साहित्य सरोकार : तू बापू स्वर्ग-सी धारा पर फिर अमन का फूल खिलाने आया था, … देशभक्ति के पौषक, धर्मनिष्ठ, कर्म प्रेरक, लालों के लाल

पराधीनता की
बेड़ियों को,
वाणी की धार से
काटा था,
तू बापू स्वर्ग-सी धरा पर
फिर अमन का फूल
खिलाने आया था

⚫ डॉ. नीलम कौर

पराधीनता की
बेड़ियों को,
वाणी की धार से
काटा था,
बनकर कलयुगी
पैंगंबर बापू,
तू धरती पर आया था।

था शहर गुजरात का
पोरबंदर नाम का,
करमचंद के आँगन में
दो अक्टूबर के दिन
तू फरिश्ता
बनकर आया था,
तड़प रही थी
माँ धरित्री जल्लादों के
जुल्म से,
अँग्रेजी दमन से
सुलगते दग्ध हृदयों
की, अंहिसा के जल से
आग बुझाने आया था।

अद्भुत चमत्कारी,
चुम्बकीय तेरी वाणी थी,
एक आह्वान पर
तेरे पीछे दौड़े आते थे,
महल-दोमहले,झौपड़ियाँ
सब छोड़,कर्मचारी,
चरखे के ताने-बाने से
स्वदेशी का बुनकर
रथ,
सत्यपथ पर चलाकर
कर्ममार्ग अपनाया था,
युग-युग से परतंत्रता से
अभिषापित धरती
का श्राप मिटा,
माँ भारती की गोद
को धन्य करने
आया था।

छोड़ विलासी जीवन
एक धोती को
अपनाया था,
किए आदोंलन कई
मगर हथियार न
कोई उठाया था,
सच की ताकत के
आगे गोली, बारुद की
काट करने आया था,
तू बापू शब्द के बारुद
से गुलामियत को
ध्वस्त करने आया था।

निडर हो अत्याचार
सहकर,
अपनी बात मनवाना
जानता था,
सत्याग्रह की अलख
जला,जंजीरें
गुलामियत की काटना
जानता था,
मन का बादशाह,
तन का फकीर,
बातें तेरी होती थीं
पत्थर की लकीर,
बनकर आँधी दमन-चक्र
को जड़ से
उड़ाने आया था,
परतंत्र धरा पर लहराती
विदेशी पताका उतार,
स्वतंत्र भारत की
धरा पर
तिरंगा लहराने आया था,
तू बापू स्वर्ग-सी धरा पर
फिर अमन का फूल
खिलाने आया था,

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लाल बहादुर शास्त्री

देशभक्ति के पोषक,
धर्मनिष्ठ, कर्मप्रेरक

कद से छोटे व्यक्तित्व
से महान थे,
पिता शारदा मात दुलारी
के नन्हें पुत्र
कहलाते थे,
देशभक्ति के पोषक,
धर्मनिष्ठ, कर्मप्रेरक,
हरदिल अजीज
जन-जन की
जान थे।

साधारण थी जीवन-
चर्या, थी मन में
फकीरी उनके,
सादा जीवन उच्च विचार,
धी उनके जीवन
की पहचान,
उच्च पदासीन होकर
भी नहीं था
तनिक भी अहंकार।

बचपन से श्रमशील थे,
बाधाओं से खेले थे,
उत्ताल तरंगों से
पार पाकर ही,
असीम सहनशीलता
पाई थी,
मद,मोह,माया से
विमुख, तप-त्याग
के पोषक थे।

अल्पायु में ही
नाम अमर कर गये वो,
बनकर द्वितीय प्रधानमंत्री
स्वतंत्र भारत के ,

जय जवान जय किसान
का नारा दे गये,
सन् पैंसठ हरा पाक को
देश की गरिमा बड़ाई थी,
संकट पड़ा अनाज का
दिया एक वक्त
उपवास का मंत्र,
देते रहे चुनौतियाँ
हर संकट को,
मगर भूल गये बैरियों
के घात को,
बन गये थे आखिर
शिकार विश्वासघात के,
ताशकंद से लौटे
तिरंगे में लिपटकर।

ऐसे थे भारत माँ के
लाल बहादुर शास्त्री,
आओ उनको शीश
नवाएं,जिनके महान
व्यक्तित्व से,
मान देश का बड़ता है,
नाम सिमरण मात्र से
मन में गरुर उमड़ता है,
शत् शत् नमन है
उनको जो लालो के
लाल थे।

⚫ डॉ. नीलम कौर

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