उत्सव के उल्लास में सृजन : दुलहन बनी है अवध नगरिया रघुवर राम पधारे हैं…

दुलहन बनी है अवध नगरिया
रघुवर राम पधारे हैं…
राम का राज तिलक होते देखा
धन्य धन्य भाग्य हमारे हैं…

रेणु अग्रवाल

दुलहन बनी है अवध नगरिया
रघुवर राम पधारे हैं…
राम का राज तिलक होते देखा
धन्य धन्य भाग्य हमारे हैं…

हाथ धनुष सोहे माथे पर चंदन
रघुपति राघव राजा रघुनंदन
प्रेम के पुष्प से करूँ अभिनंदन
मन करे प्रभू को नित नित वंदन
सरयू मात के नैना बरसे
सुर नर आरती उतारे हैं
रघुवर राम……………….।

राम लखन सिया देख के झाँकी
देखन को रहा और क्या बाकी
और न देखें कुछ ये अँखियाँ
तर गईं हम तो बोले दोऊ सखियाँ
राम का राज सिंहासन देखा
ये सौभाग्य हमारे हैं…….
रघुवर राम ………………..।

नैनों के दीप है नेह की बाती
आस्था जोत और क्या मैं कर पाती
इस दिन को था मनवा तरसा
जाने लिखे कितने राम को पाती
जय श्री राम का गूंजा नारा
जन जन राम उचारे हैं……
रघुवर राम……………….।

रेणु अग्रवाल

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