शख्सियत : किसी भी पार्टी की सरकार बने विश्वगुरू बनकर रहेगा भारत : पूर्व विधायक

साइकिल से किया प्रचार और भारी मतों से जीता विधायक का चुनाव करिश्माई नेता ने

संपूर्ण मालवा अंचल ब्रिटिश शासन के दिनों कपास, गन्ना, मूंगफली, चना, गेहूं, तिल्ली फसलों के भरपूर उत्पादन का केंद्र रहा है। अफ़ीम की खेती अंग्रेजों के हुक्म पर मजबूरन करना पड़ती थी।शोषण पूर्ण व्यवस्था के नतीजे में मालवा सहित देश की जनता फटेहाल होती गई और अंग्रेज मालामाल हो गए। सरकार किसी भी पार्टी की क्यों न बनें। भारत एक दिन अवश्य विश्वगुरू बनकर रहेगा।’⚫

नरेंद्र गौड़


’शाजापुर सहित संपूर्ण मालवा अंचल ब्रिटिश शासन के दिनों कपास, गन्ना, मूंगफली, चना, गेहूं, तिल्ली फसलों के भरपूर उत्पादन का केंद्र रहा है। अफ़ीम की खेती अंग्रेजों के हुक्म पर मजबूरन करना पड़ती थी। यह पैदावार भी इतनी अधिक होती थी कि ढ़ुलाई के लिए अंग्रेजों को सड़क तक बनानी पड़ी, ताकि अफीम सहित अन्य उत्पाद बाम्बे होकर ब्रिटेन पहुंचाए जा सकें। यह सड़क तब ’ओपियम रोड’ कही जाती थी, आज यही ’आगरा मुम्बई राष्ट्रीय राजमार्ग’ के नाम से जानी जाती है। शोषण पूर्ण व्यवस्था के नतीजे में मालवा सहित देश की जनता फटेहाल होती गई और अंग्रेज मालामाल हो गए। लेकिन आजादी के बाद अब हमारा देश  विकास के पथ पर दिन दूनी, रात चौगुनी प्रगति कर रहा है। सरकार किसी भी पार्टी की क्यों न बनें भारत एक दिन अवश्य विश्वगुरू बनकर रहेगा।’


यह बात शाजापुर के पूर्व भाजपा विधायक पुरूषोत्तम चंद्रवंशी ने कही। यहां एक बात विशेष रूप से गौरतलब है कि वर्ष 1984 में तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी की हत्या के अगले ही वर्ष 1985 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के प्रति सहानुभूति की लहर के बावजूद क्षेत्र में अपनी लोकप्रियता साबित कर चंद्रवंशी भारी मतों से विजयी हुए थे। यह वह दौर था जब श्रीमती गांधी की हत्या की वजह से देशभर में कांग्रेस के पक्ष में जबर्दस्त माहौल चल रहा था। इतना ही नहीं, जनता जनार्दन के मानस पटल पर एकछत्र शासन करने वाले राजनेता अटल बिहारी वाजपेयी तक ग्वालियर से सांसद का चुनाव हार गए थे। ऐसे दौर में सन 1985 में विधानसभा की कुल 320 सीट (मप्र और छत्तीसगढ़ मिलाकर) में से भाजपा के खाते में महज 58 सीटें आई थीं। इन 58 विधायकों में से शाजापुर विधानसभा सीट पर बड़ा उलटफेर करते हुए पुरूषोत्तम चंद्रवंशी ने जीत हासिल की थी। चकित करने वाली बात तो यह भी कि चुनाव में प्रचार के लिए चंद्रवंशी के पास वाहन के नाम पर अपनी साइकिल तक नहीं थी।


