धर्म संस्कृति : तीन बुद्धि के स्वामी थे सागरानंद सूरीश्वर जी म.सा.
⚫ मुनिराज ज्ञानबोधी विजयजी म.सा. ने कहा
⚫ 149 वीं जयंती पर गुणानुवाद सभा, भव्य शोभा यात्रा निकली
हरमुद्दा
रतलाम, 17 जुलाई। आगमोद्दारक परम पूज्य आचार्य श्रीसागरानंद सूरीश्वरजी म.सा. की 149वीं जन्मतिथि सोमवार को आचार्य श्री विजय कुलबोधि सूरीश्वरजी म.सा. की निश्रा में मनाई गई । इस मौके पर गुणानुवाद सभा हुई, उसके बाद भव्य शोभायात्रा निकाली गई। मोहन टाकीज सैलाना वालों की हवेली से शुरू हुई शोभायात्रा शहर के प्रमुख मार्गों से होते हुए श्री कबीर सा. जैन मंदिर थावरिया बाजार पहुंची, जहां गुरू पूजन किया गया।
सिद्धांत की रक्षा के लिए चाहिए तीनों बुद्धि : मुनिराज ज्ञानबोधी विजयजी म.सा.
सैलाना वालों की हवेली मोहन टाकीज में आचार्य श्री विजय कुलबोधि सूरीश्वरजी म.सा के शिष्य मुनिराज ज्ञानबोधी विजयजी म.सा. ने गुणानुवाद करते हुए कहा कि सागरानंद सूरीश्वरजी म.सा. तीन बुद्धि के स्वामी थे। सुक्ष्म बुद्धि, तृष्णा बुद्धि और शुद्ध बुद्धि। सिद्धांत की रक्षा के लिए तीनों बुद्धि चाहिए। हमें प्रभु से तीन प्रार्थना करना है। पहली प्रभु आपके पास आया हूं, कुछ पाकर जाउंगा। दूसरी दोषों के सामने विजय हो और तीसरी प्रभु दुर्बुद्धि के के सामने विजय हो।
भाव पूजा का है ज्यादा महत्व
मुनिराज ने याचना और प्रार्थना को भी परिभाषित किया। उन्होने कहा कि प्रभु को प्रार्थना सूत्र प्रिय है, मंदिर में परमात्मा के पास याचना करने जाते है या प्रार्थना करने। याचना तो भिखारी भी करते है। जीवन की तकलीफे दूर हो, यह याचना है। आत्मा का भार दूर हो, संसार से मुक्ति मिले, हमारे दोष दूर हो, यह प्रार्थना है। हम प्रभु की द्रव्य पूजा करते है लेकिन भाव पूजा करते है या नही। भाव पूजा का महत्व ज्यादा है। इस दौरान श्री देवसूर तपागच्छ चारथुई जैन श्रीसंघ गुजराती उपाश्रय, श्री ऋषभदेवजी केशरीमलजी जैन श्वेताम्बर तीर्थ पेढ़ी रतलाम के सदस्य एवं बढ़ी संख्या में श्रावक-श्राविकाएं उपस्थित रहे।