धर्म संस्कृति : आलस्य है-अपराधों का बाप, दरिद्रता की मां, रोगों की धाय माता और जीते जी समाधि, जरूरत आलस्य छोड़ने और पुरुषार्थ करने की
⚫ आचार्य प्रवर श्री विजयराजजी मसा ने कहा
हरमुद्दा
रतलाम,13 जुलाई। आलस्य तन को, मन को और जीवन को सबकों कमजोर करता है। हमारी कमजोरी का सबसे बडा सबूत ही आलस्य है। आलस्य, अपराधों का बाप, दरिद्रता की मां, रोगों की धायमाता और जीते जी समाधि है। इसलिए आलस्य छोडों और पुरुषार्थ करों। संसार की सबसे बड़ी बुराई आलस्य है और सबसे बड़ी अच्छाई पुरुषार्थ है।
यह बात परम पूज्य प्रज्ञा निधि युगपुरुष आचार्य प्रवर 1008 श्री विजयराजजी मसा ने प्रवचन में कही। सिलावटों का वास स्थित नवकार भवन में उपस्थित श्रावक एवं श्राविकाओं को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि आलस्य सन्मार्ग पर चलने नहीं देता, इससे व्यक्ति सदगति की और अग्रसर नहीं हो पाता है। हमारी आत्मा में अनंत बल है। उसमें आस्था का बल, आशा का बल और आज्ञा का बल निहित होता है, लेकिन आलस्य, इन सभी बलों को निर्बल बनाने का काम करता है। इसलिए ज्ञानी कहते है कि यदि दूसरी बुराईयों का त्याग नहीं कर सको, तो कम से कम एक बुराई आलस्य का त्याग करो। इसी प्रकार यदि अच्छाईयों ना हो, तो एक अच्छाई पुरुषार्थ जरूर करो। यदि पुरूषार्थ की अच्छाई करोंगे, तो सारी अच्छाईयां अपने आप ही अपनी हो जाएगी।
आलस्य से आती है अकर्मण्यता
आचार्यश्री ने कहा कि आलस्य, दुर्मति का बहुत बड़ा बोध है, इससे अकर्मण्यता आती है। यह ऐसा चूहा है, जो हमारी शक्ति को कुतरता रहता है और हमे निर्बल बना देता है। वर्तमान में दूसरे चूहे भले ही नहीं हो, लेकिन आलस्य रूपी चूहा कई घरों में रह रहा है। इससे सबकों बचना चाहिए। उन्होंने कहा कि जैसे पूंजी से पूंजी का निर्माण होता है, वैसे ही शक्ति से शक्ति का विकास होता है। आलस्य के लिए 100 बहाने है, लेकिन पुरुषार्थ के लिए 1 भी बहाना नहीं है। पुरुषार्थी कुछ भी कर सकते है। इसलिए आलस्य रूपी बुराई को छोडकर पुरुषार्थ की अच्छाई का अनुसरण करे। व्यक्ति, संसार को समय देता है, तो संक्लेश के कुछ नहीं मिलता। यदि धर्म को समय दोगे, सुख, शांति और समाधि सब मिल जाएंगे।
श्रावक श्राविकाओ ने किए रोचक प्रश्न
प्रवचन के आरंभ में उपाध्याय, प्रज्ञारत्न श्री जितेशमुनिजी मसा ने विचार रखे। विद्वान सेवारत्न श्री रत्नेश मुनिजी मसा ने भी संबोधित किया। आदर्श संयमरत्न श्री विशालप्रिय मुनिजी मसा ने श्रावक-श्राविकाओं से प्रवचनों पर आधारित रोचक प्रश्न किए। संचालन हर्षित कांठेड द्वारा किया गया।