धर्म संस्कृति : श्रद्धाशील समाधान पाता है, जबकि शंकाशील समस्या
⚫ आचार्य प्रवर श्री विजयराजजी मसा ने कहा
⚫ नवकार भवन में चातुर्मासिक प्रवचन
हरमुद्दा
रतलाम,12 जुलाई। संसार में दो प्रकार के लोग होते है, एक श्रद्धाशील और एक शंकाशील। शंकाशील हमेशा शंकाओं में रहता है। शंका से चार प्रकार की समस्याएं निर्मित होती है, एक मन में संदेह, दूसरी तन में रोग, तीसरी जीवन में उतावलापन और चैथी वाणी में कटुता। इनसे बचने का एक ही उपाय है, श्रद्धा। श्रद्धा से हर समस्या का समाधान मिलता है।
यह बात परम पूज्य प्रज्ञा निधि युगपुरूष आचार्य प्रवर 1008 श्री विजयराजजी मसा ने कही। सिलावटों का वास स्थित नवकार भवन में प्रवचन देते हुए उन्होने कहा कि वर्तमान में पूरा संसार शंकाशील लोगों से भरा हुआ है। लोगों को शंका से उत्पन्न होने वाली समस्याओं का समाधान नहीं मिल रहा है, जबकि उनका समाधान प्रभु के वचनों में है। ज्ञानी कभी शंकाओं में नहीं जाते, वे हमेशा श्रद्धा में जीते है और उन्हंे समाधान मिलता है। समाधान सदैव श्रद्धा से ही मिलेगा। श्रद्धा से चारो तरफ प्रकाश ही प्रकाश होता है, जबकि शंका से अंधेरा ही अंधेरा रहता है। श्रद्धाशील बनने के लिए स्वभाव को बदलना होगा। इसके लिए यह समझना आवश्यक है कि शंका में पतन है, जबकि श्रद्धा उत्थान करती है। श्रद्धा सफलता का पहला पायदान होती है।
शंका से हो रही शांति गायब
आचार्यश्री ने कहा कि शंका के कारण वर्तमान में परिवारों में शांति नहीं है। शंका की वजह से प्रेम में कमी, विश्वास में कमी, त्याग मंे कमी, स्वार्थ की प्रधानता और लालच की प्रचुरता बढ रही है। इससे परिवार सुखी, समन्वित और संगठित नहीं रह पा रहे है। प्रेम, विश्वास और त्याग ये तीनों श्रद्धा से पैदा होते है। इनकी उपस्थिति जहां होती है, वही परिवार सुखी होता है। शंका जहां होती है, वहां कोई तंत्र, मंत्र, विद्या और ताकत सिद्ध नहीं होते। इसलिए दुर्मति के तीसरे दोष शंका से बचना सबके लिए आवश्यक है।
बुराइयों के परिणाम पर डाला प्रकाश
प्रवचन के आरंभ में उपाध्याय, प्रज्ञारत्न श्री जितेशमुनिजी मसा ने कषाय रूपी बुराईयों के प्रकार और परिणामों पर प्रकाश डाला। विद्वान सेवारत्न श्री रत्नेश मुनिजी मसा ने भी संबोधित किया। आदर्श संयमरत्न श्री विशालप्रिय मुनिजी मसा ने श्रावक-श्राविकाओं से प्रवचन पर आधारित रोचक प्रश्न किए। संचालन हर्षित कांठेड द्वारा किया गया।