खरी-खरी : भाजपा के लिए क्यों करें मतदान, मतदाता है समस्याओं से परेशान, विधायक से मंत्री बन गए फिर भी है अनजान, बस वे अपनों पर है मेहरबान, आखिर हर बार क्यों बने वोटर कदरदान
⚫ हेमंत भट्ट
माना कि हिंदू है। सनातनी है। भाजपा को मानते हैं। विश्व स्तरीय नेता नरेंद्र मोदी में विश्वास व्यक्त करते हैं। मगर रतलाम के मतदाता भाजपा के लिए क्यों करें मतदान, जबकि मतदाता है समस्याओं से परेशान। विधायक से मंत्री बन गए फिर भी है अनजान। बस वे हैं अपनों पर मेहरबान। आखिर हर बार क्यों बने आमजन कदरदान? ऐसा लगता है आम मतदाता ठगा सा रह गया है क्योंकि किसी भी जिम्मेदार को आम जनता की परेशानी से कोई मतलब नहीं है। उन्हें तो अपनों और अपनी पीढ़ियों के लिए जितना हो सके, उतना अभी ही करना है।
माना कि इस बार लोकसभा चुनाव का कोई मुद्दा नहीं है। विधायक जी ने अपना महापौर जितवा दिया। फिर मंत्री भी बन गए, मगर किसी काम के नहीं। क्योंकि शहरवासी सुभाष नगर ब्रिज, पेयजल में गंदा पानी, शहर का अतिक्रमण, सड़क पर जगह-जगह यातायात जाम के कारण परेशान है। सागोद रोड पुलिया, शहर के जिम्मेदारों का कु प्रबंधन, आदर्श आचार संहिता का पालन नहीं, आखिर जिम्मेदार किस मुंह से वोट मांगने के लिए आ रहे हैं सांसद के लिए।
तो भी
पहले जो जिम्मेदारी मतदाताओं द्वारा दी गई है, उसका तो निर्वहन हो नहीं रहा है। जबकि पता था कि लोकसभा चुनाव आएंगे फिर भी न तो नगर निगम के जिम्मेदार जनता के प्रति जागे और न ही कैबिनेट मंत्री विधायक जी।
घिर गए ऐसे काकस में
मंत्रीजी काकस में ऐसे घिर गए हैं, कि उन्हें शहर की जनता और उनकी समस्या कुछ भी नजर नहीं आती। न ही वह महापौरजी को कुछ कहते हैं। हालांकि इस मामले में तो वह पहले से ही एक ही राग अलापते आए हैं ” नगर निगम तो अपनों विषयइज नी है”। नगर निगम में एक तरफा अपना और अपनों का राज चल रहा है। और काज को खूंटी पर टांग दिया है। मनमानी के कारण शहर का बंटाढार हो रहा है।
गुणवत्ता की तो बात ही मत पूछो
सीसी रोड का काम पूरा नहीं हो रहा है। खुदाई में बिल्कुल भी देरी नहीं होती है और बनाने में महीनों नहीं, सालों लग रहे हैं। बाजना बस स्टैंड से अमृतसागर तक की सड़क बनते बनते 2 साल ऊपर हो गए मगर काम अभी भी पूरा नहीं हुआ। स्ट्रीट लाइट के खंभे लग गए मगर लाइट अभी तक नहीं लगी। गुणवत्ता की जो बात ही मत पूछो। बनने के साथ ही उखड़ने लग गई थी मगर किसी को कोई मतलब नहीं।
जिगर के टुकड़ों को खोया है सगोद पुलिया पर
बाजना बस स्टैंड चौराहे से वरोठ माता मंदिर तक 5 साल पहले फोरलेन बनाई गई थी, उसका सगोद रोड का ब्रिज आज तक नहीं बन पाया। सड़क जर्जर हो रही है। गद्दे जानलेवा बने हुए हैं। बिजली है नहीं। आगमन प्रभावित होता है। लोग परेशान हैं। वाहनों के दबाव के चलते लोगों ने अपने जिगर के टुकड़ों को खोया है मगर उनकी सेहत पर कोई असर नहीं होता है क्योंकि उन्हें कोई मतलब नहीं।
ऐसा लगता भूकंप प्रभावित हो यह क्षेत्र
सुभाष नगर ब्रिज का काम सालों से आधार में लटका पड़ा हुआ है विधानसभा चुनाव के पहले गत वर्ष गर्मी में ही विधायक जी ने कहा था कि काम शीघ्र ही शुरू होकर नए साल में पूरा हो जाएगा लोगों को सुविधा मिलने लगेगी मगर लोगों को दुविधा के अलावा कुछ नहीं मिल रहा है उसे क्षेत्र के दर्जनों परिवार हर मौसम में परेशान हैं। ऐसा लगता है इस क्षेत्र के लोग भूकंप पीड़ित हैं। मगर जिम्मेदारों को कोई मतलब नहीं।
मजाल है यातायात पुलिस उन्हें कुछ कह दे
बाजारों में दिन प्रतिदिन सड़के सकरी होती जा रही है। आमजन का सड़कों पर चलना दुभर हो गया है। नाहरपुरा, गणेश देवरी, तोपखाना, चांदनी चौक, धानमंडी, चौमुखी पुल, कसारा बाजार, त्रिपोलिया रोड की सड़कों पर सामान फैला रखा है। इसका असर पूरे शहर की कॉलोनी और मोहल्ले में हो रहा है कोई मानने को तैयार नहीं। पार्किंग लाइन बनने के बाद भी दुकानदारों की सेहत पर कोई असर नहीं। सामान और अपने वाहनों से सड़कों को गली में तब्दील कर दिया है। लोग हर पल हर घड़ी परेशान होते हैं। कचरा वाहन, पानी वाले बीच सड़क पर खड़े होकर अपना काम करते रहते हैं। लोग हार्न बजाते रहते हैं, मगर उनकी सेहत पर कोई असर नहीं। इसी तरह ऑटो वाले, मैजिक वाले बीच सड़क पर खड़े रहते हैं। लोडिंग एंड लोडिंग कभी भी किसी भी समय शुरू हो जाता है। भले ही यातायात प्रभावित हो। ऐसे मामलों में मजाल है यातायात पुलिस इन्हें कुछ कह दे।
किसी को कोई मतलब नहीं
विधायक मंत्री, महापौर, पार्षद किसी को आमजन की समस्या से कोई मतलब नहीं। वह तो एक बार चुनाव जीत गए हैं। वह किसी की सुनते नहीं। न ही उन्हें नजर आता है। स्वच्छ पेयजल समय पर मिल रहा है, नहीं मिल रहा है, कोई मतलब नहीं। जबकि पूर्व मुख्यमंत्री चौहान कई बार आश्वासन दे चुके हैं कि रतलाम की जनता को हर दिन पेयजल मिलेगा मगर महीने में 12 दिन भी बमुश्किल पानी मिलता है। झाड़ू लग रही है, न ही लग रही है, कोई मतलब नहीं। सड़क पर आमजन जाम में फंस रहे हैं, कोई मतलब नहीं। दुकानदार सामान से सड़क तक पसर गए हैं, दो चार पहिया वाहन वाले सड़कों को अपनी बपौती समझ बैठे हैं, तो भी कोई मतलब नहीं।
आदर्श आचार संहिता…
रात 12 के बाद भी आयोजन में तेज आवाज में डीजे बज रहे हैं। चाहे वह आयोजन धार्मिक हो या फिर सामाजिक हो। सुबह 4 से माइक चल रहे हैं कोई मतलब नहीं। इस तरीके से आदर्श आचार संहिता का पालन जिम्मेदार करवा रहे हैं। जिम्मेदारों ने तो निर्देश दे दिए और हो गया काम पूरा। मगर जमीनी हकीकत कुछ और ही नजर आ रही है। जिम्मेदारों की आंखों पर गांधी दर्शन की पट्टी बांधे होने के कारण नहीं दिख रहा है।