धर्म संस्कृति : महासतीजी के 31 उपवास के प्रत्याख्यान लेते ही पूरा परिसर अनुमोदना-अनुमोदना के स्वरों से गूंज उठा
⚫ महासतीश्री इन्दुप्रभाजी मसा का मासक्षमण तप पूर्ण
⚫ आचार्य प्रवर श्री विजयराजजी मसा ने कहा -बिना समर्पण के नहीं होते जप-तप
⚫ छोटू भाई की बगीची में आयोजन
हरमुद्दा
रतलाम,19 अक्टूबर। परम पूज्य, प्रज्ञा निधि, युगपुरूष, आचार्य प्रवर 1008 श्री विजयराजजी मसा की निश्रा में गुरूवार को महासती श्री इन्दुप्रभाजी मसा का मासक्षमण पूर्ण होने पर तपोत्सव मना। महासतीजी के 31 उपवास के प्रत्याख्यान लेते ही पूरा परिसर अनुमोदना-अनुमोदना के स्वरों से गूंज उठा। आचार्यश्री ने कहा कि साधु-साध्वी के लिए जप-तप महत्वपूर्ण है। ये समर्पण से ही पूर्ण होते है।
आचार्य प्रवर ने प्रवचन में महासतीजी की दीर्घ तपस्या की अनुमोदना करते हुए कहा कि जैसे साधु-साध्वी के लिए जप-तप का महत्व है, वैसे ही श्रावक-श्राविकाओं के लिए दान और शील महत्वपूर्ण है। दान के बिना श्रावकांे का जीवन धन्य नहीं होता। दान ही जीवन को वरदान बनाता है। दान नहीं देने वाले श्रावक-श्राविका नहीं कहलाते। जीवन में हमेशा सदाचार का पालन करना चाहिए, क्योंकि सदाचार ही जीवन को महत्वपूर्ण बनाता है।
आचार्यश्री ने श्रावक-श्राविका के लिए संकल्प और साधु-साध्वी के लिए समर्पण का महत्व बताया। उन्होंने कहा कि महासती श्री इन्दुप्रभाजी ने अपने तप से अपनी आत्मा का परिष्कार भी किया और प्रभु के शासन की प्रभावना भी की। इसकी जितनी अनुमोदना की जाए, उतनी कम है।
आरंभ में उपाध्याय प्रवर श्री जितेशमुनिजी मसा ने तप के महत्व पर प्रकाश डाला। महासती श्री कनकश्रीजी मसा ने भाव व्यक्त कर अनुमोदना की। साध्वी मंडल ने स्तवन से उत्साह का संचार किया। महासती इन्दुप्रभाजी ने तप आराधना में सहयोग के लिए धन्यवाद देते हुए आचार्यश्री को जन्मोत्सव पर तपस्या भेंट की। इस मौके पर कई श्रावक-श्राविकाओं ने अनुमोदना स्वरूप तपस्या के प्रत्याख्यान लिए। संचालन हर्षित कांठेड द्वारा किया गया।