धर्म संस्कृति : सुख वही सच्चा और वास्तविक, जो दुख रहित हो
⚫ आचार्य प्रवर श्री विजयराजजी मसा ने कहा
⚫ पगारिया हाउस में होंगे गुरुवार के प्रवचन
हरमुद्दा
रतलाम,29 नवंबर। सुख जीव का स्वभाव है। ये सभी को प्रिय होता है, मगर संसारियों के सुख के मायने अलग होते है। वे पैसा, परिवार, पद, प्रतिष्ठा में सुख खोजते है। ये सुख हमे सुख कम और दुख ज्यादा देते है। इनकी प्राप्ति भी दुखप्रद और समाप्ति भी दुखप्रद होती है। आध्यात्मिक सुख कभी विनष्ठ नहीं होते। किसी को एक बार आध्यात्मिक सुख की अनुभुति हो जाती है, तो वह फिर कभी विनष्ट नहीं होती।
यह बात परम पूज्य, प्रज्ञा निधि, युगपुरूष आचार्य प्रवर श्री विजयराजजी मसा ने कही। न्यूरोड स्थित ब्राहम्ण बोर्डिंग में प्रवचन देते हुए उन्होंने कहा कि संसारी भौतिक सुख की चाह रखते है, जो कभी पूरी नहीं होती। भौतिक सुख तो दूसरों को दुख दिए बिना प्राप्त ही नहीं होते और जो दुख की नींव पर खडा हो, वो सुख नहीं दुख ही होता है। सुख तो वही सच्चा और वास्तविक होता है, जो दुख रहित होता है।
गुरुवार को स्टेशन रोड पर प्रवचन
आचार्यश्री ने कहा कि संसार में रहकर हमेशा आघ्यात्मिक सुख प्राप्त करने का प्रयत्न करना चाहिए। इसमें लगाया गया समय सदैव सार्थक होता है। आध्यात्मिक सुख की प्राप्ति संकल्प और समझ के द्वारा ही होती है। साधक संयम के द्वारा उसे प्राप्त करते है। संसारी मन के मुताबिक चलते है, इसलिए वे दुखी रहते है। मन को अपने मुताबिक बना लेने पर वह सुख ही सुख प्रदान करता है। आचार्यश्री के प्रवचन गुरुवार 30 नवंबर को सुबह 9 बजे स्टेशन रोड स्थित पगारिया हाउस में होंगे