शिक्षा का बंटाढार: 27 हजार पद खाली, हो गई परीक्षा, काबिलों की नियुक्ति अधर में, अतिथियों को 25 अंक बोनस के, ने किया कबाड़ा

हरमुद्दा
रतलाम 8 जुलाई। प्रदेश सरकार शिक्षा का बंटाढार करने पर तुली हुई है। प्रदेश में शिक्षकों के रिक्त 27 हजार पदों के लिए योग्य उम्मीदवारों की परीक्षा हो गई है किंतु काबिलों की नियुक्ति अधर में है। अतिथियों को 25 अंक बोनस के देने के फरमान ने योग्य शिक्षकों के मंसूबों पर पानी फेर दिया है।प्रदेश में विकसित प्रथा ने उच्च शिक्षित योग्य प्रत्याशियों के शिक्षक बनने के दरवाजे बंद कर दिए हैं। अतिथि शिक्षकों को 25 अंकों का बोनस देकर काम चलाऊ शिक्षकों का चयन किया जाएगा। इससे स्कूलों का कबाड़ा होना तय है।

योग्य आवेदन की कतार से बेखल
वोट पद्धति और बोनस पद्धति के कारण अतिथि प्रत्याशियों की संख्या में आश्चर्यजनक वृद्धि हो गई है, जिससे कई विषयों के स्नातकोत्तर और पीएचडी प्राप्त उम्मीदवार भी साफ तौर पर आवेदन की कतार से बेदखल हैं।

शिक्षा धकाने की बात पर देश के ख्यात शिक्षाविदों ने खासा रोष
सरकार राजनीतिक हितों को साधने के लिए अतिथि को ही नियमित करेगी, जबकि येन केन प्रकारेण शिक्षा व्यवस्था को चलाने और धकाने की बात पर देश के ख्यात शिक्षाविदों ने खासा रोष व्यक्त किया है।

प्रश्न के उत्तर में मिली “रहस्यमयी मुस्कान”
शिक्षा का कायाकल्प करने की दृष्टि से सरकार के निर्देश पर विशेषज्ञों का एक दल उन देशों का भ्रमण कर लौटा है, जहां शिक्षा व्यवस्था अदायगी के स्तर पर सर्वोच्च स्थान पर है। विदेशों का शैक्षिक भ्रमण कर लौट कर आए दल ने पिछले सप्ताह शिक्षा के आला अधिकारियों की उपस्थिति में प्रदेश के जिला शिक्षा अधिकारियों की बैठक आहूत की। बैठक में विद्वानों ने विदेशी भ्रमण में देखी गई शिक्षा की खूबियों को सबके बीच रखा। प्रदेश की शिक्षा व्यवस्था को भी परिणामदायी बनाने के लिए जोर दिया। तब आला अधिकारियों का लिहाज किए बगैर एक शिक्षा अधिकारी ने हाथ उठाकर प्रश्न पूछा ” साहब आप यह बताइए कि क्या वहां भी स्कूलों में अतिथि शिक्षक कार्य कर रहे हैं” प्रश्न सुनते ही विद्वानों के दल को सांप सूंघ गया। उत्तर की बजाय “रहस्यमयी मुस्कान” देखी गई। इस समूचे कथानक के पीछे प्रदेश की खस्ताहाल शिक्षा का रोता हुआ चेहरा है, जिसे देख सभी रहे हैं, लेकिन सुधारना कोई नहीं चाहता।

…और अतिथि योग्य के आगे हो गए खड़े
अतिथि विद्वानों के जमावड़े ने स्कूलों की शिक्षा व्यवस्था को लगभग तबाह कर दिया है पिछले तीन-चार सालों में न्यूनतम योग्यता के आधार पर अल्प मानदेय पर अतिथि बने शिक्षक पिछले साल के अनुभव के आधार पर बोनस को बटोरते हुए अतिथि बनने की रुचि न रखने वाले वास्तविक विद्वानों से आगे की मेरिट में आकर खड़े हो गए हैं।

“रुक जाना नहीं” शिक्षा को बर्बाद करने वाली एक योजना
हाई एवं हायर सेकेंडरी परीक्षा परिणामों की फिक्र करने वाले शिक्षा तंत्र में इतनी गिरावट आ गई है कि किसी भी प्रकार से परीक्षार्थी को पास करने की प्रणाली विकसित की गई। इससे विद्यार्थियों के अध्यापन परिश्रम में भारी अंतर आया है। रही सही कसर पिछली सरकार ने पूरी कर दी। तब मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने “रुक जाना नहीं” नाम की शिक्षा को बर्बाद करने वाली एक योजना लागू कर दी है। परीक्षार्थी एक विषय में फेल होता है तो भी पास कर दिया जाता है। असर यह हुआ कि गणित, भौतिक, रसायन जैसे कठिन विषयों विषयों को पढ़ना ही छोड़ दिया और हद तो तब हो गई जब स्कूलों में इन विषयों के अध्यापन की कोई व्यवस्था ना होने के बावजूद 70 फ़ीसदी परिणाम स्कूलों के आए हैं।

विद्यालय नहीं रह गया अध्यापन का पवित्र मंदिर
शिक्षित बेरोजगार दर-दर भटक रहे हैं। सरकार की असंवेदनशीलता और सिस्टम को राजनीतिक फायदे के लिए समाप्त कर देने वाली सोच के चलते विद्यालय अध्यापन का पवित्र मंदिर नहीं रह गया है।

तीन दिन का दिया अल्टीमेटम
प्रदेश स्तर पर हजारों अतिथि शिक्षक नियमितीकरण के लिए एकत्र हुए हैं और सरकार को तीन दिन का अल्टीमेटम दिया है। अगर चुनावी वायदों को पूरा करने की ललक में सरकार ने अतिथि शिक्षकों को नियमित कर दिया तो हजारों शिक्षित बेरोजगार पिछले दरवाजे से दी गई नौकरी मानते हुए सरकार के खिलाफ लामबंद होंगे। आक्रोश सड़कों पर न दिखाई दे लेकिन चुनाव के नतीजे चीख चीख कर आक्रोश को बोलेंगे।

गहरा सन्नाटा होगा “यस सर बोलने” वालों का
बहरहाल शिक्षा की सेहत बिल्कुल ठीक नहीं है। मजबूर विद्यार्थी सरकारी स्कूलों की खराब हालत होते देख, अब तेजी से निजी स्कूलों की ओर बढ़ रहे हैं। इस पर कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि आने वाला समय सरकारी स्कूलों को वीरान बना देगा, जहां दरवाजा खोलने के लिए चपरासी और हाजिरी भरने के लिए शिक्षक तो होंगे, मगर गहरा सन्नाटा “यस सर बोलने” वालों का होगा।

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