शख्सियत : कांटों भरे रास्ते का सफर है कवि की जिंदगी

साहित्यकार मेहजबीं का मानना

हिटलरी भावनाएं आज भी भारत सहित दुनिया के तमाम देशों में मौजूद हैं। वही लोगों में नफरत फैला रही हैं और लड़ा रही हैं। वह तोप के गोले बरसा रही है। वह फिलिस्तीन और इजराइल के बीच जंग का सबब बनी हुई हैं और वही रूस तथा यूक्रेन जंग में भी मौजूद है। हिटलर अनेक चेहरों के साथ आज भी हैं। ⚫

नरेंद्र गौड़

’हमारा देश पूंजीवाद, फासीवाद, भाग्यवाद, धार्मिक पाखंड और अंधविश्वास की गहरी गर्त में धकेला जा चुका है। ऐसे में चारों तरफ घुटन का माहौल है और यह स्थिति रचनाशील तथा संवेदनशील व्यक्ति के लिए अधिक परेशानी का कारण बन रही है। देश में चारों तरफ भ्रष्टाचार, हत्या, बलात्कार और सत्ता की मनमानी व तानाशाही का बोलबाला है। राजनीति भाईचारे के बजाए लोगों में नफरत के बीच बो रही है। ऐसे माहौल में रचनाकर्म आसान नहीं है। वर्तमान समय की चुनौतियों का सामना किए बिना श्रेष्ठ रचनाकर्म नहीं हो सकता है। लेखन की दिशा तय करना ही पड़ेगी! एक कवि की जिंदगी बहारों की सैर नहीं, बल्कि कांटों से भरे रास्ते का सफर हुआ करती है।’


यह बात जानीमानी कवयित्री मेहजबीं ने चर्चा में कही। इनका कहना है कि इतिहास के पन्नों पर काले अक्षरों में हिटलर का नाम उसके कारनामों के साथ दर्ज है, लेकिन क्या वह मर चुका है? नहीं, हिटलरी भावनाएं आज भी भारत सहित दुनिया के तमाम देशों में मौजूद हैं। वही लोगों में नफरत फैला रही हैं और लड़ा रही हैं। वह तोप के गोले बरसा रही हैं और लोगों को मार रही हैं। वह फिलिस्तीन और इजराइल के बीच जंग का सबब बनी हुई हैं और वही रूस तथा यूक्रेन जंग में भी मौजूद है। हिटलर शुरू से ही था और अनेक चेहरों के साथ आज भी हैं।

मेहजबीं के लेखकीय आयाम

अपने बारे में पूछे गए एक सवाल के जवाब में मेहजबीं ने बताया कि वह फिल्म समीक्षा, आलेख के साथ ही कभी-कभी नज्म और कविताएं भी लिखती हैं, लेकिन ज्यादातर गद्य ही लिखना पसंद करती हैं। कभी कोई समसामयिक घटनाएं बहुत संजीदा कर देती हैं, कभी अपना वर्तमान कभी अपना गुजरा वक्त। संजीदगी के केंद्र में व्यक्ति ही होते हैं हमेशा, किसी की मुहब्बत याद आती है, किसी की तल्खी नजर अंदाजी। किसी की सोहबत में दम घुटता है, किसी की सोहबत सुकून देती है। किसी की जुदाई जिंदगी की शक्ल बदल देती है। इन्होंने कहा कि डाॅक्टर इन सब नाॅस्टेलजिक यादों को, संजीदगी से सोचने को, असहमति को, सवाल पूछने को डिप्रेशन कहते हैं। आज हालत इस कदर खराब हैं कि किसी को समय नहीं है। परवाह नहीं है, कोई किस तकलीफ में है, उसके जहन में क्या सवाल हैं, वो कहां असहमत है, वो किस बात से गमजदा है। मैं यह सारी घुटन यादें यादें वर्तमान भूतकाल नाॅस्टेलजिक लम्हों को लिखकर मन हल्का कर लेती हूं। दूसरा कोई विकल्प है ही नहीं! अपना मन अपनी घुटन अपने सवाल, असहमति साझा करने के लिए! मेहजबीं का कहना था कि वह जब लिख रही होती हैं तब यह तय नहीं होता कि कौन से शब्द होंगे हिंदी, अंग्रेजी, उर्दू के या कौन सी विधा में लिखेंगी! इनका कहना था कि लिखते वक्त जो शब्द जहन में सामने आते हैं तहरीर में उतर जाते हैं। लिखने के बाद फिर बार-बार पढ़ती हैं, जैसे समझ आता है, जैसे दुरूस्त लगता है, उसको विधा में कन्वर्ट कर देती हैं। कभी नज्म कभी कविता कभी संस्मरण इत्यादि।

