अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर विशेष : तुम वहीं ठीक हो
⚫ आशीष दशोत्तर
अंधेरी रात में चिराग़ जलाने के लिए
दियासलाई तुम ही ढूंढोगी
मगर चिराग़ जलते ही
रोशनी से महरूम कर दी जाओगी।
तख़्तियां लेकर चलने में
सबसे आगे रहोगी तुम
और जब तख़्त पर बैठने की बात होगी
तो सबसे पीछे कर दिया जाएगा तुम्हें।
भीड़ एकत्रित करने के लिए
सबसे पहले तुम्हारी ही याद आएगी
और जब मजमा लग जाएगा
तो खिसकाते हुए बहुत दूर
कर दिया जाएगा तुम्हें,
हर शुभ काम में तुम से ही
लगवाया जाएगा मंगल तिलक
और फिर हाथ बांध
खड़ा कर दिया जाएगा तुम्हें वहीं कहीं।
सभा चाहे धार्मिक हो या राजनीतिक
सबसे आगे तुम्हारे लिए ही
निर्धारित रहेगा स्थान
मगर तुम्हारे हाथ नहीं आएगा कुछ भी।
किसी उत्पाद के मानक तय करते समय
तुम ही सबके स्मरण में रहोगी
उसे बाज़ार के हवाले करते वक़्त भी
तुम्हें ही किया जाएगा आगे
मगर तुम तक कभी नहीं पहुंच पाएगा
कोई भी उत्पाद।
कहने को तो हर बार लक्ष्मी ही कहलाओगी
मगर हाथ में कभी
लक्ष्मी के सूत्र नहीं रख पाओगी
खाता तुम्हारे नाम का होगा
और एटीएम कार्ड किसी और के पास,
पासवर्ड तक नहीं मालूम होगा तुम्हें।
अधिकार देने के लिए
हर बार तुम्हारे नाम की ही दुहाई दी जाएगी
मगर हर बार तुम
पीछे रह जाओगी अधिकार पाने से,
हर बार तुम्हें देखकर कोई तरस खाएगा
कोई चिंता व्यक्त करेगा
कोई आंसू बहाएगा
मगर अंत में यही कहेगा
तुम जहां भी हो वहीं ठीक हो।
⚫ आशीष दशोत्तर