समसामयिक : नादानी में राहुल से मुकाबला करने पर क्यों आमादा है भाजपा

राहुल को यदि उनकी तनिक भी जानकारी होती तो वह इस सबसे आंख मूंदकर समूचे हिंदू समाज को यूं आंखे दिखाने की नादानी नहीं करते। खैर, स्वयं की नादानी का परिचय देना तो राहुल की शैली का अविभाज्य अंग बन ही चुका है, ताज्जुब यह कि भाजपा क्यों उन प्याज के छिलकों पर खुद ही फिसल कर औंधे मुंह गिरने को आमादा हो रही है।

प्रकाश भटनागर

भारतीय जनता पार्टी एक बड़ी चूक कर गुजरी। यदि  वह इससे सीख नहीं लेती तो बहुत संभव है कि इस दल को अपनी आक्रामक भाषणबाज ब्रिगेड के चलते आने वाले समय में और भी कई बार मुंह की खानी पड़ जाए। सोमवार को देश की संसद में राहुल गांधी जिस तरह गरजे और बरसे, उसका विरोध करके प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित समूची केंद्र सरकार और भाजपा ने अपने लिए बेहद सुनहरा मौका गंवा दिया।

किसी फिल्म में एक चरित्र अदालत में खड़ा होकर झूठी गवाही दे रहा है। वह मुकदमे से जुड़े एक पक्ष की कद काठी के बारे में  हाथ उठाकर बताता है कि जिसका जिक्र हो रहा है, उसकी ऊंचाई लगभग इतनी है। सभी जानते हैं कि वह चरित्र असत्य कथन कर रहा है। लेकिन इस गवाह के विरोधी पक्ष का वकील बड़ी चूक कर जाता है। वह गवाह को टोकते हुए अपनी पीठ ठोकने के अंदाज में अदालत से कहता है, ‘ जिसकी बात हो रही है, वह एक मुर्गा है और ये गवाह उसके कद को इंसानों जितना बताकर साफ-साफ झूठ बोल रहा है। इस पर वह चरित्र तुरंत कहता है, ‘श्रीमान, अभी मैंने नीचे वाला हाथ कहां इस्तेमाल किया है?’ फिर वह ऊपर और नीचे वाले हाथ के बीच एक मुर्गे के आकार जितना अंतर रखकर कहता है, ‘ जिसकी बात पूछी जा रही है, उस मुर्गे का कद इतना था।’ अदालत उसकी दलील स्वीकार कर लेती है। गवाही सच मान ली जाती है।

संसद  में भाजपा ने यही गलती की। यह तय है कि राहुल गांधी ने हिंदुओं को लेकर जो तीखे और आपत्तिजनक आरोप लगाए, उनके केंद्र में समूचा हिंदू समाज ही था, लेकिन मोदी अपने उतावलेपन से बड़ी गलती कर गए। यहां उन्होंने गांधी के बयान पर सदन में आपत्ति जताई और वहां गांधी ने तुरंत कह दिया कि वह भाजपा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के बारे में बात कर रहे हैं। उनका कथन सभी हिंदुओं को लेकर नहीं था। यूं नहीं कि गांधी अपनी यह सफाई देकर बड़ी सफाई के साथ बच निकले। सोशल मीडिया पर उनके कहे और किए को लेकर जिस तरह आपत्ति जताने की होड़ मची है, उससे साफ है कि नेता प्रतिपक्ष ने सदन में अपने ही द्वारा चलाया गया तीर वापस लाने की नाकाम कोशिश की है। इस तीर के बूमरेंग होकर अंतत: राहुल सहित समस्त विपक्ष को चोट पहुंचाने की पूरी संभावना पर मोदी और भाजपा ने खुद ही पानी फेर दिया। राहुल जिस तरह पानी पी-पीकर हिंदुओं और हिंदुत्व को कोस रहे थे, उसके चलते यह तय था कि यदि उनकी आक्रामकता का यही रुख जारी रहने दिया जाता तो वह बोलने के रौ में हिंदुओं को लेकर खुद और अपनी पार्टी की विचारधारा को एक्सपोज कर देते। आखिर भाजपा को हाल ही में बीते लोकसभा चुनाव में चौबीस करोड़ वोट और 240 सीटें मिली हंै। कांग्रेस को भाजपा से पूरे दस करोड़ वोट कम मिले हंै। राहुल भले ही कह रहे हंै कि आरएसएस और भाजपा पूरे हिन्दू समाज का प्रतिनिधित्व नहीं करते है। बड़ी हद यह सच्चाई भी है। पर इससे कौन आज इंकार करेगा कि हिन्दुओं की बड़ी संख्या केवल भाजपा और संघ को ही अपने निकट पा रही है।