चांद खां की बुलेट से चुनाव प्रचार

ऐसे में चंद्रवंशी प्रचार के लिए अपने मित्र चांद खां की बुलेट से प्रचार के लिए निकला करते थे। चांद खां गाड़ी चलाते और चंद्रवंशी पिछली सीट पर बैठे वोट की अपील करते। इस प्रतिनिधि के साथ उन दिनों की यादें साझा करते हुए चंद्रवंशी की आंखें भर आईं। याद रहे कि इंदिराजी की हत्या के बाद देश भर में भाजपा को भारी नुकसान उठाना पड़ा था। चंद्रवंशी ने बताया ’मैं सन 1972 से 1998 तक शाजापुर नगर पालिका में वार्ड पार्षद के रूप में जनसंघ से चुनाव जीतता रहा और चाहता तो शानदार मकान बना लेता और गाड़ी भी खरीद सकता था, लेकिन जनता गवाह है कभी काम कराने के बदले किसी से फूटी कोड़ी भी ली हो। इतना ही नहीं सन 1995 से सन 2000 तक मैं नगर पालिका शाजापुर का अध्यक्ष भी रहा था। इसी दौरान पं. बालकृष्ण शर्मा ’नवीन’ स्मृति समारोह मनाने के लिए 25 हजार रूपए का बजट पारित कराया गया था, लेकिन कितनी खेद की बात है कि मेरे बाद के नपाध्यक्षों ने बढ़ती महंगाई को देखते हुए इस राशि में बढ़ोतरी नहीं की। जबकि नवीनजी अगर न होते तो शाजापुर में न गुना मक्सी रेल लाइन डलती  और न चीलर बांध अस्तित्व में आता।’


पूर्व विधायक होते हुए जर्जर मकान ढ़हा

चंद्रवंशी ने कहा कि ’आज के दौर में नपाध्यक्ष और विधायक ही नहीं पार्षद तक मकान ही नहीं, अच्छी खासी बिल्डिंग तान देते हैं, जबकि मीरकलां स्थित मेरा मकान चार साल पूर्व भारी वर्षा में ढह गया था, गनीमत है कोई हादसा नहीं हुआ। जाहिर है मेरी निष्ठा और जनता में लोकप्रियता के कारण ही मुझ पर पार्टी आलाकमान ने भरोसा कर 1985 के विधानसभा चुनाव में टिकट दिया, लेकिन प्रचार की बारी आई तो मेरे पास अपनी साइकिल तक नहीं थी, कार, जीप तो दूर की बात!’


हिंदू मुस्लिम की राजनीति नहीं थी उन दिनों

चंद्रवंशी ने कहा कि ’यहां यह भी उल्लेखनीय उन दिनों ’हिंदू मुस्लिम’ की राजनीति नाम मात्र को भी नहीं थी। नगर के छोटे चौक में ताजिया उठता तब, कांधा लगाने मुस्लिम ही नहीं हिंदू भी दौड़ पड़ते थे। दोनों लोगों से समान मैत्रीपूर्ण संबंध रहे और आज भी हैं। ऐसे में मित्र चांद खां ’संकट मोचन’ बने जिन्होंने चुनाव प्रचार के लिए अपनी काले रंग की बुलेट पर सवार होकर प्रचार करने की सुविधा दी। हम दोनों गांव-गांव घूमा करते। रास्ते में भूख लगी तो सेव परमल का नाश्ता कर लेते। लोगों के साथ मेरा व्यवहार और इमानदारी का नतीजा यह रहा कि मैंने कांग्रेस के विधायक दीपसिंह यादव को भारी मतों चुनाव में चारों खाने चित्त कर दिया। विजयी होने के बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री मोतीलाल वोरा को शाजापुर बुलाकर सन 1986 कलेक्टेªट कार्यालय और गांधी हॉल का उद्धाटन कराया था।’ 


