खरी खरी : … और बनाओ भाजपा की सरकार, भरी बारिश में पानी की दरकार, हर काम के लिए इंतजार, आमजन किस पर करें ऐतबार, तो क्या होगा अबकी बार, वे हो रहे अब हैरान और अनजान, खई पी ग्या और नवा ने वनई ग्या
हेमंत भट्ट
⚫ अब तो यही चर्चा चल रही है कि और भाजपा की सरकार बनाओ। भरी बारिश में भी आमजन को पेयजल ही नहीं हर कार्य के लिए नगर निगम में इंतजार करना पड़ रहा है। अधिकारी बदलते हैं। जनप्रतिनिधि बदलते हैं मगर नहीं बदलती है तो शहर वासियों की किस्मत। ठगा सा मतदाता अब यही सोच रहा है कि अबकी बार किस पर एतबार करें। मास्टर साहब से ग्रामीण क्षेत्र के विधायक बने अब अनजान और हैरान हो रहे हैं कि कागजों पर विकास कार्य हो गया। कलेक्टर को शिकायत कर आम जनता के साथ होने की रस्म अदायगी कर दी। मगर “वे” तो पूर्व अध्यक्षों से खई पी ग्या और नवा ने वनई ग्या। ⚫
सही बात है शहर का विकास हो रहा है। शहर में चारों ओर सीसी रोड पर जल जमाव हो रहा है मगर घरों में जल के लिए बर्तन खाली पड़े हैं। यह शहर वालों के हर घर की कहानी बयान हो रही है, लेकिन जिम्मेदारों की कानों पर जू तक नहीं रेंग रही। रविवार को भी शहर में कई जगह सुबह जल वितरण नहीं हुआ। इंतजार के बाद पता चला शाम को होगा। शाम को भी पार्षदों ने सही समय नहीं बताया और लोग इंतजार करते रहे। जिन क्षेत्रों में 5 बजे जल वितरण बताया उन क्षेत्रों में 6 बजे हुआ ऐसे पार्षद हैं शहर के जिन को भी सही समय पता नहीं रहता। और अधिकांश पार्षद तो यही कहते सुनते नजर आते हैं कि हम तो नए-नए हैं। हमें कुछ समझ नहीं मगर कहां पर कितना कमीशन मिलना है, यह तो मानो पेट से ही सीख कर आए हैं।
ऐसा है डिजिटल कामकाज
इसी तरह नगर निगम में चाहे आपको ट्रिपल एसएम आईडी से नाम कटवाना हो या नाम जुड़वाना हो कागजात सब चाहिए क्योंकि जमाना डिजिटल का है और काम चुटकी में नहीं हफ्तों में होते हैं। जो काम आसान है उसे जटिल करना ही यहां पर बैठे सभी का मकसद है जबकि होना यह चाहिए कि दोनों पक्ष की रजामंदी पर नाम कट करके दूसरे में जोड़ देना चाहिए, लेकिन नहीं, यहां से पहले नाम कट होगा फिर आपको आवेदन देना होगा फिर दूसरी जगह नाम जुड़ेगा। इसमें कितना समय जाया होगा, इससे उनका कोई लेना-देना नहीं।
नेताजी जिंदाबाद, हम और हमारा खजाना आबाद
राशन कार्ड के विभाग का भी यही हाल है कर्मचारी अपना कामकाज कर कर हफ्तों से बैठे हैं लेकिन अधिकारी को साइन करने तक की फुर्सत नहीं मिल रही। लोग रोज चक्कर लगा रहे हैं मगर अफसर न जाने कहां खाख छान रहे। नगर निगम आयुक्त का किसी पर भी कोई नियंत्रण नहीं है। लगता है वह भी जैसे तैसे दिन कट जाए। इसी उम्मीद में टिके हुए हैं या यूं कहीं की नेताजी की हां में हां मिला रहे हैं काम हो या ना हो, नेताजी जिंदाबाद। भले ही आम जनता के काम हो बर्बाद, हम और हमारा खजाना आबाद।
पहले नहीं दिया ध्यान, अब हो रहे अनजान, हैरान
यह तो पिछले महीनों से सभी जानते हैं कि ग्रामीण क्षेत्र के विधायक अब जाकर सक्रिय हो गए हैं क्योंकि चुनाव जो नजदीक हैं। जब से विधायक बने, तब से उन्होंने सुध नहीं ली। इसी कारण आम जनता परेशान हैं। सुविधाओं की मोहताज हैं। यदि विधायक शुरू से ही ध्यान देते तो कागजों पर विकास कार्य नहीं होता, मगर फुर्सत कहां थी। इनको मतदाताओं ने चुनाव जीता दिया तो फिर क्या है हम ही राजा और हम ही मंत्री। प्रजा की क्या विसात, उसकी क्या औकात। मगर अब फिर से गांव की जनता याद आने लगी। अब उनके साथ होने की नौटंकी कर रहे हैं। कागजों में कार्य कैसे हो गया? कैसे सरपंच सचिव राशि खा गए? अब अनजान बन रहे हैं। हैरान हो रहे हैं। कलेक्टर को शिकायत कर रहे हैं। शिकायत की है तो सुनवाई हो कब होगी यह तो कोई नहीं जानता। यदि पहले ही ध्यान दिया होता तो राशि सही कार्य में खर्च होती। मतदाताओं को समय पर सुविधा मिलती, लेकिन मास्टर से विधायक बने साहब को क्या? फिर टिकट ले आएंगे। चुनाव जीत जाएंगे। इस मुगालते में हैं। सरकारी स्कूल के ढर्रे जैसा समझ लिया, जनप्रतिनिधि बनना भी। अपनी मेहनत से बच्चे पास हो गए तो मास्टर साहब की वाहवाही और फेल हो गए तो बच्चे ही कमजोर यानी कि दोनों हाथ में लड्डू।
सीख, सबक, नसीहत, नहीं माने बपौती
अभिभाषक संघ के चुनाव ने चुनाव लड़ने वालों को बहुत बड़ी सीख, सबक, नसीहत दे डाली है कि की चुनाव में अक्सर यही होता है कि लोग खा पी कर चले जाते हैं और ठेंगा दिखा जाते हैं। वैसा ही पूर्व अध्यक्षों के साथ भी हुआ। उन्होंने भी चुनाव जीतने के लिए हर प्रकार के हथकंडे अपनाए। खिलाया पिलाया। गले से लगाया मगर वे अपने थे ही नहीं जिन को अपना मान लिया। वे तो खा गए और नए को अध्यक्ष बना गए। अभिभाषक संघ के चुनाव ने साबित कर दिया कि चुनाव केवल व्यक्ति का प्रभाव और व्यवहार ही जीतता है, चाहे आप कितने ही बड़े हो। जब तक आप सबके नहीं होंगे, तब तक आपका कोई नहीं होगा। आपकी झांकी केवल झांकी रह जाएगी। प्रभाव नहीं बन पाएगी। स्वभाव नहीं बन पाएगी। यहां पर यही कहावत चरितार्थ हो गई “खई ग्या और अध्यक्ष की जिम्मेदारी नावा ने दई ग्या”। यह सभा नसीहत उन सभी के लिए हैं जो संस्थानों में खास पदों पर भगवान की तरह बैठे हैं। संस्था को अपनी बपौती मान लिया है। अहंकार का मुखौटा पहन लिया है।