वेब पोर्टल हरमुद्दा डॉट कॉम में समाचार भेजने के लिए हमें harmudda@gmail.com पर ईमेल करे सनातन संस्कृति और परंपरा : छोटू भाई की बगीची में फिर गूंजा, केसरिया-केसरिया, संस्कारों का प्रतीक है दीक्षा की प्रतिज्ञा और आज्ञा के पत्र -

सनातन संस्कृति और परंपरा : छोटू भाई की बगीची में फिर गूंजा, केसरिया-केसरिया, संस्कारों का प्रतीक है दीक्षा की प्रतिज्ञा और आज्ञा के पत्र

1 min read

आचार्य प्रवर श्री विजयराजजी मसा ने कहा

मुमुक्षु दीपासना चौपडा ने संयम प्रतिज्ञा और परिजनों ने आज्ञा पत्र सौंपा

प्रवचन में हुई अगले साल 18 फरवरी को दीक्षा प्रदान करने की घोषणा 

हरमुद्दा
रतलाम, 29 अक्टूबर। परम पूज्य, प्रज्ञा निधि, युगपुरूष, आचार्य प्रवर 1008 श्री विजयराजजी मसा की निश्रा में रविवार को जैसे ही छत्तीसगढ की दीपासना  चौपडा   ने संयम अंगीकार करने के लिए प्रतिज्ञा पत्र और उनके परिजनों ने आज्ञा पत्र प्रदान किया, वैसे ही पूरें परिसर ने हर्ष-हर्ष और जय-जयकार की। छोटू भाई की बगीची में फिर केसरिया-केसरिया, आज हमारो मन केसरिया की गूंजा। आचार्यश्री ने कहा कि दीक्षा की प्रतिज्ञा और आज्ञा के पत्र संस्कारों का प्रतीक है। संस्कारों के कारण ही ये प्रसंग आज हमारे बीच आया है।


आचार्यश्री ने इस मौके पर मुमुक्षु दीपासना को 18 फरवरी 2024 को इंदौर में दीक्षा प्रदान करने की घोषणा की। उन्होंने कहा कि बच्चों को जीवन में जैसे संस्कार प्राप्त होते है, वे ही आगे जाकर फलित होते है। वर्तमान समय में जब सब तरफ भौतिकता और भोग की आंधी चल रही है, तब हमारे मुमुक्षु संयम के संस्कारों को आगे बढा रहे है। उनका ये कदम भोग और भौतिकता को बडा चेलेंज है। क्योंकि आज की पीढी मोबाइल, होटल, फास्ट फूड और घूमने-फिरने में विश्वास करती है और मुमुक्ष सबकुछ छोडकर संयम का मार्ग अपना रहे है। लोग कहते है कि संयम जीवन कांटों से भरा होता है, लेकिन वास्तव में संसार का जीवन दुर्गम है। दर्पण में जैसे मुख दिखता है और हमे मिलता नहीं, वैसे ही संसार में सुख दिखता है, लेकिन कभी मिलता नहीं है।


आचार्यश्री ने कहा कि संयम में जो सुख-शांति है, वह संसार में नहीं मिलते। इसके लिए संस्कारों का जागरण आवश्यक है। यदि संस्कार जाग गए, तो संयम का पालन किसी के लिए कठिन नहीं होगा। महापुरूषों ने भी बुराईयों से बचने और बचाने का एकमात्र मार्ग संस्कार ही बताया  है। संस्कार हमे बुराईयों से बचाते है, इसलिए उन्हें जगाओं। संस्कार ही आत्मा से महात्मा और फिर परमात्मा बनने का मार्ग प्रशस्त करते है।


आरंभ में उपाध्याय प्रवर श्री जितेशमुनिजी मसा ने संबोधित किया। उन्होंने बताया कि खामरिया छत्तीसगढ निवासी मुमुक्षु दीपासना का सात वर्षों का वैराग्यकाल रहा हैं। उनसे पूर्व भी अभ्युदय चातुर्मास में दीक्षा के लिए चार अन्य मुमुक्षुगण ने प्रतिज्ञा पत्र और उनके परिजनों ने आज्ञा पत्र प्रदान किए है। आचार्यश्री के श्रीमुख से इंदौर में 18 फरवरी को रायचुर कर्नाटक के मुमुक्षु सूरज कांकरिया, मैसूर के अक्षय सेहलोत एवं खरियारोड उडीसा के मोहित सकलेचा जैन भी दीक्षा अंगीकार करेंगे।

किया गया बहुमान

इस मौके पर मुमुक्ष दीपासना चौपडा ने भी भाव व्यक्त किए। उनके पिता प्रकाशचन्द्र  चौपडा, माता नीलम चौपडा और अन्य परिजनों को रतलाम श्री संघ द्वारा बहुमान किया गया। श्री रामपुरम बैंगलुरू के दिनेश खिमेसरा, मुंबई के अशोक बाफना, छत्तीसगढ के महावीर संचेती और रतलाम की राजकुमारी पिरोदिया ने भी संबोधित किया। बहू मंडल ने आगमों पर केन्द्रित लघु नाटिका का मंचन किया। महासती श्री महकप्रभाजी मसा ने आचार्यश्री से 11 उपवास के प्रत्याख्यान ग्रहण किए। संचालन हर्षित कांठेड द्वारा किया गया।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *