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नजर और नजरिया : नीम के एक पेड़ नीचे इनका अस्पताल

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घटला यार्ड के निकट इनका अस्पताल। पांच लोगों के परिवार का गुजारा। डॉक्टर होने का दावा नहीं करते।अनेक बीमारियों के उपचार में माहिर। पहाड़ों से लाते हैं जड़ी बूटियां। देसी दावों से होता है लाभ। आवास योजना के तहत मिला मकान। सुबह सात से शाम सात बजे तक करना डॉक्टरी भले ही नहीं मानी जाए, लेकिन एक कठिन तपस्या जरूर है।

नरेंद्र गौड़

रतलाम, 22 मई। धूल भरी सड़क के किनारे चार-पांच बीमारियों को जड़ से ठीक करने का दावा करते हुए, कक्षा आठ पास एक आदमी नीम की छॉह में करीब चालीस साल से बैठता आ रहा है और हैरानी यह कि आज तक उससे किसी ने उपचार करने का लाइसेंस तक नहीं मांगा।

घटला यार्ड के निकट इनका अस्पताल

नीम की यह छॉह भी अधिक गहरी नहीं है और यह डॉक्टर या हकीम छह सात फर्शियों पर एक साइन बोर्ड सड़क के किनारे लगाकर रोजाना सुबह सात से शाम सात तक रतलाम मंदसौर रोड़ पर घटला यार्ड के निकट ईसाई कब्रिस्तान के ठीक सामने बैठा हुआ पाया जाता है। ईश्वर लाल राठौर नामक इस व्यक्ति ने दावा किया कि वह टाईफाइड, पीलिया, बवासीर, सूखा रोग और नजर लग जाने जैसी बीमारियों का शर्तिया इलाज करता है। उसके पिता हेमराज राठौर भी इसी जगह नीम के नीचे बैठकर बरसों उपचार किया करते थे, लेकिन उम्र अधिक होने के कारण अब यह जिम्मेदारी ईश्वरलाल ने सम्भाल ली है।

पांच लोगों के परिवार का गुजारा

इन दिनों भीषण गर्मी है, लेकिन यह व्यक्ति नियमित अपने ठिये पर उपचार करने पहुंच जाता है। यही उसका अस्पताल है और यही उसके पांच जनों के परिवार की रोटी का जरिया है। इन्होंने बताया कि उनका अस्पताल सर्दी गर्मी बरसात की परवाह किए बिना सुबह सात से शाम सात तक लगता है। अस्पताल के नाम पर एक मटमैला झोला जो नीम के तने पर टंगा रहता है और सड़क के किनारे रखा साइन बोर्ड ही नजर आता है। साथ ही डॉक्टर साहब जो अपने कपड़ों और हुलिए से कहीं से कहीं तक डॉक्टर के बजाए एक मजदूर नजर आते हैं, बैठे दिखाई देते हैं।

डॉक्टर होने का दावा नहीं करते

ईश्वरलाल डॉक्टर होने का कोई दावा नहीं करते, लेकिन वह बताते हैं कि प्रतिदिन कम से कम चार-पांच सौ रुपए कमा लेते हैं। उनके मरीज रतलाम ही नहीं आसपास के गांव में भी हैं और यहीं कारण है कि वह अन्य सुविधाजनक स्थान पर अपना अस्पताल नहीं खोल सकते हैं, क्योंकि यही जगह उनकी पहचान बन चुकी है। यह पूछे जाने पर कि भारी बरसात हो रही हो, तब वह कहां जाते हैं? इन्होंने कहा कि ऐसे समय वह समीप के भोलेनाथ मंदिर में जा पहुंचते हैं। इनके परिवार में वयोवृध्द पिता, इनकी पत्नी के अलावा बेटा और एक बेटी हैं। इस तरह पांच जनों के परिवार की गुजर बसर यह अस्पताल करता है।

अनेक बीमारियों के उपचार में माहिर

बताया कि बेटा रोहित कक्षा दस पास करने के बाद एक दुकान में नौकरी करता है और बेटी करिश्मा ने कक्षा नौ की पढ़ाई के बाद स्कूल जाना बंद कर दिया। ईश्वरलाल खुद कक्षा आठ तक पढ़े है, लेकिन अनेक बीमारियों के उपचार में अपने को माहिर बताते हैं, तब आश्चर्य होता है। एक सवाल के जवाब में ईश्वरलाल ने बताया कि उन्हें याद नहीं आता कि कोई उनसे या उनके पिता से चिकित्सा करने का प्रमाण पत्र देखने के लिए कोई आया हो।

पहाड़ों से लाते हैं जड़ी बूटियां

इनका कहना है कि देश में लाखों लोग देसी जड़ी बूटियों के जानकार हैं, जो इलाज भी कर रहे हैं। इनका कहना है कि हम खुद दवाओं के लिए पहाड़ों पर जाकर खुदाई करते हैं और जड़ी बूटियां लाते हैं। वहीं बहुत से लोग अपने पुरखों के जमाने से परंपरागत हकीमी करते हैं। खुद बाबा रामदेव और बालकृष्ण के पास कौन सी डिग्री डिप्लोमा है? आज देसी दवाओं के नाम पर करोड़ों का कारोबार कर रहे हैं। यहां तक कि उन्होंने तो कोरोना के उपचार का दावा करते हुए ’कोरोनील’ नाम की दवा भी बेचना शुरू कर दी थी।

देसी दवाओं से होता है लोगों को

ईश्वरलाल का कहना है कि उनकी देसी दवाओं से लोगों को लाभ ही होता है, ऐसा एक भी मामला देखने में नहीं आया जब किसी को कोई नुकसान हुआ हो। इनका कहना था कि हम देसी दवाएं देते हैं। बाबाजी भभूत नहीं। जबकि कोरोना फैल रहा था, तब खुद मोदीजी लोगों को थाली बजाने और तालियां पीटने की सलाह दे रहे थे, ऐसा गया गुजरा अंधविश्वास तो हम नहीं फैलाते हैं।

आवास योजना के तहत मिला मकान

इन्होंने बताया कि उनका कच्चा घर घटला यार्ड के पास था, लेकिन रेलवे की जमीन होने के कारण बुल्डोजर चलाकर नेस्तनाबूत कर दिया गया। इसके बाद उन्हें प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत मकान मिल गया। उसकी बकाया किश्त भी इसी डॉक्टरी से चुका रहे है। पता नहीं ईश्वरलाल के उपचार संबंधी दावों में कितना दम हैं, लेकिन यह सच है कि सामने से आ रही सूरज की तेज किरणों का सामना नीम की छितराई सी छॉह में करते हुए सुबह सात से शाम सात बजे तक करना डॉक्टरी भले ही नहीं मानी जाए, लेकिन एक कठिन तपस्या जरूर है।

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