री सुनते हैं। जिस जमीन पर पौधे लहलहाने चाहिए, बच्चों का मनोरंजन होना चाहिए, उन बगीचों में मंदिर उग रहे। भाजपा के पित्र पुरुष विराजित हो रहे हैं। इसके लिए भी झाड़ काट दिए गए थे कभी।
जनसुनवाई में भी अपनी ही पीठ थपथपाई
शहर और जिले के लाखों लोग परेशान होते हैं मगर जनसुनवाई में कुछ सैकड़ों लोग ही पहुंच पाते हैं। जिसमें से कुछ दर्जन लोगों के काम कर दिए जाते हैं और बाकी आश्वासन की पटरी पर दौड़ा दिए जाते हैं। सब को पता है कि आश्वासन केवल आश्वासन ही साबित होगा। काम होने जाने वाला नहीं है। गलती तो अधिकारी और कर्मचारी ही करते हैं और उसका खामियाजा लोगों को और संस्थाओं को भुगतना पड़ता है। जो काम उनको करना है, वह करते नहीं हैं। बस उनकी तो दाढ़ पर मिठाई का या यूं कहे की आंखों को गांधी दर्शन की जो लत लग गई है, उसको बिना यह कुछ करते नहीं हैं। भले ही अधिकारी निर्देश देते-देते थक जाए या उसका तबादला हो जाए मगर इनका तो बाल भी बांका होने वाला नहीं है। आमजन के काम नहीं करेंगे मतलब नहीं करेंगे ऐसी कसम खा रखी है। यह बीमारी अधिकारियों और कर्मचारियों में लगी हुई है। जिसका उपचार नहीं हो पा रहा है।
आ रही आम जनता उनके झांसे में
मुख्यमंत्री हेल्पलाइन में समस्या का समाधान किए बिना ही येन केन प्रकारेण उसे क्लोज करवा दिया जाता है। जिम्मेदार अधिकारी संवेदनशीलता के नाम की प्रसिद्धि पा जाते हैं। मुख्यमंत्री से शाबाशी पा जाते हैं। फिर भी आम जनता भी उनके झांसे में आ जाती है।