मुद्दे की बात : मुद्दा बेशकीमती जमीन का, शासकीय कॉर्ड में हुए घोटालो से लीज की जमीन को निजी बताकर काट दी कॉलोनी, षड्यंत्रकरियों पर हो कार्रवाई, पुन: शासकीय घोषित किया जाए भूमि को

बेशकीमती आईस फैक्ट्री की जमीन के मामले में पूर्व पार्षद एवं एडवोकेट ने दायर की जनहित याचिका

⚫ तत्कालीन महाराजा ने प्रेमनाथ पुरी को दी थी जमीन लीज पर

हरमुद्दा
रतलाम, 28 मई। आईस फेक्ट्री की शासकीय कॉर्ड में हुए घोटालो से लीज की जमीन को निजी बताकर कॉलोनी काटने की संपूर्ण कार्रवाई के विरूद्ध गत दिनों हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की गई है। धैर्य चिकन बताया कि महाराजा ने उद्योग के लिए लीज पर जमीन की थी जिसे हेराफेरी करके निजी स्वामित्व की बना लिया इतना ही नहीं पिता के जीवित रहते पुत्र में अपने नाम की पावती भी निकलवा ली। इस कार्य में अन्य लोगों ने की मिलीभगत भी रही संपूर्ण प्रकरण की विवेचना कर इस कार्य में लिप्त लोगों पर भी कार्रवाई की जाए। हस्तांतरण अवैध और शून्य घोषित किया जाए।

यह याचिका शहर की सामाजिक कार्यकर्ता, पूर्व पार्षद एवं एडवोकेट अदिति दवेसर में दायर की है।

एडवोकेट अदिति दवेसर

लीज की जमीन में गड़बड़ी कर निजी जमीन कर्रवाई

दायर याचिका में अदिती दवेसर ने कहा कि वर्तमान लीजधारी जोगेन्द्र नाथपुरी द्वारा समय-समय पर शासकीय कागजो में झूठी जानकारियां दी। अफसरों से साठगाठ कर लीज की जमीन को धीरे-धीरे अपने स्वामित्व की अभिलेखों में दर्ज करा ली।

100 करोड़ की जमीन को अपने नाम कर बेचा

यह एक लम्बी कहानी है, जिसमे धोखाधड़ी का सुनियोजित षड्यंत्र रचते हुए लगभग 100 करोड़ की इस भूमि को अपने नाम पर चढ़ा कर ताबड़तोड़ विक्रय कर दिया।

तत्कालीन महाराजा ने दी लीज पर उन्हें जमीन

श्रीमती दवेसर द्वारा न्यायालय को यह बताया गया है कि वह भूमि लीज पट्टे पर प्रेमनाथपुरी जो की जोगेन्द्रनाथपुरी के पिताजी थे, उनको सीधे-सीधे 1946 में 99 वर्ष की लीज पर तत्कालिन महाराजा श्री सज्जन सिंह जी द्वारा आईस फैक्ट्री स्थापना के विशेष प्रयोजन के लिए आवंटन कर उद्योग चलाने की अनुमति दी गई थी।

इस तरह से आया कहानी में मोड़

कहानी में मोड़ किस प्रकार आया। यह शासकीय अधिकारी भी कभी नहीं जान पाए। शासकीय रिकार्ड में श्री प्रेमनाथपुरी के नाम के आगे उनके पिता आर.बी. (राय बहादुर) रामरतन का नाम दर्ज हुआ। पूर्व के समय सभी लोग अपने नाम के आगे अपने पिताजी का नाम लगाया करते थे शायद उसी परिपाटी का पालन करते हुए शासकीय अभिलेखो में आर.बी. (राय बहादुर) रामरतन का नाम दर्ज किया गया होगा। श्री आर.बी. (राय बहादुर) राम रतन की मृत्यु वर्ष 1955 में हो चुकी थी जबकि आईस फेक्ट्री की लीज होल्ड जमीन प्रेमनाथपुरी के नाम पर आवंटित की गई थी। इस प्रकार आर.बी. रामरतन का इस संपत्ति पर किसी भी प्रकार का कोई अधिकार नहीं था।

