साहित्य सरोकार : मां के पास

आशीष दशोत्तर

व्रत, पूजा मत कीजिए, मत करिए उपवास,
केवल दो पल बैठिए, अपनी माॅं के पास।

खड़ी मंथरा आज भी, कैकेई के पास,
हर घर में इक राम के हिस्से में वनवास।

सम्बन्धों में आ गया कुछ ऐसा बदलाव,
घर वाले सब गैर हैं, बाहर वाले ख़ास।

घर का पहला कक्ष था,कभी बड़ों के नाम,
अब तो उनको रह गई, पिछवाड़े से आस।

दूर सभी से हो चुका, ये नादां इंसान,
अच्छाई को छोड़ के, खड़ा बुरे के पास।

खड़े कभी से पास में,मिले गले भी खूब,
बढ़े कभी तो आपका और मेरा विश्वास।

तलवारें वो तान कर सिर पर बैठा देख ,
अटकी है ‘आशीष’ की,अब सांसों में सांस।

⚫ आशीष दशोत्तर

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