धर्म संस्कृति : जीव कभी पराया नहीं होता, अजीव कभी अपना नहीं होता

आचार्य प्रवर श्री विजयराजजी मसा ने कहा

छोटू भाई की बगीची में प्रवचन

हरमुद्दा
रतलाम,09 नवंबर। शरीर में जब तक आत्मा रूपी हंस है, तभी तक वह उपयोगी है। हंस के निकलते ही सबकुछ  रह जाता है। सबको माल पडा रह गया और मालिक चला गया का अनुभव करना चाहिए, क्योंकि एक दिन सबके साथ यहीं होना है। जिदंगी अनिश्चित है, लेकिन मौत निश्चित होती है। अनिश्चितताओं के इस दौर में जो मौत को देख-समझ लेता है, उसके हदय में प्रेम बस जाता है।


यह बात परम पूज्य, प्रज्ञा निधि, युगपुरूष, आचार्य प्रवर 1008 श्री विजयराजजी मसा ने कही। गुरूवार को छोटू भाई की बगीची में प्रवचन के दौरान उन्होंने कहा कि जीवन की नैया पार करने के लिए हदय में प्रेम होना और जीवन में शील रहना आवश्यक है। प्रेम, वात्सल्य, करूणा आदि जिसके जीवन में हो और जो शील रूपी सदाचार को आचरण करता है, उसका बेडा पार हो जाता है। संसार में कई बार अपने, पराए हो जाते है और पराए, अपने हो जाते है। समय बदलने, परिस्थितियां बदलने और कर्मदशा के बदलने से ये स्थितियां बनती है।

इसलिए यदि संसार सागर से पार होना है, तो हदय में प्रेम और जीवन में शील रहना चाहिए। वर्तमान समय में सबको हदय में प्रेम और जीवन में सदाचार का आत्म अवलोकन करना चाहिए। यदि सकारात्मकता पर भरोसा होगा, तो बेडा जरूर पार हो जाएगा। अन्यथा द्वेष, नफरत, तिरस्कार के नकारात्मक भाव बेडा गर्क कर देंगे।

हृदय विराट होगा तो मन प्रफुल्लित

आचार्यश्री ने कहा कि अपने हदय में प्रेम की विराटता लाने की जरूरत है। हदय विराट होगा, तो मन प्रफुल्लित रहेगा। विराट हदय वाला ही सच्चा धर्मात्मा होता है। जीव कभी पराया नहीं होता और अजीव कभी अपना नहीं होता। जीव मात्र के प्रति प्रेम का भाव आत्मा का कल्याण करने वाला है।

कुछ भी करो मिलता ही है कर्म का फल

आरंभ में उपाध्याय प्रवर श्री जितेशमुनिजी मसा ने कर्म सत्ता पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कर्म फल मिलकर ही रहता है, इसलिए ऐसे कर्म करने चाहिए, जिनसे आत्मा का कल्याण हो। इस मौके पर तपस्वियों ने अलग-अलग तप के प्रत्याख्यान लिए। प्रवचन के दौरान बडी संख्या में श्रावक-श्राविकागण उपस्थित रहे।

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