साहित्यिक उपलब्धियां

मेहजबीं दिल्ली विश्वविद्यालय से हिंदी साहित्य में एमए कर चुकी हैं। इसके अलावा जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय दिल्ली से पत्रकारिता के कोर्स के साथ ही रनवीर सिंह विश्वविद्यालय जिंद से बीड भी कर चुकी हैं। इन दिनों आप दिल्ली में रह रही हैं। इनकी रचनाएं विभिन्न पत्र- पत्रिकाओं में छपती रही हैं। फिल्म समीक्षा आलेख निवाण टाइम्स, दैनिक हिंट अखबार में प्रकाशित होते रहे हैं। इनकी कुछ कविताएं राजस्थान हिंदी अकादमी की पत्रिका मधुमिता में भी प्रकाशित हुई हैं। इसके अलावा वेव मेगजीन समकालीन जनमत में भी छपी हैं। छात्र जीवन से ही मेहजबीं साहित्यिक सांस्कृतिक गतिविधियों में संलग्न रही हैं। उस दौरान अनेक पुरस्कार भी मिले। इन्हें हिंदी साहित्य अकादमी व्दारा कविता के लिए तृतीय पुरस्कार से नवाजा जा चुका है। कविता के ही लिए इन्हें जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय से व्दितीय पुरस्कार प्रदान किया जा चुका है। यहां उल्लेखनीय है कि इन्हें दिल्ली विश्वविद्यालय के कालिंदी काॅलेज में लेख के लिए दो बार प्रथम पुरस्कार मिल चुका है। वहीं एक बार बेस्ट एक्टिंग के लिए तृतीय पुरस्कार तथा एक बार इंटर काॅलेज व्दारा आयोजित रंगोली प्रतियोगिता में तृतीय पुरस्कार मिल चुका है।

मेहजबीं की चुनिंदा कविताएं


उन्हें लाठी दिखानी चाहिए थी
बम निर्माता को
युद्ध निर्णायक को

उन्होंने लाठी मारी
चॉकलेट फूल चुंबन आलिंगन
प्रेम इत्यादि बांटने वालों को

बाज़ार में जिन्होंने सप्लाई की
चॉकलेट फूल इत्यादि
उन्होंने कमाया भारी फायदा

बाज़ार में जिन्होंने सप्लाई की
ज़हर नफरत लाठी इत्यादि
उन्होंने कमाया भारी नुक्सान !!

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कुछ लोगों के खिस्से में दूसरों के लिए 
मिठाई है,फूल है
चॉकलेट है,गुलदस्ते हैं
टेडीबियर है,किताबें हैं
टॉफी है,गुड़िया है
किस है,डिश है
कौन किस ग़र्ज़ से क्या देगा पता नहीं
इतना तय है जो भी देगा अच्छा ही होगा

कुछ लोगों के खिस्से में दूसरों के लिए
बंदूक है, तलवार है
गोला है बारूद है
लाठी है गाली है
ज़हर है नफरत है
झूठ है प्रोपेगैंडा है
बम है युद्ध है
कौन किस ग़र्ज़ से क्या देगा पता नहीं
इतना तय है जो भी देगा विनाशकारी होगा !!

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जिनके हिस्से में इंसान होना नहीं
जिनके हिस्से में ज़मीन, आसमान
हवा, पानी, रौशनी नहीं

जिनके लिए कहीं,
मनुष्यता नहीं, निष्पक्षता नहीं
जिनके लिए,
किसी भी टेबल पर न्याय नहीं
जिनके इर्द-गिर्द सिर्फ बारूद और धुंआ है

जिनका कोई निश्चित भविष्य नहीं
जिनके पास सब्ज़ा नहीं
जिनके पास रोटी नहीं
जिनके पास ज़िंदा आदमीयों से ज़्यादा
मुर्दे आदमीयों का ढेर लगा हुआ है

वो किसके साथ, और कैसे सेलिब्रेट करें ?
रोज़ डे, प्रपोज़ डे चॉकलेट डे,
हग डे, किस डे, फादर डे,मदर डे
डॉटर डे, इंडीपेंडेंस डे
उनके हिस्से में हमेशा के लिए
लिख दिया गया है स्लैप डे !!

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पूस की सर्द रात है
बादल गरज रहा है
बिजली गिर गई
ग़रीब के झोंपड़े पर
ग़रीब की भैंस पर
किसान की फसल पर

पानी भर गया सरकारी स्कूलों में
जरज़र मकान गिर गये
पूस की सर्द रात है
ठंडी हवाएं चल रही हैं
मलबे के मालिक
शामियाना तानकर
चूल्हे के नज़दीक
कुत्ते बिल्ली के साथ सो रहे हैं

पूस की सर्द रात है
सुबह की ख़तरनाक सर्दी में
मंदिर का घंटा बजा रहा है
मस्जिद में अज़ान हो रही है
जो रात भर ठिठुरते रहे
वो सुबह में सो रहे हैं गहरी नींद में

मजदूर सूरज निकलने पर
बग़ैर स्नान किये
बग़ैर वज़ू किये
मुंह धोकर
चूल्हा जला कर
चाए के साथ बासी रोटी खाकर
मजदूरी पर निकल गये
खेतों में चले गये हैं
सड़क बनाने चले गये
मस्जिद की मंदिर की चिनाई करने चले गये
कब अज़ान हुई कब घंटा बजा
किसी मजदूर को पता नहीं चला

उनकी ज़िंदगी का मक़सद
बरसात में
पूस की रात में
बलवे में
मलबे में
जिंदा बचे रहने की जद्दोजहद है !

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