खरी खरी : सुनो मुख्यमंत्री जी, ना तो आपके और न ही खुद के आदेश और निर्देशों का पालन करवाने की कुबत रखते हैं आपके आईएएस आईपीएस, लाखों मतदाता है परेशान, जिम्मेदार नहीं दे रहे ध्यान, बेच दिया जमीर, बनना है अमीर
हेमंत भट्ट
सुनो मुख्यमंत्री जी, ना तो आपके और न ही खुद के आदेश और निर्देशों का पालन करवाने की कुबत रखते हैं आपके आईएएस आईपीएस। लाखों मतदाता परेशान हैं। जिम्मेदार ध्यान नहीं दे रहे। ध्वनि प्रदूषण बदस्तूर जारी है। पूरी रात, आधी रात तक शोरगुल चल रहा है। शहरवासी समस्याओं से परेशान हैं। सबसे ज्यादा स्थिति बिगड़ हुई है यातायात की और इसकी वजह साफ है अतिक्रमण, अतिक्रमण और अतिक्रमण। जिसका प्रतिक्रमण करने की हिम्मत हौसला जिम्मेदारों में नहीं बचा है। खास बात तो यह है कि जब से आपने शाजापुर कलेक्टर को हटाया है, तब से रतलाम कलेक्टर तो जनसुनवाई से नदारद हो गए हैं।
मुख्यमंत्री जी जिस दिन आपने पदभार ग्रहण किया था। उस दिन प्रदेशवासी के साथ रतलाम के लाखों मतदाता भी खुश थे। आपने घोषणा की थी कि प्रदेश में ध्वनि प्रदूषण नहीं होगा। धार्मिक स्थलों से चिलम निकल जाएगी। लंबे चोंगे वाले लाउड-स्पीकरों का प्रयोग पूर्ण रूप से प्रतिबंधित किया गया है। मगर ऐसा कुछ हुआ नहीं और इसके उल्टा हो रहा है। सुबह से रात तक मंदिरों में बिना कारण से माइक चल रहे हैं। भजन बज रहे हैं। लोग परेशान हैं। शिकायत करने के बावजूद कार्रवाई नहीं होती है। कलेक्टर फोन उठाने को तैयार नहीं है। एसपी फोन उठाने के बाद ब्लॉक कर देते है। जब वरिष्ठ अधिकारी ही ऐसा करेंगे तो उनके नीचे का अमला क्यों काम करेगा?
आपके निर्देशों की अवहेलना, इन्होंने मान लिया अपना मुख्य धर्म
खास बात तो यह है कि आपके निर्देशों की अवहेलना करना इन्होंने अपना मुख्य धर्म मान लिया है ताकि आप इनको भी मैदान से हटाकर इनको इनके घोसलों में जमा कर दें ताकि आराम से जिंदगी के आनंद ले सकें। लोगों की समस्याओं से इनका कोई लगाव नहीं है। ऐसे आईएएस और आईपीएस रतलाम शहर और जिले के लिए किसी काम के नहीं है। जिला पंचायत के मुख्य कार्यपालन अधिकारी का भी यही आलम है। बड़े-बड़े पदों पर जिम्मेदार अधिकारी की जरूरत है। ऐसे लापरवाह अधिकारियों की नहीं जो की जनता से दूरियां बनाकर रखते हैं। जन सरोकारों से इन्हें कोई मतलब नहीं है। अपने पद का इतना घमंड है कि उनको नमस्कार का, सम्मान का जवाब तक नहीं देते हैं। ऐसा लगता है कि इससे इनका मान सम्मान घट गया है।
परीक्षाओं के दौर में ध्वनि प्रदूषण
मध्य प्रदेश शिक्षा मंडल भोपाल द्वारा आयोजित हाई स्कूल एवं हायर सेकेंडरी की परीक्षा शुरू होने के पूर्व कलेक्टर ने आदेश निकाले थे कि रात 10:00 बजे से सुबह 11:00 तक ध्वनि विस्तारक यंत्रों का उपयोग प्रतिबंधित रहेगा मगर आदेश मात्र कागजों में ही धरे रह गए। उसको अमली जामा नहीं पहनाया गया। खास बात तो यही कि जब से परीक्षा शुरू हुई है, तब से वैवाहिक आयोजन का सिलसिला भी शुरू हो गया है। हर कॉलोनी और मोहल्ले में आधी रात और सुबह तक नृत्य और संगीत की महफिल सज रही है। ढोल धमाके बज रहे हैं। कई परिवार तो आधी रात के बाद भयंकर तेज आवाज में डीजे पर बारात लेकर निकल रहे हैं। करवाई तो ठीक सुनवाई तक नहीं हो रही है।
जनंसपर्क विभाग ने जारी की थी खबर यह
“कोलाहल नियंत्रण अधिनियम के तहत जिले में प्रतिबंधात्मक आदेश लागू
रतलाम 01फरवरी कलेक्टर एवं जिला दंडाधिकारी भास्कर लाक्षाकार द्वारा मध्य प्रदेश दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 144 तथा मध्य प्रदेश कोलाहल नियंत्रण अधिनियम के अंतर्गत प्रतिबंधात्मक आदेश लागू किए गए हैं। उक्त आदेश आगामी हायर सेकेंडरी, हाई स्कूल परीक्षाओं के मद्देनजर लागू किए गए हैं। जिला दंडाधिकारी द्वारा रतलाम जिले की सीमा में लोक प्रशांति कायम रखने, कानून व्यवस्था की स्थिति बनाए रखने तथा ध्वनि उत्पन्न करने वाले यंत्रों की रोकथाम के लिए लागू किए गए प्रतिबंधात्मक आदेशों में कहा गया है कि रतलाम जिले की सीमा में रात्रि 11: 00 बजे के उपरांत प्रातः 11:00 बजे तक डीजे लाउड स्पीकर इत्यादि ध्वनि विस्तारक यंत्रों का उपयोग करना प्रतिबंधित होगा। उल्लंघन पर कोलाहल नियंत्रण अधिनियम तथा धारा 144 के तहत अभियोजन की कार्रवाई की जाएगी।” मगर इस पर नजर कौन रखेगा और रखेगा तो उसे पर कौन ध्यान देगा इसका कोई जिक्र नहीं।
