चुनाव / बातें तो हैं : भैया जी को लीड मिली कम तो प्रबंधन का निकलेगा दम, एग्जिट पोल को मतदाता मान रहे झोल, किसकी उम्मीदों का फूटेगा ढोल
⚫ हेमंत भट्ट
⚫ चुनावी रण का बिगुल बजने के बाद अब बारी परिणाम की आ गई है। मतदाताओं ने तो अपने अपने विधायक को चुन लिया है, बस घोषणा होना बाकी है। 3 दिन पहले आए एग्जिट पोल को आम मतदाता झोल बता रहे हैं। मतदाताओं का यही मानना है कि उम्मीदों का ढोल तो फूटेगा ही। भैया जी को लीड कम मिली तो प्रबंधन का जरूर दम निकलेगा। मूलभूत सुविधा को ही यदि वे विकास मान रहे हैं तो यह बात मतदाताओं के गले नहीं उतरी है। मतदाताओं के गले उतरी है तो केवल और केवल उनको आर्थिक रूप से मदद देने वाली योजनाएं । ⚫
कुछ घंटे बाद पता चल जाएगा की चुनाव में किसकी साख बची है और कौन मतदाताओं के मुद्दों के सामने खास नहीं बन पाया है। देखा जाए तो इस बार चुनाव मुद्दों पर नहीं हुए हैं। चुनाव में चली है तो केवल स्कीम, स्कीम, और स्कीम। भाजपा ने जहां चुनाव के पहले ही मतदाताओं को लुभाने के लिए स्कीम चलाई। वहीं उम्मीद की कश्ती को चुनावी वैतरणी उतारने वाली पार्टी ने एक कदम आगे वाली घोषणा की है कि हम आए तो ऐसा करेंगे। अब मतदाताओं के सामने यही विकल्प है कि कौन पार्टी ज्यादा लाभ देगी, उसको हम तवज्जो देंगे। यानी की साफ-साफ बात यही है कि इस चुनाव में उन मतदाताओं के मन को, उनकी अभिलाषाओं को खरीदने का काम चला है। मतदाता भी चालाक है, वह भी जोड़, बाकी, गुणा करके समझ गया है कि किससे क्या लाभ मिलेगा ? पास और बहुत दूर की सोच कर उसने अपने पसंदीदा विधायक को, जनप्रतिनिधि को चुन लिया है। यदि सब कुछ ठीक रहा तो मतदाताओं के मन खिल खिलाएंगे। बस, गड़बड़ झाला नहीं होना चाहिए। पद के पावर का दुरुपयोग हुआ होगा तो कुछ भी संभव है।
एग्जिट पोल सेटिंग का मामला
तीन दिन पहले आए एग्जिट पोल से तो मतदाताओं को लग रहा है कि सब मामला सेटिंग का चल रहा है। एग्जिट पोल को मतदाता कर्नाटक की तरह झोल मान रहे हैं। मतदाताओं की चुप्पी तो यही बता रही है कि एग्जिट पोल के साथ ही सरकारों ने अपने-अपने हथकंडे अपना लिए हैं। इसीलिए एक बार फिर ताल ठोक रहे हैं। एग्जिट पोल के आंकड़े कितने सटीक बैठते हैं, यह कुछ घंटे बाद स्पष्ट हो ही जाएगा।
बढ़ेगी और घटेगा दिल की धड़कनें
बातें तो यह भी है कि जैसे-जैसे ईवीएम आंकड़े बताएंगे वैसे-वैसे धड़कने बढ़ेगी, घटेगी। पार्टी वाले प्रत्याशी मतदाताओं की कसौटी पर कितने खरे उतरते हैं, यह भी पता चलेगा। इसके साथ ही वह उम्मीदवार भी उम्मीद के आंकड़ों में मतदाताओं की चाहत को साफ-साफ रूप से देख पाएंगे, जो अपने स्वभाव, प्रभाव के चलते चुनाव मैदान में हैं, उनके लिए पार्टी का निशान जरूरी नहीं है। वे केवल और केवल अपने बूते ही मैदान में उतरे हैं। अब यह देखना है कि ऐसे सभी चाहने वालों को कितना आशीर्वाद मिलता है, ताकि वे आगामी चुनाव के लिए अपना भविष्य निर्धारित कर सके। मैदान तैयार कर सके।
खुशी मनाने को सभी आतुर
चाहे पार्टी वाले उम्मीदवार और उनके कार्यकर्ता हों, या फिर समाज के चाहने वाले, समाज में खास दखल रखने वाले हो। या फिर मतदाताओं की सुविधाओं को जानने वाले हो। ऐसे सभी उम्मीदवार भी खुशी मनाने को आतुर हैं, मगर अब किसकी किस्मत में कितनी खुशी और कितना गम है। यह तो अभी साफ होने कुछ समय और है।
भैया जी के लिए चर्चा तो है ऐसी भी
चुनाव में उम्मीदवारों की घोषणाओं के बाद ही भैया जी के भक्तों ने अबकी बार 56000 पर की लीड का जुमला फेंका है। इसी को लक्ष मानकर तैयारी भी जोर-जोर से हुई। प्रबंधन वाले भिड़े भी, मगर लीड मन माफिक नहीं मिली तो प्रबंधन की खैर नहीं है। आमजन में चर्चा तो यही है कि जो उम्मीद हुई है उसे 20 से 25% की लीड मिल जाए तो भी गनीमत है। और यदि ऐसा होता है तो क्या होगा? यह जीत सही मायने में जीत होगी या नहीं। महापौर चुनाव वाली लीड तो पहले ही होश उड़ा चुकी है। चिंता की चिंगारी को जन्म दे चुकी है।
विकास निस्वार्थ होता है जिसमें छिपा रहता है परमार्थ
अब मतदाता इतना तो जानते हैं कि विकास क्या होता है और सुविधा क्या होती है? मूलभूत सुविधाओं को ही यदि विकास बताते हैं तो वह विकास नहीं है। वह तो केवल विकास की ओर जाने वाला मार्ग ही होता है। मूलभूत सुविधा और योजनाओं को विकास नहीं कहा जा सकता। विकास निस्वार्थ होता है जिसमें परमार्थ छिपा रहता है। ऐसा तो कोई विकास शहर में नजर आया नहीं। भले ही धन को पानी की तरह खर्च किया है, मगर वह खर्चा विकास नहीं हो सकता। दिखावा जरूर हो सकता है।