उत्सव के उल्लास में गज़ल का सृजन : हमारी ही प्रतीक्षा के, सुखद परिणाम आए हैं, सदी के बाद प्रभु श्रीराम अपने धाम आए हैं

हमारी ही प्रतीक्षा के, सुखद परिणाम आए हैं।
सदी के बाद प्रभु श्रीराम अपने धाम आए हैं। मिले हल्दी भरे अक्षत निमंत्रण धाम आने को, बड़े दिन बाद संदेशे ‘स्वयं’ के नाम आए हैं।⚫

दिव्या भट्ट

हमारी ही प्रतीक्षा के, सुखद परिणाम आए हैं।
सदी के बाद प्रभु श्रीराम अपने धाम आए हैं।।

जलाओ दीप मिलकर आज पुष्पों की घनागम हो,
लला की ओर से हमको यही पैग़ाम आए हैं।

अभी क्या और माँगूँ मैं, तुम्हारा साथ जो पाया,
भगत की प्रार्थनाओं में नए आयाम आए हैं।

अकेले भीड़ में भटके, लगा की खो गए हैं हम,
उठाया बाँह में तो हाथ प्रभु का थाम आए हैं।

भगत सारे मधुर गीतावली रसपान करते हैं,
हमारी ओर भजनों के लबालब जाम आए हैं।

हमारे मोह सब छूटे, निहारे बस नयन तेरे,
तुम्हारे द्वार पर हम तो बड़े निष्काम आए हैं।

बिछे मेरे नयन प्यासे, तुम्हारे द्वार पर कबसे,
कभी तू मुस्कुराए सोच सुबहा शाम आए हैं।

महकते द्वार फूलों से सुशोभित है अवध नगरी,
चरण छूने, दरस करने, अवध अविराम आए हैं।

किसी रोते हुए के मुख तनिक मुस्कान ले आएं,
दया भगवान की जो हम किसी के काम आए हैं।

रमा के पति रमापति हैं, सिया के राम भी तो हैं।
वही तो द्वारिकापति, गोपिका के श्याम आये हैं।

मिले हल्दी भरे अक्षत निमंत्रण धाम आने को,
बड़े दिन बाद संदेशे ‘स्वयं’ के नाम आए हैं।

दिव्या भट्ट

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