तो क्यों स्वीकार किया कलेक्टर का पद
जबकि अब तो हाई स्कूल की परीक्षा समाप्त होने को है मगर ध्वनि प्रदूषण पर ना तो नियंत्रण लगा पाए और नहीं अपने आदेश का अधीनस्थों से कलेक्टर पालन करवा पाए हैं। इतना ही नहीं आमजन जब कलेक्टर को फोन लगाते हैं तो वह उठाने तक नहीं है। आखिर जब उनको आमजन से कोई मतलब नहीं है तो कलेक्टर का पद क्यों स्वीकार किया? बैठ जाते सचिवालय में। तो लोगों की समस्या हल करने में दूसरे तो जिम्मेदार रुचि लेते।
वह भी साबित हो रहा है गैर जिम्मेदार
मुख्यमंत्री जी तीन दिन बाद हाईस्कूल की परीक्षा तो संपन्न हो जाएगी मगर हायर सेकेंडरी की परीक्षा मार्च के पहले सप्ताह में संपन्न होगी, तब भी इनके कानों में जूं नहीं रेंगेगी। वह लोगों की सेहत और विद्यार्थियों की भविष्य के मद्देनजर ध्वनि विस्तार यंत्रों को प्रबंधित करें। इस कार्य में न केवल जिला प्रशासन के जिम्मेदार अपितु पुलिस प्रशासन के भी मैदानी अमले वाले गैर जिम्मेदार साबित हो रहे हैं।
धन्ना सेठों की गुलामी के अलावा कुछ नहीं काम क्योंकि मिल रहा है दाम
इतना ही नहीं मुख्यमंत्री जी, कलेक्टर ने और भी आदेश दिए थे। बाजारों में फैल सब्जी बेचने वालों को उनके उन्हें स्थान पर भेजा जाएगा। तारीख भी तय हो गई थी मगर सब्जी बेचने वालों को उन स्थानों पर भेजने में जिम्मेदार अधिकारी नकारा साबित हुए हैं और यही कारण है कि यातायात व्यवस्था बद से बदत्तर हो रही है। सड़कों पर फल और सब्जी बेचने वाले डटे पड़े हुए हैं। इनको उनकी जगह दिखाने की हिम्मत, हौसला और पावर आपके आईएएस आईपीएस में नहीं है। नहीं महापौर और आयुक्त में जिगरा है कि वह कुछ कर सके। धन्ना सेठों की गुलामी के अलावा और कुछ नहीं कर रहे हैं। क्योंकि वहां से दाम मिल रहे हैं। कुछ दिन पहले घास बाजार से चौमुखी पुल वाले फोर लेन दोनों तरफ का आमजन के उपयोग का हिस्सा कुबेर पतियों के नाम कर दिया। इसके बावजूद भी और आगे पसरने को तैयार हैं।
बेच दिया जमीर, बनना है अमीर
सब्जी बेचने के लिए तो जगह कलेक्टर कुमार पुरुषोत्तम ने भी तय कर दी थी और वहां पर भेज भी दिए गए थे लेकिन अमीर बनने के लिए जमीर बेच चुके अधिकारी और कर्मचारी उन्हें पुनः बाजार में आने देते हैं। कार्रवाई होती नहीं है और स्थिति वही ढाक के तीन पात जैसी हो जाती है। एक बात तो कहना पड़ेगी। यूं भले ही शहर को स्वच्छ सुंदर समस्या रहित बनाने में यह एकता नहीं दिखाते हो मगर ऐसे मामलों में उनकी एकता को कोई डिगा भी नहीं सकता। “हम साथ साथ हैं” की जुगलबंदी चलती रहती है और जब कोई कहता है यह समस्या है तो जवाब मिलता है “हम आपके हैं कौन
रस्सी पर गाड़ी चलाने के मानिंद है बाजारों में दो पहिया वाहन चलाना
…और विकास बात करें तो यह है कि बाजारों में दोनों तरफ से अतिक्रमण की बाढ़ आई हुई है। माणक चौक भुट्टा बाजार में तो दो पहिया वाहन से निकलना रस्सी पर गाड़ी चलाने जैसा हो जाता है। इसी तरह घास बाजार, कलाईगररोड, चांदनी चौक, चौमुखीपुल इन क्षेत्रों में भी यही आलम है। रेंगते हुए यातायात चलता है, जबकि यहां फोरलेन बनाई गई है। यातायात की सुगमता के लिए करोड़ों खर्च किए हैं। सवारी के इंतजार में मैजिक और ऑटो रिक्शा कहीं पर भी खड़े रहते हैं, उन्हें कोई रोक-टोक नहीं है। यातायात अमला भी उन्हें देखते हुए मुस्कुरा कर निकल जाता है। परेशान होते हैं तो केवल और केवल सड़क पर चलने वाले और आनंद लेते हैं दुकानदार। कुल मिलाकर बात यही है कि रतलाम पर ध्यान दिया जाए क्योंकि रतलाम वाले आप पर ध्यान देते हैं।