धर्म संस्कृति : जो वर्तमान में जीता है, वही श्रीमद् गीता का सच्चा अनुयाई

अंतरराष्ट्रीय ओजस्वी वक्ता सत्यव्रत शास्त्री ने कहा

श्रीमद् भागवत सप्ताह एवं गीता जयंती महोत्सव का समापन

दुपट्टे से सहयोगियों के किया सम्मान

फलाहारी भंडारे में हजारों लोगों ने पाया प्रसाद

हरमुद्दा
रतलाम, 23 दिसंबर। जो वर्तमान में जीता है, वही गीता का सच्चा अनुयाई है। ना तो बीते कल की चिंता करना चाहिए और नहीं आने वाले कल की। जो आज है। उसको धर्म के साथ जीना चाहिए। आज जो सुख सुविधा, धर्म सत्संग मिल रहा है, उसका आनंद उठाएं। भूत और भविष्य की चिंता से वर्तमान भी खराब हो जाता है। कर्त्तव्य का पालन करते हुए धर्म के मार्ग पर चलते है तो इह लोक और परलोक दोनों सुधर जाएंगे। जो मिल रहा है, उसमें खुश रहने का जतन ही प्रभु का सत्संग है। धर्म का पालन करने वाला हमेशा सुखी और संपन्न रहता है।

यह विचार अंतरराष्ट्रीय ओजस्वी वक्ता आचार्य सत्यव्रत शास्त्री ने व्यक्त किए। श्री राधा कृष्ण संस्कार परिषद एवं गीता जयंती महोत्सव के बैनर तले हनुमान बाग अमृत सागर पर चल रहे श्रीमद् भागवत सप्ताह सातवें दिन कथा के प्रारंभ में नंदकिशोर व्यास और दुर्गेश रावल ने धर्मनिष्ठ डॉ. राजेंद्र मीना शर्मा दम्पत्ति से श्रीमद् भागवत का पूजन अर्चन कर आरती करवाई।

यजमान डॉ. राजेंद्र शर्मा दम्पत्ति पूजन करते हुए

भागवत आचार्य श्री शास्त्री का सम्मान किया। सुबह से ही 21 भू देवों द्वारा श्रीमद् भगवत गीता का पाठ शुरू किया गया।

गीता पाठ करते हुए भूदेव

कामना पूरी नहीं होने पर होता है क्रोध

आचार्य श्री शास्त्री ने कहा मनुष्य को जीवन में इतनी अधिक भी कामना नहीं करनी चाहिए कि उनके पूरे नहीं होने से क्रोध का भाव जागृत हो जाए। जब मनुष्य जीवन में क्रोध का आगमन होता है तो जीवन प्रभावित हो जाता है। वह अपने मार्ग से भटक जाता है। विषय और ईश्वर कभी साथ नहीं रहते। विषय के कारण ही हम लक्ष्य तक नहीं पहुंच पाते हैं। हमारे संस्कार और संस्कृति के कारण ही हमारा और विश्व का कल्याण होगा।

सत्संग से ही आते हैं धैर्य, सदाचार, स्नेह और सेवा जैसे गुण

आचार्य महीधर शास्त्री

आचार्य महीधर शास्त्री ने कहा धैर्य, सदाचार, स्नेह और सेवा जैसे गुण सत्संग से ही आते हैं। श्रीकृष्ण कहते हैं कि मनुष्य को वस्त्र बदलने की आवश्यकता नहीं है। आवश्यकता हृदय परिवर्तन की है। जवानी में जिसने ज्यादा पाप किए हैं, उसे बुढ़ापे में नींद नहीं आती। आनंद मनुष्य के भीतर ही निवास करता है। परंतु मनुष्य उसे स्त्री में, घर में और बाहरी सुखों में खोज रहा है। 

भगवान की उपासना शरीर से नहीं मन से करें

संयोजक पुष्पोदभव शास्त्री

संयोजक पुष्पोदभव शास्त्री ने कहा कि आज वराह जयंती भी है। श्रीकृष्ण कहते हैं कि भगवान उपासना केवल शरीर से ही नहीं बल्कि मन से करनी चाहिए। भगवान का वंदन उन्हें प्रेम-बंधन में बांधता है। मनुष्य की वासना ही उसके पुनर्जन्म का कारण होती है। इंद्रियों के अधीन होने से मनुष्य के जीवन में विकार और परेशानियां आती है।

श्रीमद् भागवत सप्ताह का समापन और गीता जी का आगमन

शनिवार को श्रीमद् भागवत सप्ताह के प्रवचन के पश्चात धूमधाम से धर्मनिष्ठ मनोज शर्मा श्री मद भगवत गीता को सर पर उठाकर आयोजन स्थल पर लाए। रास्ते में  पुष्प वर्षाकर धर्मालुजन जयकारे लगा रहे थे। सात दिवसीय महोत्सव में सहयोग करने वाले सहयोगियों का दुपट्टा पहनाकर सम्मान किया गया। आचार्य श्री शास्त्री का सम्मान पार्षद विशाल शर्मा, राजा शर्मा, मोहित शर्मा, समाजवादी पार्टी के जिला अध्यक्ष राधेश्याम पवार, पत्रकार श्याम योगी कांग्रेस नेता सुबोध मिश्रा सहित अन्य ने किया। संचालन शरद वर्मा ने किया। आभार गीता जयंती महोत्सव समिति के अध्यक्ष डॉ. राजेंद्र शर्मा ने माना।

भंडारे के प्रसाद में 11 क्विंटल से अधिक फलाहार का वितरण

श्रीमद् भागवत सप्ताह एवं गीता जयंती महोत्सव का समापन पर हजारों भक्तों ने बैठकर साबूदाने की खिचड़ी, गाजर का हलवा और कड़ी की प्रसाद प्राप्त किया।  शान्तु गवली और सतीश राठौर ने बताया खिचड़ी बनाने में 120 किलो साबूदाने, 40 किलो मूंगफली के दाने, 150 किलो आलू, 20 किलो हरी मिर्च 15 किलो धनिया 5 किलो अनार 1 किलो अदरक, 5 किलो राजगीर का आटा,  7 किलो सिंघाड़े का आटा, हलवा बनाने में 3 क्विंटल गाजर, 70 किलो मावा, 10 किलो देसी घी 140 किलो शक्कर, 60 किलो दही, काजू, दाख, इलायची, 1 क्विंटल छाछ सहित अन्य मसाले से फलाहार बनवाया गया।

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