धर्म संस्कृति : बंगाली समाज रतलाम की श्रीसार्वजनिक दुर्गा पूजा महोत्सव का स्वर्ण जयंती वर्ष, 20 अक्टूबर से होगी उत्सव की शुरुआत
⚫ देवी बोधन एवं कल्पारंभ के साथ शुरू होगा उत्सव
⚫ बंगाली समाज का व्यक्ति जहां भी रहता है वहां करता है मां दुर्गा की आराधना
⚫ 1974 से चल रहा है उत्सव मनाने का सिलसिला अनवरत
⚫ श्री कालिका माता मंदिर से हुई थी शुरुआत, अब उत्सव मनाया जा रहा है जवाहर नगर में
हरमुद्दा
रतलाम, 18 अक्टूबर। बंगाल में दुर्गा पूजा उत्सव बंगालियों के श्रद्धा समर्पण के साथ गौरव का भी विषय होता है। हर बंगाली व्यक्ति इस बात के लिए अवश्य प्रयत्न करता है कि वह जहाँ भी रहे वहाँ उसकी इष्ट देवी माँ दुर्गा की आराधना और उपासना का अवसर अवश्य मिले। इस वर्ष बंगाली समाज रतलाम श्रीसार्वजनिक दुर्गा पूजा महोत्सव का स्वर्ण जयंती वर्ष मनाने जा रहा है। वर्ष 1974 में प्रारंभ हुई दुर्गा पूजा का यह 50 वां वर्ष है। दुर्गा पूजा का शुभारंभ 20 अक्टूबर को देवी बोधन एवं कल्पारंभ के साथ होगा।
बंगाली समाज के प्रशांत विश्वास और सौमेन्द्र रॉय चौधरी ने हरमुद्दा को बताया कि इस वर्ष दुर्गा पूजा का शुभारंभ 20 अक्टूबर की शाम को देवी बोधन एवं कल्पारंभ के साथ होगा। आमंत्रण, अधिवास एवं घट स्थापना के पश्चात विधिवत दुर्गा पूजा उत्सव प्रारम्भ होगा।
पांच दिवसीय मनाया जाता है उत्सव
नव दिवसीय नवरात्रि साधना की तुलना में बंगाली समाज की दुर्गा पूजा षष्टी तिथि से प्रारंभ होकर विजयदशमी तक पांच दिनों के लिए ही होती है। इस पूजा में यह माना जाता है कि कैलाशवासिनी देवी माँ दुर्गा ससुराल से अपने मायके पांच दिवसीय प्रवास के लिए पधारी हैं। इसलिए उनके आगमन एवं प्रस्थान के समय समाज की महिलाएं विशेष रूप से पूजा अर्चना करती है। इस दौरान शंखध्वनि, ढाक और ढोल और “बोलो-बोलो दुर्गा माई की जय” के उद्घोष के साथ इस पूजा उत्सव का रूप ले लेती है। 5 दिवसीय पूजा में सुबह शाम आरती पूजा पुष्पांजलि का विशेष क्रम रहता है। अष्टमी की संधि पूजा और विजयादशमी पर दर्पण विसर्जन और सिंदूर खेला बंगाली समाज की दुर्गा पूजा का विशेष आकर्षण होता है। बंगाल की यह प्रसिद्ध एवं दर्शनीय पूजा को रतलाम में भी यथासंभव प्रस्तुत करने का प्रयास बंगाली समाज रतलाम द्वारा किया जाता है।
श्री कालिका माता मंदिर से हुई थी शुरुआत, अब उत्सव मनाया जा रहा है जवाहर नगर में
रतलाम में बंगाली समाज के स्थायी निवासी परिवार मात्र 15-20 ही है लेकिन अस्थायी बंगालियों एवं माँ दुर्गा के आराधकों के साथ मिलकर पूरे उत्साह और उमंग के साथ पूजा का आयोजन किया जाता है। 1974 में कालिका माता मंदिर प्रांगण में प्रारम्भ हुई बंगाली समाज की दुर्गा पूजा, बाद में मोंटेसरी स्कूल प्रांगण तथा अब श्रीरामकृष्ण विवेकानंद आश्रम जवाहर नगर में हो रही है।
महिषासुर मर्दिनी माँ दुर्गा एवं उनके परिवार की आकर्षक प्रतिमा का होता है निर्माण
इन 5 दशकों के दौरान प्रतिकूल परिस्थितियों में भी बंगाली समाज के सदस्यों ने इस पूजा को निर्बाध जारी रखा है। बंगाल से आए मूर्तिकार द्वारा महिषासुर मर्दिनी माँ दुर्गा एवं उनके परिवार की आकर्षक प्रतिमा का निर्माण करवाया जाता है। जिसमें शक्तिस्वरूपा माँ दुर्गा, समृद्धी की देवी माँ लक्ष्मी, ज्ञान की देवी माँ सरस्वती, सदबुद्धि के देवता श्री गणेश तथा सार्थक शौर्य के प्रतीक श्री कार्तिकेय की प्रतिमा का निर्माण कर पूजा अर्चना की जाती है। वहीं पूजा कर्मकांड हेतु पुरोहित का भी विशेष रूप से दुर्गा पूजा के लिए बाहर से आगमन होता है। दुर्गा पूजा के आयोजक बंगाली समाज रतलाम ने रतलाम की धर्मप्रेमी जनता को शक्ति के आराधना पर्व पर माँ दुर्गा पूजा उत्सव मैं शामिल होने का आह्वान किया है।