संवेदनहीन चिकित्सा अधिकारी और बेबस पिता : मोटरसाइकिल पर गोद में बेटी का शव लेकर 70 किलोमीटर के सफर पर निकलने को मजबूर पिता

किसी ने दी कलेक्टर को सूचना फिर हुआ इंतजाम

⚫ बार-बार गरीब व्यक्तियों को ऐसे ही होना पड़ता है जलील सरकारी सिस्टम से

⚫ मवेशियों के शव ले जाने के लिए वाहन, इंसानों के लिए नहीं

हरमुद्दा
शहडोल, 16 मई। एक बार फिर चिकित्सा से जुड़े लोगों ने संवेदनहीनता साबित कर दी। बेटी की मौत के बाद पिता को शव वाहन देने से मना कर दिया, बेबस पिता क्या करता? बाइक पर सवार होकर बेटी के शव को गोद में रखकर 70 किलोमीटर के सफर पर पिता निकल पड़ा। गनीमत किसी संवेदनशील व्यक्ति ने कलेक्टर को सूचना दी और फिर इंतजाम हुआ।

हुआ यूं कि जिले के बुढ़ार ब्लाक के कोटा गांव निवासी लक्षमण सिंह गोंड की 13 साल की बालिका माधुरी सिकल सेल बीमारी से ग्रसित थी, जिसे इलाज के लिए संभाग के सबसे बड़े कुशाभाऊ ठाकरे जिला अस्पताल में भर्ती कराया गया था। इलाज के दौरान सोमवार की रात में बालिका की मौत हो गई। स्वजन शव को अपने गृह ग्राम तक ले जाने के लिए शव वाहन मांगा तो अस्पताल प्रशासन ने कहा कि 15 किलोमीटर से ज्यादा दूरी के लिए नहीं मिलेगा। आपको खुद इंतजाम करना पड़ेगा। पिता निजी शव वाहन का खर्च नहीं उठा पाने की स्थिति में खुद बेटी का शव लेकर बाइक में निकल पड़ा।

मवेशी के लिए सर्व वाहन की है व्यवस्था इंसानों के लिए नहीं

आदिवासी बाहुल्य शहड़ोल संभाग में कभी खाट पर तो कभी मोटरसाइकिल, रिक्शा व हाथ में लेकर जाने के मामले सामने आते रहते हैं। इसकी जानकारी शासन प्रशासन तक भी पहुंचती है, इसके बावजूद स्थाई व्यवस्था नहीं बनाई जा रही है। जब किसी मामले में हल्ला मच जाता है विकल्प निकालकर काम किया जा रहा है। शर्मनाक स्थिति है कि मवेशियों के शव ले जाने के लिए वाहन उपलब्ध है लेकिन मनुष्य को शव वाहन उपलब्ध कराने में शासन प्रशासन फेल है।

सरकारी सिस्टम है लचर

संभाग के मेडिकल कालेज जिला अस्पताल सहित कहीं भी शव वाहन की व्यवस्था नहीं है। सामाजिक संगठनों के माध्यम से शव वाहन उपलब्ध कराए गए हैं जिसके संचालन की जवाबदारी नगरपालिका को दी गई है, लेकिन सरकारी सिस्टम ऐसा बिगड़ा है कि एन वक्त पर नगरपालिका भी वाहन उपलब्ध नहीं करा पाती है।

सरकारी स्तर पर शव वाहन उपलब्ध नहीं

जानकारी के अभाव में शव वाहन नहीं मिल पाया था, जिसे फिर शव वाहन उपलब्ध करा दिया गया। पीड़ित व्यक्ति बहुत दूर तक नहीं गया था। कई वह लोग जानकारी नहीं देते जबकि हमने इसका प्रचार-प्रसार भी कराया है। अस्पताल में सूचना भी लगी है कि शव वाहन के लिए कहां फोन करना है। सरकारी स्तर पर शव वाहन उपलब्ध नहीं है लेकिन हमने सामाजिक संगठनों के माध्यम से व्यवस्था की है।

वन्दना वैद्य, कलेक्टर, शहडोल

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *