धर्म संस्कृति : गुरु शिष्य का नाता इतना सा है कि एक है तो दूसरा नहीं
⚫ आचार्य श्री विजय कुलबोधि सूरीश्वरजी म.सा. ने कहा
⚫ गुरु पूर्णिमा पर “सतगुरु शरणं मम” का हुआ आयोजन
हरमुद्दा
रतलाम, 3 जुलाई। मोहन टाॅकीज सैलाना वालों की हवेली में गुरु पूर्णिमा पर आचार्य श्री विजय कुलबोधी सूरीश्वरजी म.सा. की निश्रा में तपागच्छ खरतरगच्छ त्रिस्तुतिक गच्छ के तत्वावधान में सतगुरु शरणं मम का आयोजन हुआ। आचार्य श्री ने कहा कि जीवन में एक गुरु होना चाहिए, गुरु के बिना जीवन अधूरा है। गुरु शिष्य का नाता इतना सा है कि एक है तो दूसरा नहीं। आध्यात्मिक गणित में 1 प्लस 1, 2 नही 1 ही होता है।
आचार्य श्री ने सतगुरु को परिभाषित करते हुए कहा कि पांच गुण जिसमें मिल जाए वही सतगुरु होता है। पहला गुण विशिष्ट नहीं विशुद्ध बनाए, दूसरा सफल के साथ निर्मल बनाए, तीसरा सच्चा नहीं अच्छा बनाए, चैथा सत्य का नहीं स्नेह का दर्शन कराए और पांचवां दीवाल नहीं पूल बनाना सिखाएं, वही सतगुरू है।
उन गुरु को करें वंदन जिन्होंने प्रभु से कराया मिलन
आचार्य श्री ने कहा कि प्रभु कृपा से गुरु और गुरु कृपा से प्रभु मिलते है। हमे उस गुरु का वंदन करना चाहिए, जिसने हमे प्रभु से मिलाया है। संतों के अभिशाप में भी आशीर्वाद होता है। देव और धर्म मिलना आसान है लेकिन गुरु तत्व मिलना मुश्किल है। सतगुरु मिलना अलग है। एक दिन ऐसा होता है जब गुरू और पूर्णिमा एक साथ होते है। आज गुरु पूर्णिमा है, दुनिया में सिर्फ यह कहा जाता है। जबकि पूनम का चांद शून्य भी है और पूर्ण भी। बिना शून्य के पूर्ण नहीं बन सकते है।
बड़ी संख्या में भक्त थे मौजूद
आरंभ में बोरीवली मुंबई के संगीतकार जैनम वारैया ने गुरू भक्ति के सुमधुर भजनों की प्रस्तुतियां दी। इस दौरान श्री देवसूर तपागच्छ चारथुई जैन श्रीसंघ गुजराती उपाश्रय, श्री ऋषभदेवजी केशरीमलजी जैन श्वेताम्बर तीर्थ पेढ़ी रतलाम के पदाधिकारी एवं बड़ी संख्या में गुरू भक्त उपस्थित रहे।