चिंतन का फर्क : जो बात 28 साल पहले सुझाव के माध्यम से नगर नियोजक अनिल झालानी ने बताई गई थी, उस पर अब हुआ अमल

रिपोर्ट मंगवाई मगर नहीं हुई निर्णायक कार्रवाई

⚫ स्वायत्तशासी संस्था को दी जाए अंशधारी की मान्यता

हरमुद्दा
रतलाम, 25 अप्रैल। विगत दिवस मध्यप्रदेश शासन द्वारा स्थानीय निकायों को व्यापारिक संस्थानों लाइसेंसींग श्रेणी में लाकर के कतिपय शुल्क आरोपित करते हुए स्थानीय निकायों की आय में वृद्धि का कदम उठाया गया है। इसी मुद्दे को लेकर आज से करीब 28 साल पहले नगर नियोजक अनिल झालानी ने यह सुझाव देकर पहल की थी, मगर ध्यान नहीं दिया गया।

श्री झालानी ने बताया कि मध्य प्रदेश सहित देश की समस्त स्वायत्तशासी निकायों की आर्थिक स्थिति बहुत जर्जर व दयनीय है वे केन्द्र और राज्य शासन से प्राप्त अनुदान और सहायता और ऋण लेकर जीवित है। 1993 में संविधान के 74 वें संशोधन के पश्चात स्थानीय निकायों के ऊपर लोक सेवा की जिम्मेदारियों का बोझ बहुत अधिक बढ़ा दिया गया है । किंतु उसके अनुपात व उस परिपेक्ष्य में आय के स्रोतों का नवसृजन नहीं हो सका है । जिससे शहरों के विकास कार्य भी प्रभावित हो रहे हैं।

आर्थिक स्थिति सुदृढ़ करने के लिए करें प्रयास

नगर नियोजक अनिल झालानी ने आज से 28 वर्ष पूर्व अपनी दूरदर्शिता से इस बात को भाप लिया था। 22 जनवरी 1995 को तत्कालीन सरकार से निवेदन किया था कि स्थानीय संस्थाओं की आर्थिक स्थिति सुदृढ़ करने के लिए प्रयास किया जाए।

श्री झालानी ने राज्य शासन से निवेदन किया था कि राज्य शासन अपनी किसी एक बड़ी आमदनी को स्वायत्तशासी को सौपे। साथ ही यह भी सुझाव दिया कि डाॅ. सवाई सिंह सिसादिया की अध्यक्षता में गठित राज्य वित्त आयोग की अंतरिम रिपोर्ट मंगा कर स्थानीय संस्थाओं के पक्ष में वितरित एवं विभाजित किए जाने वाले कर राजस्व के अंशदान हेतु के स्थानीय संस्थाओं के प्रतिनिधियों को अध्ययन के लिए भेजे। उनके विचार और अभिमत जानने के पश्चात ही आयोग को अपनी पूर्ण रिपोर्ट प्रस्तुत करने के के लिए कहा जाए।

तो विकास के लिए नहीं होगी आर्थिक

श्री झालानी ने शासन को यह भी सुझाव दिया था कि स्थानीय संस्थाओं में स्थापना तथा प्रशासनिक व लोक सेवा से सम्बन्धित विविध कार्यो तथा विकास व निर्माण पर होने वाले व्यय को उचित अनुपात में निर्धारित कर उन्हें कानूनी रूप देकर प्रतिबंधित किया जाए। ऐसा करने से शहरों में किए जाने वाले अतिआवश्यक विकास कार्य निकायों कि आर्थिक कमी की वजह से प्रभावित नहीं हो सके । अथवा स्थानीय निकायों की आय प्रशासनिक व स्थापना व्यय में ही नहीं चली जाए।

रिपोर्ट मंगवाई मगर नहीं हुई निर्णायक कार्रवाई

झातव्य है कि श्री झालानी ने इस सुझाव पर सरकार ने वित्त आयोग से तत्समय प्रथम अन्तरिम रिपोर्ट भी मंगाई किन्तु उस पर निर्णायक कार्यवाही नहीं हो सकी और न ही निकायों की आय मे वृद्धि करने पर सरकारों ने कोई ठोस निर्णय लेकर के कदम उठाए। परिणाम यह है कि आज शहरों मे विकास सम्बन्धी कार्य सिर्फ केन्द्र या राज्य सरकारों की सहायता पर निर्भर है।

स्वायत्तशासी संस्था को दी जाए अंशधारी की मान्यता

श्री झालानी ने विगत दिनों केन्द्र सरकार द्वारा गठित 16 वे वित आयोग के संबंध में पुनः यह सुझाव दिया है कि केन्द्र को प्राप्त होने वाले राजस्व के केन्द्र और राज्य सरकारों के मध्य विभाजन के जो प्रावधान है। उसमें संशोधन करते हुए वर्तमान समय में स्वायत्तशासी संस्थाओं की भूमिका एवं दायित्वों को दृष्टिगत रखते हुए स्वायत्तशासी संस्थाओं को भी अंशधारी की मान्यता देकर इससे राजस्व को केन्द्र, राज्य व स्थानीय निकाय त्रिस्तरीय श्रेणी बनाकर विभाजन की रूपरेखा बनाई जाए।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *