यहां के पटवारी भी अजब गजब : मुख्यमंत्री जी पटवारी कलेक्टर के बाप ही नहीं होते वह तो माद्दा रखते हैं प्रकृति को बदलने का

पटवारी अपनी रिपोर्ट में कभी अमरुद तो कभी पैदा करवा देते हैं सोयाबीन और चने

सोयाबीन की फसल लहलहाने के बाद फिर उग जाते हैं अमरूद

पटवारी की इन हरकतों से किसान है परेशान

लगता है रेलवे से है इनकी मिली भगत

इन पटवारी को देना होगा नोबेल से भी कोई बड़ा पुरस्कार

हेमंत भट्ट
रतलाम, 12 अप्रैल। जमीनों के नामांतरण के मुद्दे पर मुख्यमंत्री जी आपने कहा कि पटवारी तो कलेक्टर के बाप होते हैं, मगर रतलाम के पटवारी तो इससे भी एक कदम आगे हैं। यहां के पटवारी इतने अजब गजब है कि वह उद्यानिकी के खेत में कृषि की फसलें  पैदा करवाने का माद्दा रखते हैं।  जिस जमीन पर अमरुद पैदा करवाते हैं, वहीं अगले साल सोयाबीन तो फिर चना फिर अमरूद। पटवारी ऐसी रिपोर्ट बना रहे हैं। इतना ही नहीं कभी सिंचित जमीन तो कभी असिंचित जमीन बताई जाती है। इससे किसान परेशान है। लगता है पटवारी की मिली भगत रेलवे विभाग से तगड़ी है। इन पटवारियों को तो नोबेल से भी कोई बड़ा पुरस्कार देना होगा।

राजगढ़ कार्यकर्ता सम्मेलन में संबोधित करते हुए मुख्यमंत्री डॉक्टर यादव

“प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव ने 7 अप्रैल को राजगढ़ में आयोजित सभा में कहा था कि ऐसी व्यवस्था की ऐसी की तैसी, अब नामांतरण ऑनलाइन होंगे। नामांतरण करवाना हो तो कलेक्टर के बाप बन जाते हैं पटवारी।”

एक उदाहरण

पटवारी की मनमानी का शिकार जिले के काश्तकार

रतलाम जिले के कई किसान पटवारी की गलत सलत रिपोर्ट के कारण परेशान हैं। एक काश्तकार समरथ पाटीदार ने बताया कि खसरा नंबर 444/2/2 की जमीन पर 12 सालों से अमरूद की फसल ली जा रही है। चाहे  मामला खरीफ का हो या रबी का। अमरूद ही लिए जा रहे हैं। मगर क्षेत्र के पटवारी ने रबी 2022 में चने की फसल दर्ज कर दी, वहीं खरीफ 2023 में सोयाबीन की फसल दर्ज कर दी। ऐसा करने वाले अपना दिमाग नहीं लगाते हैं। उनको तो फटाफट काम करना होता है। कापी पेस्ट किया और जय सियाराम चाहे इसमें किसान का नुकसान ही क्यों ना हो।

पटवारी की रेल विभाग से तगड़ी मिली भगत का अंदेशा

परेशान किसानों का कहना है कि लगता है पटवारी की रेल विभाग से तगड़ी मिली भगत है। क्योंकि क्षेत्र में रेलवे लाइन डलने वाली है, जो की रुनीजा नोगांवा से मोरवनी तक के लिए जाएगी। ताकि रतलाम रेलवे स्टेशन पर गाड़ियों का दबाव कम किया जा सके। अब इसमें यह भी है कि उद्यानिकी विभाग के तहत जिन फसलों का उत्पादन किया जा रहा है तो मुआवजा ज्यादा मिलेगा, क्योंकि फलों के पौधे तो वहीं पर रहते हैं। इन फलों में अनार, अंगूर, एप्पल बेर, अमरूद शामिल है, जिनका उत्पादन क्षेत्र के किसान ले रहे हैं। उत्पादन साल दर साल लिया जाता है और ऐसे पौधों को बड़ा करने में समय भी लगता है जबकि कृषि विभाग के अंतर्गत जो फसले ली जा रही तो मुआवजा उसके अनुसार मिलेगा। फसल लेने के बाद खेत साफ हो जाते हैं फिर नए सिरे से उनकी हकाई जुताई होती है। इसलिए मुआवजा सिर्फ जमीन का मिलता है। यदि उद्यानिकी विभाग के तहत उत्पादन किया जा रहा है, तो उन पौधों का अलग से मुआवजा मिलेगा।

यह खर्चा भी होता है उद्यानिकी की फसल में

प्रगतिशील काश्तकार धर्मराज पाटीदार का कहना है कि उद्यानिकी की फसल लेने के लिए 1 बीघा में पौधे लगाने का खर्च तकरीबन ₹2 लाख  आता है। पौधों की खरीदारी में खर्च होता है। अमरूद एक पौधा कम से कम 200 से ढाई सौ रुपए का मिलेगा। पौधों के लिए जमीन तैयार करना। गड्ढे खोदना। पौधों का रोपण करना। तत्पश्चात ड्रिप सिंचाई योजना के तहत पाइप ले जाना। पूरे बगीचे की सुरक्षा के लिए फेंसिंग करना। पौधा लगाने के पश्चात तकरीबन 3 साल तक इंतजार करना पड़ता है, तब जाकर फल लगते हैं और वह हर साल पौधे फल देते रहते हैं। हालांकि इसके लिए पौधों की देखभाल भी करना होती है। उसमें हर साल खर्च होता है सो अलग। इसलिए जहां उद्यानिकी फसल ली जा रही है, उनका मुआवजा उस हिसाब से ही मिलता है।

उनकी तो आजीविका का साधन है फसले

खास बात तो यह है कि यह तो किसानों की आजीविका का साधन फसल ही है। परिवार का पालन पोषण फसल पर ही निर्भर है। जब उनके खेत ही उनसे ले लिए जाएंगे और चंद रुपए दिए जाएंगे तो क्या होगा? उनकी भावनाओं के साथ तो खिलवाड़ है ही। जिस जमीन पर उन्होंने पसीना बहाया, उस जमीन को अन्य विभाग वाले कुछ दाम चुका कर अपने कब्जे में कर लेंगे। तो ऐसे किसान क्या करेंगे ? रोजी-रोटी के लिए उन्हें भटकना पड़ेगा। यह मुद्दा भी विचारणीय है। उनको जमीन के बदले पास में ही जमीन देने का प्रयास होना चाहिए, ताकि वे वहां पर खेती किसानी कर सके।

यह तो हकदार है नोबेल से भी बड़े पुरस्कार के

जानकारी का अभाव रखने वाले पटवारी को तो नोबेल पुरस्कार से भी किसी बड़े पुरस्कार से नवाजा जाना चाहिए क्योंकि यह कार्य तो प्रकृति के भी बस के बाहर है, जो उन्होंने रिकार्ड में कर दिखाया है। जहां पर सालों से जामफल की फसल ले रहे हैं, वहां पर पटवारी ने जामफल के पौधे हटवा दिए। सोयाबीन लगवा दी। चने लगवा दिए फिर जामफल लगवा दिए। कभी सिंचित जमीन दिखा दी तो कभी असिंचित।

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