रतलाम में जमीन घोटाला : आम जनता की अरबों की जमीन एक झटके में धन्ना सेठों के हवाले
⚫ पहले से ही नजूल की भूमि का हजारों फीट का कब्जा छुड़ाने में है नाकाम
⚫ यातायात सुधार में महापौर का भ्रमण भारी पड़ गया आमजन को
⚫ नगर सरकार मेहरबान
⚫ परेशानजन हो रहे हैरान
हेमंत भट्ट
रतलाम, 8 फरवरी। नगर सरकार ने रातों-रात आम जनता की अरबों की जमीन धन्ना सेठ के हवाले कर दी। आमजन नगर निगम के इस क्रत्य को देखकर हैरान है। परेशानजन यही कह रही है कि पहले ही नजूल की हजारों फीट भूमि पर धन्ना सेठों कब्जा हटाने में नगर सरकार नाकाम है और ऊपर से नया कारनामा कर दिया है। खास बात तो यह है कि इस काम को जिला प्रशासन ने भी मौन स्वीकृति दे दी है।
चौमुखीपुल से घास बाजार तक बनाई गई फोरलेन यातायात की सुविधा की दृष्टि से चौड़ाई कम होने के कारण परेशानी हो रही है। वजह यही थी कि यहां के व्यापारियों और रहने वालों के चार पहिया वाहन सड़क पर पड़े रहते थे, उन्हें कई बार हटाने के लिए मुद्दा उठाया गया लेकिन जिम्मेदार ध्यान नहीं दे पाए।
पार्किंग की नहीं है जगह
डिजिटल मीडिया सहित समाचार पत्रों में भी जब इस मुद्दे को उठाया गया तो महापौर बाजार के भ्रमण पर निकले और यातायात व्यवस्थित करने के निर्देश दिए। साथ ही हिदायत भी दी गई की पार्किंग लाइन के बाहर वहां नजर आए तो वाहन चालकों के खिलाफ चालानी कार्रवाई होगी, जबकि अव्वल बात तो यह है कि पार्किंग की जगह ही नहीं है और सफेद लाइन शहर भर में बना दी गई है।
इसमें भी खास बात यह है की चालानी कार्रवाई केवल दो और चार पहिया वाहनों वालों पर ही हो रही है जबकि ठेला गाड़ियों में सामान बेचने वालों पर कोई कार्रवाई नहीं। वह सड़क के बीच में खड़े रहते हैं। कुर्सी लगाकर बैठे रहते हैं लेकिन जिम्मेदारों को वह कोई नजर नहीं आते, उन्हीं के कारण पूरा यातायात बिगड़ रहा है।
यातायात समस्या पर नगर सरकार मेहरबान
यातायात समस्या के इस मुद्दे पर नगर सरकार की मेहरबानी देखिए की धन्ना सेठों पर कितनी मेहरबान है और आम जनता को केवल परेशान कर रही है। घास बाजार से चौमुखी पुल तक दोनों ओर सड़क बनी हुई है। इसकी करीब 200 मीटर की लंबाई है और चौड़ाई फोरलेन के नाम पर कतई नहीं है। कुछ महीने पहले सफेद लाइन बनाई गई थी जिसके बाहर चार पहिया वाहन खड़े रहते थे, वहीं यातायात में बाधक बन रहे थे। जिस जगह पहले सफेद लाइन बनाई थी उससे करीब 3 फीट सड़क की ओर पीली लाइन दोनों तरफ बना दी गई। इस तरह 400 मीटर लंबी सड़क पर रातों-रात 4000 फीट जगह धन्ना सेठों के हवाले कर दी, जोकि आमजन की सुविधा के लिए थी।
ऐसे हुआ यातायात व्यवस्थित !
यातायात व्यवस्था के लिए पहले ही आवागमन के लिए सड़क छोटी पड़ रही थी अब और छोटी कर दी गई है। यह नगर सरकार की मेहरबानी हुई है। इस जमीन घोटाले में किसको क्या लाभ मिला है ? यह तो वह ही जिम्मेदार ही जाने, मगर परेशानी आमजन की हो रही है। उन्हें वाहन चलाने की जगह नहीं मिल रही है। यातायात रेंग रहा है। गाड़ियों का धुंआ फेफड़ों में भरने को वाहन चालक मजबूर है। सड़क पर अतिक्रमण फल फूल रहा है। नगर सरकार ने अतिक्रमण को और बढ़ावा दे दिया। चार पहिया वाहन उनके घरों में रखना चाहिए थे, लेकिन वह अब सड़क पर ही रहेंगे। जबकि पहले ही नजूल की जमीन उनके कब्जे में है ही।
हजारों फीट नजूल की जमीन भी है उनके कब्जे में
इतना ही नहीं यहां पर दोनों ओर लाइनों में नजूल की हजारों फीट जमीन मकान मालिकों के कब्जे में है, जिसे नगर निगम छुड़ाने में नाकाम रहा है। पहले जब फोरलेन निर्माण होना था तो सोचा था कि मार्ग चौड़ीकरण में नजूल की जमीन भी मिलेगी, मगर ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। जिन्होंने जितना अतिक्रमण कर रखा था, उसे मान्यता दे दी गई। इतना ही नहीं अब और पक्की सीसी रोड जमीन सहित उनको उपहार में दे दी। फोरलेन बनाने के नाम पर तो आम जनता को उसके साथ धोखा किया ही है। अब सड़क की सुविधा छीन कर छला जा रहा है।
आखिर यह मेहरबानी क्यों ?
आखिर यह मेहरबानी क्यों हो रही है? जबकि यातायात की समस्या का समाधान नहीं हुआ है। लोग दबी जबान में तो यही कह रहे हैं कि महापौर का भ्रमण केवल जमीन घोटाले को बढ़ावा देना ही था। आखिर इस कार्य में उनका क्या लाभ मिला? यह तो वही जाने या उनके आला अफसर जाने।
गांधी दर्शन के बिना कुछ संभव नहीं
मगर प्रॉपर्टी के जानकारों की माने तो उनका यही कहना है कि चांदनी चौक, चौमुखी पुल, घास बाजार का क्षेत्र काफी महंगा है। दबी जबान में यहां पर 15 से 30 लाख रुपए स्क्वेयर फीट की जमीन है। इस मान से आसानी से समझा जा सकता है कि नजूल की भूमि क्यों नहीं छुड़वा पाए। वजह साफ है गांधी दर्शन की बिना कुछ भी संभव नहीं है।
विधायक भी उनके, पार्षद भी उनके, महापौर भी उनके
आम जनता का तो यही कहना है कि वर्ग विशेष को लाभ देने के लिए इस क्षेत्र में आज तक अतिक्रमण मुहिम नहीं चल पाई। विधायक भी उनके, पार्षद भी उनके, महापौर भी उनके। कार्रवाई सिर्फ आमजन पर होती है। कुछ साल पहले कस्तूरबा नगर में चौड़ी सड़क होने के बावजूद भी लोगों के घर के आगे बने बगीचे उजाड़ दिए थे, यही कहकर कि यातायात में परेशानी हो रही है। यह अतिक्रमण है जबकि वह पर्यावरण में सहायक थे।
कलेक्टर ने रिसीव नहीं किया फोन
इस मामले में जब कलेक्टर भास्कर लक्षकार से जानकारी लेना चाहिए तो उन्होंने फोन रिसीव नहीं किया।