उत्तरप्रदेश पुलिस का एक वायरल वीडियो सब को याद होगा। बदमाशों से मुठभेड़ के समय एक पुलिस अफसर को और कुछ नहीं सूझा, तो वह अपने मुंह से बंदूक के फायर करने की आवाज ‘ठांय-ठांय’ निकालने लग गया था। राहुल गांधी की सोचने-समझने और उसी अनुपात में बोलने की ‘विलक्षण’ किस्म की प्रतिभा से सभी वाकिफ हैं। ऐसी क्रियाओं के समय गांधी ‘पढ़ने-लिखने, सोचने-समझने और जानकारी जुटाने’ जैसे तत्वों से कोसों दूर स्वयं के द्वारा स्वयं के लिए निर्मित आभामंडल में विचरते नजर आते हैं। अभी तो वो ताजा-ताजा 54 से 99 तक पहुंचने के श्रेय को सर पर ताज बना कर उत्साह में डूबे हंै। फिर जब संघ, भाजपा, हिंदू या हिंदुत्व की बात आए तो राहुल की पहले बताए गए तत्वों के साथ जैसे जानी दुश्मनी हो जाती है। वह बोलने के झोंके में उस पुलिस वाले की तरह ही कुछ भी करके खुद को आक्रामक बताने पर पिल पड़ते हैं।

वर्तमान लोकसभा में गांधी नेता प्रतिपक्ष हैं। यानी पद के रूप में  मिली जिम्मेदारी और फितरत के रूप में मिली आत्मरति की प्रवृत्ति की कॉकटेल का सुरूर तथा गुरूर, दोनों ही उन पर पूरी तरह हावी रहेंगे। बशर्ते कि उन्हें बोलने का भरपूर अवसर प्रदान किया जाए। जिस तरह से गांधी की वाणी को रोकने और उनके कहे को ‘कतर ब्योंत’ के रूप में निशाना बनाने की कोशिश हो रही है, वह भाजपा की घनघोर किस्म  की नादानी है। ऐसा होने के साथ ही जहां राहुल को अपने कहे के लिए अपने बचाव में दलीलें गढ़ने का अवसर मिल जाएगा, वहीं विपक्ष इस आरोप को लेकर भी केंद्र सरकार को पूरी ताकत के साथ घेर सकेगा कि सदन में नेता प्रतिपक्ष की आवाज दबाई जा रही है। बात केवल हिंदुत्व को लेकर नहीं है, राहुल की यह पारंपरिक खूबी है कि वह  तमाम विषयों पर अपने विचारों से खुद की पार्टी को ही बगले झांकने के लिए मजबूर कर देते हैं। हैरत है कि यह सब जानते-समझते हुए भी भाजपा एक विचारक के रूप में गांधी के इतने विरले व्यक्तित्व तथा कृतित्व को खामोश करने की नादानी कर रही है। 

वैसे राहुल ने जो कहा, उसमें सहमति की गुंजाइश ही नहीं है। अपने अस्तित्व में  आने के समय से लेकर आज तक राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ वैसी किसी भी गतिविधि में संलग्न या उससे संबद्ध नहीं पाया गया है, जैसा नेता प्रतिपक्ष ने सोमवार को सदन में आरोप लगाया। सांप्रदायिक हिंसा का बेहद भीषण स्वरूप क्या हो सकता है, यह इस देश ने वर्ष 1984 में हुए हजारों सिखों के नरसंहार के रूप में देखा है। यह हिंदू-सिख वाला मामला नहीं था। यह विशुद्ध रूप से कांग्रेस बनाम सिख वाला घटनाक्रम रहा, जिसमें राहुल की पार्टी के एक से एक दिग्गज नेता शामिल रहे। जिनमें से कुछ को बाकायदा अदालत से सजा हुई और कई आज तक नरसंहार में संलिप्तता के आरोपों से बच नहीं सके हैं। फिर जवाहरलाल नेहरू के समय से लेकर इंदिरा गांधी और राजीव गांधी के समय वाली कांग्रेस ने देश में अपनी हिंसक तथा अहिंसक शैली में प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष रूप से जिस-जिस तरह के कारनामों को अंजाम दिया है, राहुल को यदि उनकी तनिक भी जानकारी होती तो वह इस सबसे आंख मूंदकर समूचे हिंदू समाज को यूं आंखे दिखाने की नादानी नहीं करते। खैर, स्वयं की नादानी का परिचय देना तो राहुल की शैली का अविभाज्य अंग बन ही चुका है, ताज्जुब यह कि भाजपा क्यों उन प्याज के छिलकों पर खुद ही फिसल कर औंधे मुंह गिरने को आमादा हो रही है, अपने व्यक्तित्व के जिन छिलकों को खुद राहुल ही पूरी तरह से उतारने पर उतारू हैं?

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *