चुनाव / बातें तो हैं : आपको किए जाने वाला मतदान अगली बार करेंगे, तो क्या गत होगी, मतदाताओं में है गुस्सा, गंदगी की भरमार, पेयजल संकट, कुत्तों का आतंक, समस्याओं से पड़ता है फर्क, क्या दिखा सकते हैं फर्श!

हेमंत भट्ट

चुनाव है तो बातें भी हैं। तरह-तरह की बातें चल रही है। समस्याओं में जकड़े रहने के कारण उन मतदाताओं में आक्रोश है, जिन हर दिन समस्याओं से दो-चार होना पड़ता है। बात पेयजल की हो। सफाई की हो। अतिक्रमण, पार्किंग, सड़कों की हो या फिर कुत्तों के आतंक की हो। तानाशाही और मनमानी की हो। सुरक्षा की हो। सभी दृश्य मतदान के दौरान मतदाताओं की आंखों में तैर जाते हैं। ट्रिपल इंजन सरकार के फायदे और नुकसान का आकलन शुरू होता है। ऐसे में भी पप्पाओं को बुलाने पर मतदाता हंस रहे हैं।

होते हैं दान देने के नियम

नगरीय निकाय चुनाव मैं आईना दिखाने के बावजूद सबक नहीं सीखने वाले वाले न जाने किस मुंह से फिर से दान के लिए हाथ फैलाए बैठे हुए हैं जबकि यह तो सर्व विदित है कि दान देने के भी नियम है। दान लेने वाला कुपात्र है या सुपात्र है। यह भी देखा जाता है कि उसका दान सही जगह जा रहा है या नहीं। यही दान का नियम है और मतदान पर भी यही नियम लागू होता है। पहले से दी जाए आर्थिक मदद (रिश्वत) के बाद जब उनसे मतदान की अपेक्षा रखते तो वह मतदान नहीं माना जाता है बल्कि वह खरीदा गया वोट ही माना जाएगा। ऐसी बातें सरे आम हो रही है।

तो क्या गलत होगी?

जिस तरह से नगर निगम हर दिन कहीं ना कहीं घोषणा कर देता है आज किए जाने वाला पर जलप्रदाय आगामी दिन में किया जाएगा, उसी तर्ज पर बातें हो रही है, आपको किए जाने वाला मतदान अब अगली बार किया जाएगा। वास्तव में यदि हो जाए तो क्या गत होगी, यह समझ जा सकता है।

आखिर ऐसा क्यों

गत 15 दिन से यही बातें चल रही है कि जब आपने अच्छा काम किया है। आप ताकतवर हो। आप मिलनसार हो। जनता के हित चिंतक हो तो फिर डर किस बात का है? क्यों आपको उन्हें बुलाने की जरूरत पड़ गई, जिनकी जरूरत मतदाता मानते ही नहीं थे। यानी की आप कहीं नहीं कहीं कमजोर जरूर हो। आप मतदाताओं की कसौटी पर शायद खरे नहीं उतरे हो। इसीलिए देश के शीर्ष नेताओं का आना-जाना लग रहा। आखिर ऐसा क्यों हुआ? ऐसे में मतदाता तो यही कह रहे हैं कि एक पंथ दो काज वाला कार्य हुआ है लोकसभा चुनाव की रिहर्सल कर करके चले गए हैं। बातें तो यह भी हो रही है कि जब बच्चा स्कूल जाता है और उन्हें कोई मस्तीखोर शैतान बच्चे डराते हैं, वह उनसे निपटने का हौसला हिम्मत नहीं रखते हैं और अपने पापा को लेकर जाता है, ताकि उन बच्चों को पता चल जाए कि उसके पापा कौन हैं, उनकी कहां तक पहुंच है। पप्पाओं को बुलाने पर मतदाता हंस रहे हैं।

अव्यवस्थाओं से है नाराज

इतना ही नहीं शहर में हर दिन समस्याओं से दो-चार होने वाले आम मतदाता अव्यवस्थाओं से का से नाराज नजर आ रहे हैं। उनका आक्रोश हर दिन पनपता जा रहा है बलशाली होता जा रहा है। बात नगर में पसरे अतिक्रमण की है, जिससे यातायात बदहाल हो रहा है। दुकानदार मालामाल हो रहे हैं। पार्किंग के ठिकाने नहीं, धूल की समस्या, सड़कों पर कचरे के ढेर तो पुरातन समस्या है, गंदगी चारों तरफ है। इससे इनकार नहीं किया जा सकता। ऐसे में खुले में पड़ी सामग्री का बेधड़क विक्रय हो रहा है। खाद्य विभाग केवल नौटंकी करता है कि उन्होंने नमूने लिए। कितने की को सजा मिली इस बात की जानकारी आम जनता को दी ही नहीं जाती है। बस अपना लक्ष्य पूरा करने के लिए नमूने ले लिए जाते हैं गांधी दर्शन के बाद रफा दफा की नीति साल दर साल बढ़ती जा रही है। परेशान है तो केवल और केवल मतदाता। होता भी यही है दान देने वाला ही परेशान होता है। लेने वाला तो भूल जाता है किसने दिया दान और किसने नहीं। यह कहकर टाल देता है।

सभी हैं आहत इनकी रीति से

लोगों में आक्रोश इस बात का है कि मीडिया से जुड़े बड़े-बड़े घरानों के मालिक भी उनके आम पाठकों की समस्याओं को सुलझाने में अहम भूमिका का निर्वाह नहीं करते हैं। क्योंकि सरकार भी प्रिंट मीडिया को ही तवज्जो दे रही है। जबकि अहम भूमिका का निर्वाह सोशल मीडिया ही कर रही है। इतना ही नहीं कर्मचारी मतदाता तो आहत है ही उनके परिवार भी कर्मचारी विरोधी नीतियों के चलते खासे नाराज हैं। जब पैसों की जरूरत है, तो उन्हें उस पेंशन से वंचित किया जा रहा है, जो वे चाहते हैं, लेकिन देने वाले केवल अपनी पेंशन के बारे में ही निर्णय ले लेते हैं और मोहर लग जाती है।

किससे मिलाएंगे हाथ और किसको दिखाएंगे

ऐसे तमाम दृश्य मतदान के दौरान मतदाताओं की आंखों के सामने तैरेंगे और वह निर्णय लेंगे कि आखिर मतदान किसको करना है। किस से हाथ मिलाना है और किसको हाथ दिखाना है। अपने मन की आवाज सुनेंगे । अपने दिल की आवाज सुनेंगे। अपने दिमाग की बात को मानेंगे।

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