सुनियोजित तरीके से हेर फेर

परन्तु इस नाम के आधार का फायदा उठाते हुए षडयंत्रकारी जोगेन्द्रनाथपुरी ने वर्ष 1970 में अपने पिताजी प्रेमनाथपुरी के जीवित रहते हुए सुनियोजित तरीके से शासकीय अभिलेखो में हेराफेरी करने के उद्देश्य से अधिकारियो को भ्रमित कर अंधेरे में रखते हुए आर.बी. रामरतन की वर्ष 1955 मे मृत्यु होना बताकर, स्वयं के नाम जोगेन्द्रनाथुपुरी का नाम दर्ज करने का आवेदन प्रस्तुत किए बिना राजस्व अधिकारियो को आगे कर वर्ष 1970 में कार्रवाई प्रारंभ कर धीरे से वर्ष 1972 मे प्रेमनाथपुरी के स्थान पर, जो कि जीवित थे। और मूल लीज धारित है, उनके जीवित रहते हुए इस भूमि का लीजधारी के नाम पर जोगेन्द्रनाथपुरी का नाम बतौर शासकीय पट्टा ग्रहिता दर्ज कर दिया।

इस तरह के दस्तावेज बना लिया

वर्ष 1975 में जब नई पावतिया बनना शुरू हुई तब 50978 क्रमांक की एक भू-अधिकार ऋण पुस्तिका जोगेन्द्रनाथपुरी को बतौर लीजधारी जारी हुई किन्तु कुटरचित दस्तावेज कर उन्होंने लीजधारी के चिह्न को मिटाकर अपने हाथ से भूमि स्वामी चिन्ह पर (1) का निशान लगाकर एक कुटरचित दस्तावेज तैयार किया जिसके आधार पर बाद में उन्होने पूरे प्रशासन को बर्गलाकर भूमि अपने नाम करने का एक गहरी साजिश की, जिसमे सफल भी हुए है।

पिता के रहते हुए पुत्र का नाम कैसे हो गया दर्ज 5 साल पहले

श्रीमती दवेसर ने अपनी याचिका में बताया कि वर्ष 1946 में प्रेमनाथपुरी के नाम पर संपादित लीज पत्र प्रेमनाथपुरी के जीवनकाल में बिना शासकीय अनुमति के इस लीज को किसी अन्य के नाम पर नामांतरण करने का किसी को भी अधिकार नहीं था किन्तु आर.बी. रामरतन की मृत्यु की मात्र जानकारी प्राप्त होने तथा फर्जी पारिवारिक लेख का आधार बताकर जोगेन्द्रनाथपुरी ने उनके पिता श्री प्रेमनाथपुरी के जीवित रहते उनका नाम हटाते हुए स्वयं का नाम बतौर लीजधारी बड़ी चालाकी पूर्वक दर्ज कर लिया। प्रेमनाथपुरी की वास्तविक मृत्यु वर्ष 1980 में हुई है और इससे पूर्व उनके पुत्र जोगेन्द्रनाथपुरी का नाम वर्ष 1975 में दर्ज होने का कोई प्रश्न ही नहीं था। वर्ष 1980 के पूर्व जोगेन्द्रनाथपुरी का शासकीय रिकार्ड में नाम दर्ज किया जाना पूर्ण रूप से अवैध, नियम विरूद्ध तथा शासकीय कार्यों में हेराफेरी का व झूठी जानकारी देकर फर्जी दस्तावेजो के द्वारा नाम दर्ज करवाने का मामला बनता है। इस प्रकार इस अवधि मे वर्ष 1975 में उनके नाम से जारी की गई भू-अधिकार पुस्तिका पूर्ण रूप से लीजधारी की अवधि के अंदर भूमि स्वामी की जारी होना पूर्णतया असंभव व अवैध है।

होना चाहिए हस्तांतरण अवैध और शून्य

भू-अधिकार ऋण पुस्तिका के आधार पर किया गया कोई भी हस्तांतरण अवैध व शून्य घोषित होगा। यह एक गंभीर जांच का विषय है। इस बात को तथ्य व प्रमाण सहित श्रीमती दवेसर ने उच्च न्यायालय में एक याचिका दायर की है।

षड्यंत्रकरियों को भेजें सलाखों के पीछे

भूमि को पुनः शासकीय संपत्ति घोषित किया जाए, अपितु षड्यन्त्रकारी जोगेन्द्रनाथपुरी व अपराध में शामिल अन्य लोगों को जेल मे बंद कर कड़ी से कड़ी सजा दी जाए, ताकि भविष्य में इस प्रकार के षड़यंत्र की पुनरावृति ना हो।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *