धर्म संस्कृति : जो चैलेंज स्वीकार करता है, चेंज वही कर सकता है

आचार्य श्री बंधु बेलड़ी शिष्यरत्न गणि श्री पदम-आनंदचन्द्रसागर जी म.सा ने कहा

चार दिवसीय प्रवचनमाला ‘चार चाबी खुशियों की’ विषय पर श्री करमचंद उपाश्रय में हुआ तीसरे दिन का व्याख्यान

दीक्षार्थी संयम पालरेचा का विभिन्न संस्थाओं द्वारा बहुमान

हरमुद्दा
रतलाम, 7 जून। युवा मुमुक्षु संयम पालरेचा की 12 जून को आयोजित दीक्षा महोत्सव अब शनै: शनै: पराक्रम उत्सव की ओर गति कर रहा है। आचार्य श्री बंधु बेलड़ी शिष्यरत्न गणि श्री पदम-आनंदचन्द्रसागर जी म.सा ने कहा की संयम का संयम जीवन के लिए युवावस्था में पराक्रम यह सन्देश देता है कि जो चैलेंज स्वीकार करता है, चेंज वही कर सकता है।

12 दिनी महोत्सव के तहत चार दिवसीय प्रवचनमाला ‘चार चाबी खुशियों की’ विषय पर श्री करमचंद उपाश्रय में तीसरे दिन व्याख्यान में मुमुक्षु एवं परिवार का विभिन संस्थाओं ने बहुमान किया। 

नागेश्वर पूनम मंडल एवं अयोध्यापुरम तीर्थ ट्रस्टी इन्दरमल जैन आदि द्वारा भी मुमुक्षु एवं पालरेचा परिवार का बहुमान शाल, श्रीफल एवं अभिनंदन पत्र भेटकर  किया गया। 8 जून को चार दिनी प्रवचन माला के समापन पश्चात 9 जून को 54 जोड़ो द्वारा श्री शांतिस्नात्र महापूजन आदि आयोजन तथा दीनदयाल नगर में 10 जून से पराक्रम उत्सव की शुरुआत होगी।

धर्म सभा में मौजूद श्रोता

जीवन में श्रद्धा का मूल ज्ञान

गणिश्री ने प्रवचन में कहा कि ज्ञान ही हमें आनंद दे सकता है। जहां अज्ञान है, वहां अभिशाप है। सारी धर्म क्रिया का मूल श्रद्धा है और श्रद्धा का मूल ज्ञान है। जैसे तीर्थ यात्रा करना जरूरी है, वैसे ज्ञान यात्रा करना भी आवश्यक है।आपने कहा कि  पालीताणा की 99 यात्रा डोली वाले भी करते हैं भक्त भी करते हैं परन्तु  ज्ञान की वजह से ही भक्तों को लाभ ज्यादा होता है। ऐसा कहा जाता है कि चलने वाली चींटी हजारों किलोमीटर पार कर लेती है लेकिन बैठा हुआ गरुड़ वहीं रह जाता है। यदि मनुष्य का विवेक जाग्रत हो जाये तो अज्ञान जहां हजार कदमों में नहीं पहुंचता ज्ञान वहां एक कदम में पहुंच जाता है। 

परिवार में सद्गुणों की वृद्धि हो

उन्होंने परिवार के प्रति श्रावक के तीन कर्तव्यों की व्याख्या में बताया कि घर के बुजुर्ग – बच्चों के साथ वात्सल्य भरा व्यवहार करना चाहिए। परिवार में सद्गुणों की वृद्धि होना चाहिए।  धर्म में धनवान, रूपवान, बुद्धिमान लोगों से ज्यादा गुणवान व्यक्तियों का महत्व होता है। गुणीजनों की पूजा सर्वत्र होती है। परिवार में राइट्स की भावना कम एवं रेस्पॉन्ड बिलिटी पर ज्यादा ध्यान होना चाहिए। कर्तव्य की महिमा है अधिकारों की नहीं। प्रवचनमाला में पू .साध्वी श्री अर्चितगुणाश्रीजी म.सा, श्री रतनरिद्धिश्रीजी म.सा.एवं साध्वी श्री रतनवृद्धिश्रीजी म.सा.आदि विशाल श्रमण श्रमणी वृन्द ने निश्रा प्रदान की ।

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