धर्म संस्कृति : विश्वासघात सबसे बडा दोष और महापाप

आचार्य प्रवर श्री विजयराजजी मसा ने कहा

हरमुद्दा
रतलाम, 03 अगस्त। विश्वास सन्मति का प्रतीक और सभी बलों का राजा है, जबकि विश्वास घात दुर्मति का लक्षण है। संसार में विश्वासघात से बडा कोई दोष अथवा पाप नहीं है। ये महापाप है। इससे बचने के लिए संकल्प करो। यदि दुर्मति के इस दोष से बच गए, तो बाकी सारे दोषों से बच जाएंगे।

यह बात परम पूज्य, प्रज्ञा निधि, युगपुरूष, आचार्य प्रवर 1008 श्री विजयराजजी मसा ने कही। सिलावटों का वास स्थित नवकार भवन में चातुर्मासिक प्रवचन के दौरान उन्होने कहा कि विश्वासघात का प्रायश्चित होना चाहिए। यदि प्रायश्चित नहीं होगा, तो यह घातक सिद्ध होगा। विश्वास में आए व्यक्ति को ठगना अथवा गोद में आए व्यक्ति को मारने में कोई बुद्धिमता और बहादुरी नहीं होती।

संत रेलगाड़ी और साधक बैलगाड़ी की तरह

आचार्यश्री ने कहा कि विश्वासघात से बचने के लिए चार बातों  पर जोर दिया गया है। पहली-शत्रु के प्रेम पर कभी भरोसा नहीं करना चाहिए। दूसरा-स्वार्थी की प्रशंसा पर भरोसा नहीं करे, तीसरा ज्योतिषी की भविष्यवाणी और चैथा धूर्त के आचरण भी कभी भरोसा नहीं करना चाहिए। विश्वासघात सारे पापों की जड होता है। संसार में जो इसे छोडता है, उसकी गति रेलगाडी जैसी होती है, जबकि जो नहीं छोड पाता, उसकी गति बैलगाडी जैसी रह जाती है। आज साधना के क्षेत्र में संत रेलगाडी की तरह चल रहे है, जबकि संसार में रहने वाले साधक बैलगाडी जैसे है।

सदैव दूर रहे विश्वास घात के पाप से

आचार्यश्री ने कहा कि आज लोग दुख मुक्त बनना चाहते है, जबकि उनका लक्ष्य सभी का दोषमुक्त बनाने का है। यदि व्यक्ति दोष मुक्त होगा, तो दुख तो अपनेआप खत्म हो जाएंगे। दोषी जो होगा,वह दुखी ही रहेगा, इसलिए सब दोषमुक्त बनने का संकल्प करे। उन्होंने कहा कि गरीबी में परिवार की, मुसीबत में दोस्त की, बुढापे में औलाद की परीक्षा होती है। इन सबके लिए विश्वास जरूरी है। यदि विश्वास नहीं हो, तो कुछ नहीं मिलता। इसलिए विश्वास के प्रति समर्पण और संकल्प करो। विश्वासघात के पाप से सदैव दूर रहो।

काफी संख्या में मौजूद थे श्रद्धालु

आरंभ में उपाध्याय प्रवर, प्रज्ञारत्न श्री जितेश मुनिजी मसा ने संबोधित किया। विद्वान सेवारत्न श्री रत्नेश मुनिजी मसा ने भाव व्यक्त किए। इस दौरान बडी संख्या में श्रावक-श्राविकागण उपस्थित रहे।

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