चुनाव में जे़ब का अधेला भी नहीं किया खर्च

चंद्रवशी ने बताया ’लोगों ने मुझे वोट के साथ नोट भी दिए। आप आश्चर्य करेंगे कि चुनाव में मेरी जेब का अधेला भी खर्च नहीं हुआ और पैसा होता तो खर्च करता जब था ही नहीं तो कहां से खर्च करता? जब भी विघानसभा चुनाव का इतिहास लिखा जाए मेरे नाम का उल्लेख किया जा सकता है।  जनता ने मुझे पैसा दिया। एक बात और बताता चलूं कि उन दिनों झंडे बैनरों का भारी भरकम लावाजमा लेकर चुनाव प्रचार नहीं किया जाता था। वहीं सड़कों पर कोई हंगामा नहीं होता था और न दंगे की नौबत आती थी। दीवारों पर प्रचार के स्लोगन लिखे जाते थे जो कई बार मजाकिया अंदाज में भी होते थे। प्रेमभाव से चुनाव होते थे और मुहब्बत दुआ सलाम में निपट जाते थे।’


व्यापारियों ने किया जीप का इंतजाम

चंद्रवंशी ने बताया  ’चुनाव के लगभग 10 -12 दिन बचे तब शाजापुर के व्यापारियों ने आपस में चंदा कर मेरे लिए एक जीप का इंतजाम किया जिसका नंबर 33 था। इसी जीप पर सवार होकर मैंने वोट की अपील की थी। मेरे लिए कार्यकर्ता भी प्राणप्रण से प्रचार में जी जान से जुट गए। दल बनाकर वह सुबह से चना चबैना लेकर अपनी साइकिलों से विभिन्न क्षेत्रों में निकल पड़ते और रात के अंधरे में गिरते-पड़ते घर लौटते। अनेक कार्यकर्ता तो रात को गांव में ही रूक जाते ताकि सुबह दिन निकलने पहले प्रचार में जुट सकें, क्योंकि देहातों में किसान सुबह अपने घरों में ताला लगाकर खेतों की तरफ निकल जाते हैं। ऐसे में घर पर कोई नहीं मिलता है।

भितरघातिये तब नहीं थे

चंद्रवंशी का कहना था कि ’आज भी मेरे उन दिनों के कार्यकर्ता और उनकी संतानें मुझ पर अपनी जान न्यौछावर करते हैं, लेकिन आज का कार्यकर्ता पद और प्रतिष्ठा का लालची हो गया है। पद नहीं मिला तो भितरघात करने से भी गुरेज नहीं करता। पीठ पीछे छुरा मारने वाले कार्यकर्ता हमारे जमाने में नहीं थे।’ मालूम हो कि श्री चंद्रवशी आज भले ही विधायक नहीं हैं, लेकिन उनकी लोकप्रियता उतनी ही बरकरार है। सुबह ठीक नौ बजे वह शहर के विभिन्न बाजारों गली मोहल्लों में जन संपर्क के लिए निकल पड़ते हैं। जहां लोगों की तकलीफ जानने और उनका दुख दर्द बांटने की कोशिश करते हैं। इसके बाद स्थानीय आजाद चौक में घंटे दो घंटे बैठ, लोगों से चर्चा करते हैं।


रामजी की दुकान पर जनता दरबार

शाम को छह-सात से रात आठ नौ बजे तक शहर में बाजारों में चंद्रवंशी जनता तथा कारोबारियों से मेलमिलाप के बाद रामजी रबड़ी वाले की दुकान पर बैठक करते हैं। हिंदू उत्सव समिति, कंसवधोत्सव, दशहरा चल समारोह जैसे आयोजना को सफलता पूर्वक संपन्न कराने का भी इस जनप्रतिनिधि का लम्बा इतिहास रहा है। लोगों से इनके बारे में यह भी मालूम हुआ कि चंद्रवंशी शहर में किसी भी जाति समाज के व्यक्ति की अंतिम यात्रा में शामिल होना नहीं भूलते। यदि शवयात्रा में नहीं जा सके तो उठावने में अवश्य जाते हैं। शाजापुर ही नहीं जिले के बच्चे बूढ़े सभी चंद्रवंशी को ’दादा’ के नाम से जानते हैं।

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